“ माँ माँ जल्दी से यहाँ आओ … ये देखो क्या हो गया है ?” आठ साल की कुहू सुबह अपने बिस्तर की ओर इशारा करती हुई अपनी माँ से बोली
पोती की आवाज़ सुन सुनयना जी भी कमरे में आ गई….
“ कुछ नहीं हुआ बेटा… ये दाग अच्छे हैं बस ज़रा थोड़ा रूक कर लगते तो अच्छा होता !” बेटी को लेकर चिंतित चारू ने कहा
“ मुझे क्या हुआ है माँ…?” आश्चर्य से कुहू पूछने लगी
“अब तू सयानी हो गई है… गया तेरा बचपना….देख बहू इसको भी सब समझा देना… मेरे पूजा घर में ना जावेगी..और ना मेरे बिस्तर पर ही बैठेंगी…और रसोई..।” सुनयना जी आगे कुछ कहती चारू ने उनकी बात पर पूर्णविराम लगाते हुए कहा,“ माँ जी मैं रसोई वाली बात ना मानूँगी…आप को दिख नहीं रहा ये अभी कितना छोटी है…
सब का शरीर एक जैसा नहीं होता … ये अभी खुद बच्ची है…पहले इसे अच्छी तरह ये सब समझ तो लेने दीजिए…..।” कहती हुई चारू कुहू के सवालिया निगाहों को सब ठीक है कह कर उसे बाथरूम में ले जाकर कपड़े बदले …फिर उसकी चादर हटा कर सब साफ कर उसे पास बिठाकर माहवारी के बारे में सब समझाने लगी
“ओहह मम्मा अब ये दाग हर महीने होंगे…?” उदास सी कुहू ने कहा
“ हाँ बेटा ये हर लड़की को होता है और ये अच्छा होता है… चलो ज़्यादा विस्तार में फिर कभी बताऊँगी पहले ये बताओ तुम्हारे पेट में तो दर्द नहीं हो रहा ना?” चारू ने पूछा
“ नहीं मम्मा… ।” कुहू अपने शरीर में हुए इस अचानक वार के साथ दादी के नियमों को सुन परेशान हो रही थी…
किसी तरह चारू कुहू को प्यार से बहला कर स्कूल भेजी और फोन कर उसकी क्लास टीचर को बता भी दी कि कोई बात हो तो प्लीज़ मुझे सूचना दे दे।
आज चारू का मन बेटी को लेकर ज़्यादा ही व्यथित हो रहा था…. वो अपने अतीत में विचरण करने लगी
“ देख सुलेखा तेरी बेटी को किसी बड़े डॉक्टर को दिखा… पन्द्रह की हो गई है इसके साथ की सभी लड़कियों को माहवारी आने लगी इसे ना आया अब तक ….देखना फिर ब्याह बाद कितनी दिक़्क़त होगी…बाल बच्चा ना हुआ तो ससुराल वाले इसे इसी देहरी पड़ छोड़ जाएँगेऔर इसकी सौतन ले आएँगे ।” चारू की दादी राजबाला जी अपनी बहू को चारू को लेकर चार साल से सुनाए जा रही थी….
हार कर सुलेखा जी चारू को डॉक्टर को दिखाने ले गई..
