ये धन संपति अच्छों अच्छों का दिमाग खराब कर देती है – डोली पाठक : Moral Stories in Hindi

मरणासन्न पर लेटे हुए दशरथ जी ने बड़े बेटे प्रभाकर का हाथ थामते हुए कहा -बेटा तुम इस घर के बड़े बेटे हो।

मेरे बाद इस घर परिवार और भाईयों की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर हीं है।

बेटा कोशिश करना कि, तुम्हारे भाईयों को अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा मिले।

मैं अब ज्यादा समय का मेहमान नहीं हूं।

दशरथ जी ने बड़े बेटे का हाथ कसकर पकड़ लिया और गहरी सांसें लेने लगे।

वहीं हुआ जिसका डर था।

दशरथ जी अल्पायु में हीं स्वर्ग सिधार गए।

पिता की सारी जिम्मेदारी प्रभाकर पर आ गई।

अपनी पढ़ाई छोड़ कर वो पिताजी की विरासत संभालने लगा।

दोनों छोटे भाई पढ़ लिखकर अच्छे-अच्छे पदों पर आसीन हो गये और शहर में जाकर बस गए।

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कहते हैं कि ये धन-संपत्ति अच्छे-अच्छों का दिमाग खराब कर देती है

पैतृक संपत्ति पाते हीं प्रभाकर को बुरी लत लग गई।

पूरे दिन शराब और शबाब में डूबे  प्रभाकर को  अब तो खानदान के मान सम्मान की भी परवाह नहीं रही…

और ना हीं अपने उम्र का लिहाज रहा…

आरंभ में तो दोनों भाईयों ने लिहाज बस कुछ ना कहा परंतु जब पानी सर से ऊपर जाने लगा तो छोटे भाई ने प्रभाकर को खूब समझाया।

खानदान के मान मर्यादा की दुहाई दी, परंतु प्रभाकर को ना सुधरना था ना हीं सुधरा…

प्रभाकर के चार बेटे थे चारों बेटों ने भी पिता की इन गलतियों पर कोई आवाज नहीं उठाया।

उन्हें तो बस इस बात से मतलब था कि,नशे में लिप्त उनका पिता बस उन्हें पैसे देता रहे।

अथाह पैतृक संपत्ति होने के कारण पैसे रूपए की कोई कमी तो थी नहीं….

बेटे हर जायज़ नाजायज काम के लिए पिता से मनचाहा पैसा लेते रहे और पिता शराब और शबाब के नशे में लिप्त रहा….

दोनों भाईयों ने भी समय रहते प्रभाकर की इन नाजायज हरकतों पर अंकुश नहीं लगाया।

बिना मेहनत के मिले पुरखों की संपत्ति ने सबके मस्तिष्क से सही गलत सोचने की शक्ति हीं छीन लिया।

सही कहते हैं कि ये धन दौलत अच्छे-अच्छों का दिमाग खराब कर देती है।

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नशे की हालत में भी प्रभाकर को अपने बेटे और उनका परिवार तो स्मरण रहा परंतु भाईयों का हिस्सा उन्हें सौंपने का बिल्कुल भी भान नहीं रहा।

छोटे भाई ने एकाध बार अपनी संपत्ति का बंटवारा करने का प्रस्ताव भी रखा परंतु मंझले ने तो सब-कुछ उस शराबी भाई के सुपुर्द कर दिया।

मंझले भाई को तो इतना भी ख्याल नहीं आया कि पैतृक संपत्ति हमारी विरासत है इसको बचाना और आने वाली पीढ़ियों हस्तांतरित करने की जिम्मेदारी हम पर है।

वो तो बस अपनी नौकरी और शहरी परिवेश को हीं सब-कुछ मान बैठे,

लिहाजा प्रभाकर का दिमाग इतना चढ़ गया कि पैतृक संपत्ति में भाईयों का भी हक है ये बात वो भूल हीं गया।

धन के लोभ में अंधे उसके बच्चों ने भी कभी उसे समझाने की चेष्टा नहीं कि,सबका हिस्सा उन्हें सौंप दें…

वो भी पिता के इन कुकृत्यों में बराबर की साझेदारी करते रहे…

ये धन-दौलत अच्छे-अच्छों का दिमाग खराब कर देती है जब ये बिना मेहनत के मिल जाती है।

डोली पाठक

पटना बिहार

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