ये कैसी पहचान – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : रात फिर अविरल और मानसी की लड़ाई ने उग्र रूप ले लिया, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मुझे धोखा देने की…”

  “मैंने तुम्हे कोई धोखा नहीं दिया, “अविरल शांत स्वर में बोला.

  ” मैंने अपनी आँखों से तुम्हे रिया के साथ देखा, वो क्या था…??

    “किसी के साथ कॉफी पी लेना धोखा नहीं होता, मेरी रिया के साथ सिर्फ दोस्ती है, इससे ज्यादा और कुछ नहीं है “

   “मैं झूठ बोल रही हूँ, क्या तुम रिया को अपना कोट नहीं पहना रहे थे “

    “पहनाया था, क्योंकि वो बारिश में भीग गई थी, और असहज महसूस कर रही थी “

     “तुम्हारी महिला मित्र है ये तो तुमने कभी बताया नहीं “

     “मेरी तो मित्र है, भले ही वो महिला है, लेकिन तुम्हारा तो कोई मित्र ही नहीं है, क्योंकि स्वार्थ में डूबी तुम रिश्तों को कहाँ देख पा रही हो…”

    अविरल ने मानसी को बहुत समझाया, लेकिन मानसी के मन का शक दूर नहीं हुआ, लड़ाई ने वो रूप धारण कर लिया, जहाँ से दोनों ने अलग हो जाना बेहतर समझा..।

  “मैं जा रहा मानू, तुम अपने अहम में कौन सी पहचान बनाने में लगी हो,मैं समझ नहीं पाया , तुम्हारे हाथ से रिश्ते ही नहीं उम्र भी फिसलती जा रही है, समय मिले तो जरा आईने में भी अपना चेहरा देख लेना…”कहते अविरल अपनी सूटकेस ले कर बाहर आ गया। बाहर तो आ गया, लेकिन दिल घर में ही छूट गया, आँखों के कोर को साफ कर आगे बढ़ गया।

  कई बाऱ जीवन में कठोर निर्णय लेने की जरूरत पड़ती है।

      

  मानसी काठ बनी खड़ी रही, ना अविरल को रोक पाई ना जाना बर्दाश्त कर पा रही थी, धीरे कदमों से बैडरूम में आई, खिड़की के पास खड़ी हो खुले आसमान में उड़ते पक्षी को देख उसका मन भर आया, कितनी भी उड़ान भरे लेकिन लौट कर अपने घर तो आते है, उसे भी तो अपनी उड़ान की सीमा समझनी चाहिए थी।

    ड्रेसिंग टेबल के सामने ख़डी हुई, निगाहें आईने पर पड़ी तो चौंक गई,”चेहरे पर पड़ती हल्की लकीरें और बालों में चमकती चांदी….. ये कौन है… आईना हँस पड़ा,”तू खुद को नहीं पहचान पा रही “

  “ना, ये मैं नहीं हूँ, मेरे रूप और बालों के लोग दीवाने हुआ करते थे “

     “थे…. अब नहीं, बिना देखभाल के कुछ नहीं पनपता, चाहे वो पौधे हो या रिश्ते या शरीर…”

      सही कहा आईने में दिखते अक्स ने, उसकी लापरवाही से उसका शरीर, रिश्ता सब खतम हो गया, क्योंकि अपनी पहचान बनाने के लिये उसने सब कुछ दांव पर लगा दिया,कुछ बूँदे आँखों से निकल आई,समय तो रफ़्तार से चलता रहा, लेकिन वो समय के महत्व को समझ नहीं पाई।

  तभी मोबाइल पर मैसेज आया, फिर मैसेज के बाढ़ आ गये, कंपनी ने उसे सी. ओ. बना दिया, उसने अपना मुकाम तो पाया पर किस आधार पर…, माँ, पत्नी, पारिवारिक मूल्यों को खोने की कीमत अदा करने के बाद ये उपहार मिला….. मानसी समझ नहीं पा रही थी रोये या हँसे…,अपनी एक ठोस पहचान तो बना ली, सिर्फ अपने लिये सोचा, स्वार्थी बन कर……..।

विगत में डूबी मानसी के आगे अतीत चलचित्र की भांति घूम गया।

 मानसी और अविरल दोनों सहपाठी थे, इंजीनियरिंग के दूसरे साल ही नोट्स के आदान -प्रदान के साथ ही दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठे, दोनों ही पढ़ाई में अव्वल थे।

    प्रेम की वजह से पढ़ाई में आते व्यवधान को देख एक दिन मानसी ने अविरल से कहा, “अभि, हमारा प्रेम हमारी पढ़ाई को प्रभावित कर रहा है, जबकि अभी हमें अपना कैरियर बनाना है, हम लोग अपनी पढ़ाई पर फोकस करें, जब कैरियर बन जायेगा तब आगे सोचेंगे “