“ देखिए अभी ऐसा कुछ नहीं है जो आप परेशान हो रही है…इसमें ऐसी कोई कमी भी नहीं है …एक दो साल बाद अपने आप हो जाएगा… जब नहीं होगा तब फिर कुछ जाँच करवा सकते ..मेरे ख़याल से अभी परेशान होने जैसी कोई बात नहीं है।”लेडी डॉक्टर ने चारू की जाँच कर कहा
सुलेखा जी भी तसल्ली कर राजबाला जी को डॉक्टर की सारी बात बता दी ताकि अब राजबाला जी सुलेखा जी को ताने ना मारे
इधर एक साल गुजरने को था पर चारू को अब तक माहवारी ना आई थी…..अब उसे भी दादी की बात सच लगने लगी थी….माहवारी ना हुई तो फिर दादी के ताने… ब्याह हो गया तो बच्चा ना होगा फिर ससुराल वाले यहाँ छोड़ जाएँगे…
वो अब भगवान से प्रार्थना करने लगी… मेरी दादी के तानों से बचा लो ना भगवान जी…मेरी सभी सहेलियों की शादी हो जाएगी वो माँ भी बन जाएगी और मैं…?” चारू मन ही मन भगवान से जाने कितनी विनती करती रहती
नया साल शुरू हुआ ही था कि एक दिन चारू पेट पकड़कर बैठ गई दर्द के साथ उसे माहवारी शुरू हो गया…असहनीय पीड़ा के साथ उसके दिन गुजर रहे थे कभी-कभी अत्यधिक रक्तस्राव से कपड़े बिस्तर सब गंदे हो जाते… वो रोते हुए माँ से कहती,“ माँ कितना अच्छा था पहले ही जब माहवारी नहीं होता था…अब देखो जहाँ तहाँ दाग लग जाता है…इतना सँभल कर रहना पड़ता है…।”
बेटी के मायूस चेहरे को अपने हाथों में लेकर सुलेखा जी कहती,” बेटी ये दाग बहुत अच्छे हैं… जानती है ये ही तो बताते हैं कि एक लड़की में माँ बनने के लक्षण मौजूद है…हाँ इसके लक्षण सब में अलग अलग हो सकते हैं…
किसी को माहवारी के दौरान कोई समस्या नहीं होती… कोई रो रोकर बेहाल हुआ जाता है…पर बेटी ये होना एक लड़की के लिए सौभाग्य की बात है… बस तुम हिम्मत रखो खुद को ख़ुश रखने की कोशिश करना… फिर देखना ये चार पाँच दिन यूँ ही निकल जाएँगे….
राजबाला जी ने जब से सुना तो ठाकुर जी के हाथ जोड़ आई कि उनकी पोती में कोई कमी ना है।
वक्त के साथ उचित समय पर चारू की शादी भी हो गई….जब पहली बार माहवारी बंद हुई तो अंदर कुछ और ही आहट का आग़ाज़ हुआ….. और उसे माहवारी की महिमा समझ आ गई ।
“ माँ…।” कूहू की आवाज़ सुन चारू वर्तमान में लौट आई
“माँ पता स्कूल में टीचर ने भी मेरा ध्यान रखा … कह रही थी… बेटा कुछ भी दिक़्क़त लगे तो मुझे बताना उन्होंने मुझे ये भी कहा ज़रूरत हो तो पैड के लिए बोलना।” कहते हुए कुहू फ्रेश होने चली गई
“और पता मम्मा…वो आरव है ना वो मुझे चिढ़ा रहा था क्या बात है तू आज खेलने नहीं गई इधर चुपचाप क्यों बैठी है तब टीचर ने उसे बुलाकर कहा…वो नहीं खेलने जा रही कोई कारण होगा… तुम उसके दोस्त हो तो उसके पास बैठ जाओ…।” कुहू खाना खाते खाते चारू से बोली
“हाँ बेटा लड़कियों के माहवारी की कोई उम्र तय तो होती नहीं है… अब तो बहुत कम उम्र में माहवारी शुरू हो जाता है…
ऐसे में कब कहाँ हो जाए ये तो पता नहीं चलता…. और अंजान लड़कियाँ उन दाग को छिपाने के लिए शर्म से गड़ी जाती है…ऐसे में लड़कों को भी समझाना चाहिए…. जब उन्हें भी पता होगा तो वो लड़कियों की मदद कर सकते हैं ।”चारू ने कुहू को समझाते हुए कहा
चारू अपने अतीत के तानों से इतना तो समझ गई थी ये दाग मेरी बेटी की ज़िंदगी में ख़ुशियाँ लेकर आएँगे…इसलिए बेटी को प्यार के साथ समझाना ज़रूरी था ताकि वो इसे आफत ना समझ हर महीने का एक चक्र समझ कर उसे मानसिक रूप से स्वीकार कर सकें ।
दोस्तों आज के समय में वैसे बच्चे बहुत जागरूक हों चुके है… उन्हें छोटी सी उम्र में ही बहुत ज़्यादा जानकारी मिल जाती है…..
मुझे लगता है हर माँ को अपनी बेटी को तो इसकी जानकारी देनी ही चाहिए साथ ही साथ अपने बेटों को भी समझाना चाहिए कि अगर किसी लड़की को अचानक माहवारी शुरू हो जाए और आप वहाँ पर उपस्थित हो तो उसकी घबराहट या स्थिति देख उसका मज़ाक़ ना बनाएँ अपितु उसकी ओर मदद का हाथ बढ़ाए ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
स्वरचित
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