यह घर भी तुम्हारा है – लतिका श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

ऑटो रुक गया था जैसे ही सोनाली ने बैठने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए ऑटो के अंदर किसी को  देख तत्काल कदम भी मानो बाहर आने को तत्पर हो उठे थे..।

मैडम बैठना है कि नहीं बैठना मेरा टेम खोटी मत करो ऑटो ड्राइवर की तीखी प्रतिक्रिया और घर जल्दी पहुचने की विवशता ने उसके पैरो को वापिस ऑटो के अंदर पहुंचा दिया था  …!

तुम तुम सोनाली हो ना…!कहां चली गईं थीं तुम..!!अंदर बैठे शख्स ने उसे देखते ही अधिकार पूर्ण शिकायत के साथ अधीर सी टिप्पणी की जिसके जवाब में सोनाली सिर्फ सिर झुका कर सहमति ही दे सकी थी मुंह में तो जैसे किसी ने ताला जड़ दिया था।

तुषार ही था यह सोनाली उसे देखते ही पहचान गई थी इसीलिए उसका सामना करने से बचने के लिए ही ऑटो में नहीं बैठ पा रही थी।

इन पांच वर्षों में कितना बदल गया है पहले तो क्लीन शेव रहता था अब ये बाबा वाली दाढ़ी रख ली थी आधी शकल तो दाढ़ी मूंछ से ही ढंक गई हैं अब आंखों पर काले फ्रेम का चश्मा भी लग गया था जिसके कारण चेहरा काफी गंभीर दिखाई देने लगा था।

तुषार तो जैसे अपलक सोनाली को ही देख रहा था वही कोमल चेहरा स्निग्ध मुस्कान निश्छल आंखे…उसकी नजरें हर पल सोनाली  खुद पर महसूस कर रही थी।

ऑटो की घर्रार घर्र आवाज उन दोनो के दिलों में यकायक उफन आए सैलाब को नहीं दबा सकी थीं।

तब तक तुषार का घर आ गया था… वही घर जिसे मकान से घर बनाने में सोनाली ने दिल जान लगा दी थी लेकिन तुषार ने उस मकान को घर बनने ही कहां दिया था…!!

एक ऐसा मकान जो तुषार के ख्वाबों का महल था जिसमे भव्यतम आधुनिक सुख सुविधाएं थीं.. एक ऐसा मकान जिसमे हर दिन वह मूल्यवान सामान सजाता था और अपने सभी परिचितों को मित्रो को नाते रिश्तेदारों को बुला बुला कर अपने महल नुमा मकान में घुमाया करता था तारीफे सुना करता था ।तारीफे ही सुनने के लिए आलीशान पार्टियां भी उसी मकान में आए दिन दिया करता था।अपनी सारी कमाई उसी मकान की साज संवार में और आए दिन होने वाली पार्टियों में उड़ा दिया करता था।

और सोनाली ..!!वह तो महज उसके इशारों पर चलने वाली कठपुतली की तरह थी। पत्नी होकर भी प्रियतमा अर्धांगिनी जीवनसाथी जैसे शब्दों से कोसों दूर थी वह ।वह चाहती थी ये सब बनना वह चाहती थी तुषार के हर निर्णय में साथ रहना हर पार्टी में गर्व से अपने पति के बगल में खड़े होकर सभी आगंतुकों का सम्मान करना वह चाहती थी तुषार के तड़क भड़क मकान में एक बूंद प्यार की एक झालर सम्मान की एक  दिया अपनेपन से रोशन कर उसे घर बना दे ।एक ऐसा घर जो केवल शो पीस ना हो उसी की तरह जो आगंतुकों की सिर्फ तरीफो का ही नहीं कटु आलोचनाओं के लिए भी तैयार रहे।जहां उसे भी पत्नी होने का बराबरी से अपनी बात रखने का राय देने का सम्मान पाने का दर्जा मिल सके ..!!लेकिन बदले में हो क्या रहा था..!!

एक बार शुरू में ही जब उसने निर्माणाधीन मकान में छोटा सा पूजा घर  बनवाने की राय दी थी  तब भी तुषार आपा खो बैठा था यहां कोई पूजा वूजा घर नहीं बनेगा समझी ये मेरा घर है मैने बनवाया है मैं जैसा चाहूंगा वही होगा..!सोनाली सन्नाटे में आ गई थी..!

एक बार फिर…..जब

…..सभी इष्टमित्रों की पार्टी चल रही थी तुषार सबके सामने मेरा मकान मेरा मकान का ही राग अलापे जा रहा था सोनाली ने धीरे से टोक कर उसे रोकना चाहा था तो आपा खो बैठा था… तुम मेरी बेइज्जती कर रही हो सबके सामने मेरे ही मकान में ये मेरा मकान है समझी जैसा चाहूं कह सकता हूं जैसा चाहूं रह सकता हूं तुम होती कौन हो टोकने वाली.!!

