अब आगे..
रविकांत जी ,उनका बेटा रोहन ,पत्नी मीना,बेटी मनोरमा और उसके बच्चे सब गाड़ी में बैठ चुके हैं …
अलीगढ़ आ गए हैं ..
रास्ते में उन्होंने अपने बड़े भाई साहब के यहां रुक कर थोड़ी देर विश्राम किया …
फिर उन्हें भी अपने साथ लेकर के रोहन के लिए लड़की देखने लड़की वालों के घर जा रहे हैं…
सुन रविकांत ..
हां भाई साहब..
जरा फोन तो कर…
कौन सी सकरी गली में है उनका घर…
अब तो आगे गाड़ी जाना भी मुश्किल लग रही…
हां जी भाई साहब…
करता हूं ..
रविकांत जी फोन लगाते हैं..
जी ..
हम पहुँच गये हैं…
आपने मुझे चौराहा बताया था..
क्या नाम है उसका ..
रविकांत फूल चौराहा..
भाई साहब बोले..
हां हां फूल चौराहे पर पहुंच गए हैं..
अब यहां से कहां आना है.. ??
जी वहां से सीधा चले आईये…
आपको सामने एक पान की गुमटी दिखाई पड़ रही होगी…
उससे पूछ लीजिएगा ..
कि बटुकनाथ पत्थर वाले का घर कहां है..??
वैसे तो आप वहीं खड़े रहिए..
मैं ही आ जाता हूं …
बटुक नाथ जी बोले …
जी .. रहने दीजिए ..
परेशान मत होइए…
हम आ जाएंगे ..
हम गाड़ी से हैं..
अच्छा गाड़ी तो मुश्किल है कि हमारी गली में आ पायें..
ऐसा कीजिए वहीं गुमटी के पास ही अपनी गाड़ी लगा दीजिए..
वह हमें जानता है…
आपकी गाड़ी को नुकसान नहीं होगा…
तो यहां से पैदल जाना होगा …??
हां जी ..
ज्यादा अंदर नहीं है …
तभी तो मैं कह रहा हूं..
मैं आ जाता हूं ..
जी ..आ जाते तो ठीक था..
रविकांत जी बोले ..
आप लोग वहीं कहीं छाया में खड़े हो जाइए..
मैं आता हूं..
बटुक नाथ जी उन्हें लेने आ गए हैं..
सभी लोग गाड़ी से उतरे..
उन्होंने आसपास का जायजा किया..
एक बहुत ही घना मोहल्ला था..
जहां एक दूसरे से लगे घर बने थे..
छोटी-छोटी गलियां थी…
खुली नालियां थी…
रोहन और मनोरमा एक दूसरे को देखकर मुंह बना रहे थे…
कि यह कहां आ गए हैं ..
मनोरमा बोली…
देख भाई ..
तुझे चाहिए थी ना सिंपल लड़की..
सिंपल लड़कियां तो गलियों में ही मिलती है …
रोहन ने भी अनुपमा को घूरकर देखा..
बटुकनाथ को देखकर बड़े भाई साहब वीरेंद्र जी और रविकांत जी एक दूसरे की ओर निहारने लगे..
वो बहुत ही साधारण से लग रहे थे ..
कपड़े भी शायद प्रेस नहीं थे…
और ना ही साफ लग रहे थे …
भूरे रंग का गमछा उन्होंने अपने कंधों पर डाल रखा था …
चेहरे पर भी उनके बहुत झुर्रियां थी …
काला रंग..
कुल मिलाकर बहुत ही मध्यवर्गीय लग रहे थे…
उसी जगह रोहन का परिवार एक वेल स्टैंडर्ड ,,सूट बूट पहने..
जिन पर पूरे मोहल्ले वालों की नजर जा रही थी …
हमारे यहां यह मोहल्ला बहुत ही पुराना है …
पुश्तैनी मकान है सभी के…
तो इस वजह से गाड़ी आने में थोड़ी समस्या होती है …
आशा करता हूं आपको ज्यादा तकलीफ नहीं हुई होगी …
बटुक नाथ जी बोले ..
नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं ..
तो चलिए फिर …
बटुक नाथ जी आगे आगे चल रहे थे..
