यौन शोषण  – अंतरा 

’’कभी कभी मैं जब सुबह उठती हूॅं तो मेरे पेट में बहुत दर्द होता है, और पेशाब से खून भी आता है।’’ बारह साल की बच्ची ने अपने पेट पर हांँथ रखकर बड़ी ही मासूमियत और दर्द से आई0पी0एस0 मीरा  के पूंछने पर उसकी आंखों में देखते हुये कहा।

 

’’ऐसा दर्द तुम्हे रोज होता है?’’ मीरा बच्ची से बहुत प्यार से सारी बात जानना चाहती थी लेकिन लग रहा था कि बच्ची को कुछ मालूम ही नहीं है।

’’रोज नहीं, पर हर दूसरे तीसरे दिन होता है। जब मैं वार्डन से बताती थी तो वो दर्द की दवा देकर कहती थी कि खाकर सो जाओ, थोड़ी देर में दर्द सही हो जायेगा।…….. पिंकी को भी ऐसा ही दर्द होता था, क्या उसकी तरह मैं भी मर जाउंगी?’’ 

छोटी सी बच्ची के इस सवाल पर मीरा का दिल बैठ गया और उसकी आंखों से क्रोध और घृणा का सैलाब उमड़ आया। उसने अपनी मुट्ठियाँ गुस्से से भींच ली और उठ कर दनदनाती हुई इनटेरोगेशन रूम में पहुॅंची,जहां पर वार्डन उर्मिला बैठी हुई थी और तड़ाक की आवाज के साथ उसने अपना गुस्सा और अपना प्रश्न दोनों ही उसने गाल पर प्रकट कर दिये।

’’वो बच्ची कैसे मरी?’’ मीरा लगभग चीखते हुए बोली 

’’मैने कुछ नहीं किया। वो बीमार थी, इसलिये उसकी जान चली गयी।’’ वार्डन ने अपने को बचाने के लिये रटारटाया उत्तर दिया। 

’’कौन सी बीमारी थी उसे? बलात्कार की…?…..  या तुम्हारी हवस की बीमारी? तुम्हारे संरक्षण गृह से पायी गयी हर बच्ची यौन शोषण का शिकार है। मेडिकल रिपोर्ट के हिसाब से सभी बच्चियों का बलात्कार हुआ है। तुम उन्हे इस्तेमाल कर रही थी?… मात्र तेरह साल की बच्ची थी जिसे तुम्हारी पैसों की भूख ने मार डाला। बताओ, इसमें कौन कौन शामिल है? उन्हे बचा कर कोई फायदा नहीं क्योंकि कोई भी तुम्हे तो बचाने नहीं आयेगा।’’



कड़ी पूंछताछ के बाद वार्डन उर्मिला ने पूरी सच्चाई उगल दी कि बालिका संरक्षण गृह में मौजूद लड़कियों को वह हर रात शहर के बड़े बड़े लोगों की हवस पूरी करने के लिये भेजती थी जो उसे खूब पैसा देते थे…  रात के खाने में नशीली दवा मिलाने की वजह से उन लड़कियों को यह नहीं पता चल पाता था कि उनके साथ रात में क्या हुआ। ये सब काफी दिनों से होता चला आ रहा था कि तभी उस बच्ची की हालत बिगड़ने से मौत हो गयी और उसका भाण्डा फूट गया।

 

मीरा के साथ साथ पूरा स्टाफ इस बात को सुनकर दंग रह गया था कि किस तरह एक रक्षक ही उन बच्चियों की इज्जत और मौत का सौदागर बन गया था। इस मामले से पूरे शहर में सनसनी फैल गयी जो भी सुनता उसका कलेजा ये सोचकर फट जाता था कि खेलने की उम्र में वह बच्चियां कितनी यातनायें झेल रही थी। 

 

मामला इतना संवेदनशील होने के कारण मीडिया में सनसनीखेज खबरें दौड़ने लगी.. एक एंकर का कहना था, “समाज में जाने ही कितनी ही छोटी बच्चियां और किशोर लड़कियां यौन शोषण का शिकार हो रही हैं जिन्हे खुद नहीं पता कि वो किस दौर से गुजर रही हैं, इस बारे में उन्हे किससे बात करनी चाहिये, इस परिस्थिति में क्या करना चाहिये, चुप रहकर शोषण को बढ़ावा देने के बजाय आवाज उठानी चाहिये। कानून बनाने से क्या फायदा जब पीड़ित को यही नहीं पता कि इस अपराध से बचा भी जा सकता है। कानून से पहले जागरूकता की जरूरत है। सरकार ने कानून बना दिया पर हम लोग बच्चों को जागरूक तो कर ही सकते हैं।”

 

’’अब तुम सब को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया है। अब तुम्हे कोई परेशान नहीं करेगा।’’ मीरा ने सारी बच्चियों को चाकलेट बांटते हुये ये खुशखबरी दी। 

’’दीदी, क्या अब मैं ठीक हो गयी हूॅं, क्या अब मैं पिंकी की तरह पेट दर्द से नहीं मरूँगी?’’ इस मासूम से सवाल ने मीरा को अन्दर तक झकझोर दिया और उसने बच्ची को अपने गले से लगा लिया और उस बच्ची का दर्द मीरा की आंखों से आंसू बनकर छलकने लगा। मीरा सिर्फ इतना ही कह पायी,’’ नहीं… अब तुम्हे कोई दर्द नहीं होगा, किसी को कोई दर्द नहीं होगा। ये मेरा वादा है।’’ मीरा की आंखों में आसुओं के साथ साथ प्रण की ज्वाला भी धधक रही थी।

#दर्द 

 

मौलिक 

स्वरचित

अंतरा 

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