अरे यार तुषार ये भाभी श्री का भी तो घर है मेरे भाई भूल मत… इसलिए मेरा नही हमारा मकान  कहा करअभिन्न मित्र दिनेश की ठहाके से कही गई बात ने तो जैसे आग में घी का काम कर दिया था …. नहीं ये सिर्फ मेरा घर है मेरी मेहनत से बना है ….!!इसका कोई योगदान नहीं है इसमें!!तुषार ने हिकारत के भाव से उसकी ओर देखकर कहा था।

उस दिन सोनाली भी आपा खो बैठी थी हमेशा लोकलाज के डर से खुद को समेटने वाली सोनाली खुल कर विरोध कर उठी थी जब मेरी इच्छाओं का मेरे निर्णयों का कोई सम्मान ही नही है यहां तो यहां रहने से क्या फायदा मेरा यहां से चले जाना ही उचित होगा …! तुषार की तटस्थता ने उसे और अक्रोषित कर दिया था और वह चलती हुई पार्टी छोड़ कर उस शहर से तुषार से दूर चली गई थी ….

….लेकिन  इन पांच वर्षों में शायद ही किसी दिन तुषार को भूल पाई थी।

तुषार के घर के सामने ऑटो खड़ा हो गया था हॉर्न की आवाज से दोनों वर्तमान के धरातल पर आ गए थे…तुषार जैसे सोते से जाग उठा था…. ऑटो में बैठे बैठे सोनाली के साथ बिताए अतीत के वे सारे पल सजीव हो उठे थे जो ऑटो के रुकते ही निर्जीव होने लगे थे ….!

कैसी हो सोनाली कुछ बात करने को अकुला उठा था उसका प्रतीक्षित दिल … उसके मुंह से निकल ही गया था !

ठीक हूं बस इतना ही जवाब दे पाई थी वह।

कैसा है आपका घर …ना चाहते हुए भी सोनाली के मुंह से भी निकल गया था।

मेरा ही क्यों तुम्हारा भी तो …बहुत ही आर्द्र स्वर था तुषार का।

सुनते ही सोनाली की नज़रे सहसा ही तुषार की ओर उठ गईं थीं जिनमें एक अनकही शिकायत भी थी तुमने कभी कहा ही नहीं कि# ये घर तुम्हारा भी है..!!

घर तो  तुमसे ही था अब तो मात्र मकान ही रह गया है  तुषार  ने मानो उसकी उठी हुई नजरों को तुरंत अपनी नजरो में जकड़ लिया था….!!सोनाली ने देखा….अपराध करने जैसा पश्चाताप था उन नजरो में इन बीते पांच वर्षों के एक एक लम्हे की कहानी और साथ जुड़ी माफी थी उन नजरो में ….सोनाली के प्रति पूर्ण सम्मान देने वाली नीयत थी उन नजरों में..!

सोनाली का सर्वांग लरज उठा था उन नजरों की मजबूत जकड़न से .. जुबान खामोश थी सन्नाटा पसर गया था….।।

साहब आपको यहां उतरना है कि नहीं उतरना …काहे मेरा टेम खोटी कर रहे हैं… ऑटो ड्राइवर की तीखी आवाज ने सोनाली की नजरों को फिर नीचे झुका दिया था लेकिन अब तुषार की नजरो के साथ जुबान भी कह उठी थी ..इन बीते पांच वर्षों के हर लम्हे ने मुझे चिल्ला चिल्ला कर बताया है कि यह मकान जिसे तू मेरा मकान कह घमंड में फूला रहता है यह तो एक ठूंठा ईंट पत्थर सीमेंट का  निर्जीव आत्मा रहित मकान  है जो एक दिन नष्ट हो जायेगा…….मैं संवारता रहा इस निर्जीव इमारत को सजीवता प्रदान करता रहा और अपने ही सजीव होते घर को बेजान करता गया… इसकी आत्मा इसका दिल इसका जीवन तो तुम ही थीं और अब भी हो … लो मैं अब कह रहा हूं …..

………#ये घर तुम्हारा भी है सोनाली …!!अब भी घर बनने के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहा है आओ और इसे एक बार फिर अपना घर बना दो….!!

सोनाली की नजरें एक बार फिर तुषार की नजरों से जा मिलीं थीं और कदम  तुषार के कदमों से जा मिले थे..!!

#ये घर तुम्हारा भी है#वाक्य कहानी प्रतियोगिता।

लतिका श्रीवास्तव

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