   “पर मानू प्रेम से पढ़ाई कहाँ डिस्टर्ब हो रही है “

     “तुमको दिख नहीं रहा, पहले हम क्लास में पहले -दूसरे नम्बर पर थे, लेकिन इस सातवें सेमेस्टर में तीसरे -चौथे नम्बर पर आ गये, अंतिम सेमेस्टर में मुझे टॉप करना है, अतः अब घूमना फिरना बंद करना पड़ेगा”

   “अरे, पढ़ाई आगे -पीछे चलता रहता है,”अवि ने लापरवाही से कहा

   “देखो अवि, मैं इंजीनियरिंग करके एक सफल इंजीनियर बनना चाहती हूँ, आई. टी. क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाना चाहती हूँ, इसके लिये मुझे ज्यादा मेहनत करना होगा, मैं अपने कैरियर को घूमने -फिरने में खराब नहीं करना चाहती हूँ,इसलिये आज से मिलना बंद.., तुम भी अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो “

       उस दिन से दोनों अपनी पढ़ाई में लग गये, अंतिम सेमेस्टर में मानसी ने टॉप किया, दूसरे स्थान पर अविरल रहा..।दोनों का मल्टीनेशनल कंपनी में सिलेक्शन हो गया।

      अविरल के आग्रह पर मानसी ने शादी तो कर ली, लेकिन अविरल को आगाह कर दी, अभी कुछ सालों तक “वो अपने कैरियर पर फोकस करेंगी, फैमिली बढ़ाने पर नहीं, अपनी माँ को भी समझा दो, जो सुबह -शाम” दूधो नहाओ पुतो फलो “का आशीर्वाद देती रहती है “।

         अक्सर रात के सन्नाटे में बेटे -बहू के कमरे से आती आवाजें, अल्पना जी को विचलित कर जाती,

     .”मानू, अब सो जाओ बारह बज गये “लैपटॉप बंद करते अविरल बोलता

       कुछ समय तक मानू अविरल के प्रेम में लैपटॉप बंद कर देती थी, लेकिन धीरे -धीरे वो चिढ़ने लगी…।

    रोज लड़ाई होती थी, कुछ दिन बाद अविरल ने लड़ना बंद कर, मुँह फेर कर सोना सीख लिया, मानसी ने चैन की सांस ली, लेकिन दूर खड़ा भविष्य उस पर हँस रहा था, आते खतरे को वो देख ना सकी…।

     घर में बच्चे की आस लिये पहले ससुर फिर सास चली गई…, पर मानसी ने,” अभी नहीं “की जिद नहीं छोड़ी, समय अपनी रफ़्तार से चल रहा था, आज उसकी शादी की पंद्रहवी वर्षगांठ थी, बहुत दिनों बाद मानसी मार्केट निकली कुछ गिफ्ट खरीदने, जहाँ उसने अविरल और उसकी महिला मित्र रिया को देखा।

    घर आ अविरल का इंतजार किया, उसके आने पर खूब लड़ाई झगड़ा हुआ, जिसका अंत अविरल के घर छोड़ने से हुआ।

        पर अविरल गलत तो नहीं कह रहा, अपनी पहचान बनाने के लिये उसने अपने आस -पास किसी को पनपने नहीं दिया, किस जूनून में जी रही थी, ऐसी पहचान का क्या फायदा,जिसकी वजह से आप सब कुछ खो बैठे…., अविरल से लाख झगड़ा करती थी, पर उसके बिना जीने की कल्पना भी नहीं की थी, देर जरूर हो गई, लेकिन रिश्तों को वो सुधार लेगी।

       मोबाइल पर अविरल को मैसेज डाला,”मिस यू अवि.., लौट आओ “

      और पार्लर जा, अपना हुलिया ठीक किया, अविरल के पसंद की मिठाई ले घर आ गई 

         दरवाजे की घंटी बजी, अविरल सामने था, अविरल मानसी को देख हैरान था, नीले रंग की साड़ी में मानसी आज भी सुंदर लग रही थी, आँखों ने मौन संवाद किया और मानू खुले उन बांहो में समा गई, जो उसके प्यारे रिश्ते की पहचान थी, मानू में खूबसूरत पहचान थी, जो दिल को छुती थी।

     प्रोफेशन लाइफ में आपको समाज में पहचान मिलती है, लेकिन आपके रिश्ते, व्यवहार दूसरों के दिल में अपनी पहचान बनाते है।

                                —-संगीता त्रिपाठी

                              गाजियाबाद

    #पहचान

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