उनके पीछे-पीछे सभी लोग आ रहे थे…
रास्ते में गोबर पर रोहन का पैर पड़ने ही वाला था …
कि तभी उसका हाथ मनोरमा ने पीछे खींच लिया…
10 साल का भांजा छोटू बोला …
अभी मामू का हैप्पी बर्थडे हो जाता मम्मा…
घर आ चुका था …
सभी लोग अंदर आए ..
उन्हें बाहर आंगन में ही कुर्सियां दे दी गई..
और बैठा दिया गया…
यह बात शायद भाई साहब को अच्छी नहीं लगी ..
कि उन्हें अंदर नहीं ले गए…
बड़े-बड़े मूढ़े थे …
जो पुराने जमाने में हमारे बाबा मां के समय में हुआ करते थे..
आज भी कई घरों में देखने को मिल जाते हैं …
उस पर सभी लोग बैठ गए..
कुछ औपचारिक बातें हुई…
बटुकनाथ जी ने बताया..
कि हम बहुत ही साधारण लोग हैं..
दो बेटी हैं मेरी ..
और एक बेटा है ..
बेटा अभी सातवीं क्लास में है…
पढ़ाई कर रहा है ..
बिटिया ने एमए कर ली है ..
सिलाई ,कढ़ाई, बुनाई सब जानती है..
उसकी मां ने सिखाई है ..
और पाककला में भी बहुत निपुण है ..
बस मेरे बच्चे ही मेरी धरोहर है ..
यह बहुत बड़ी धरोहर है भाई साहब…
वीरेंद्र जी बोले..
तभी चाय नाश्ता के लिए बटुक नाथ जी ने आवाज लगाई..
दो औरतें हाथों में ट्रे लिए हुए चाय और नाश्ता लेकर के आयी…
सामने ट्रे में पारले जी के बिस्कुट और एक प्लेट में भुजिया थी…
वह भी स्टील की प्लेट में …
कपों में चाय नाक तक भरी हुई थी …
जिसे देखकर सभी एक दूसरे के चेहरे देख रहे थे..
देख क्या रहे हैं समधी जी..??
चाय लीजिए …
बटुक नाथ जी बोले…
हां जी ले रहे हैं..
अब रोहन के परिवार वाले समझ नहीं पा रहे थे..
आखिर कप कैसे उठाएं ..
जी चाय थोड़ी ज्यादा है …??
क्या bowl मंगवा देंगे ….
मनोरमा बोली ..
अच्छा …
ओ रे बंटी..
जरा अपनी गेंद ले आ….
यह लला खेलेगा शायद …
नहीं नहीं ..
मैं बॉल कि नहीं बोल रही…
कटोरी की कह रही हैं गुड़िया …
उसमें चाय कर देंगे जो एक्स्ट्रा है..
रविकांत जी बोले ..
मीना जी तो बस मुस्कुरा रही थी …
जिसे देख देख कर रविकांत ,रोहन , मनोरमा चिढ़ रहे थे…
तभी मनोरमा मां के पास आकर बैठ गयी…
मम्मा आप तो बहुत खुश हो रही हो…??
क्या तुम्हें यहां का atmosphere अच्छा लग रहा है …??
लड़की सर्वगुण संपन्न है …
देखना तू ..
अभी भी मीना जी मुस्कुरा रही थी..
चाय कोई ज्यादा नहीं है …
पी लीजिए …
बटुकनाथ जी बोले..
उनकी इस बात पर किसी तरह सभी लोगों ने चाय उठाई..
बातें तो होती रहेंगी बटुक नाथ जी ..
हमें कहीं और भी जाना है ..
अगर आप लड़की को बुला देते तो ज्यादा अच्छा रहता…
वीरेंद्र जी बोले ..
अब रोहन के चेहरे पर मुस्कान आ गई…
मनोरमा भी खुश थी ..
हां हां जी..
क्यों नहीं ..
ए मीरा..
जरा चिंकी को तो लेकर आ…
चिंकी नाम सुनकर मनोरमा हंस पड़ी…
भाई चिंकी भाभी…
मैं ही लेकर आता हूं…
तभी अंदर ऐसे लगा भूचाल आ गया हो…
घर की लड़की मीरा गई..
चिंकी जीजी चलो …
घर की दो औरतें चिंकी को लेकर आ रही थी..
चाय पीते हुए रोहन की नजर चिंकी की ओर गई..
वह तो ह्क्का बक्का रह गया…
जय श्री राधे
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यह आजकल के बच्चे (भाग-4) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi
मीनाक्षी सिंह
आगरा