” क्या हुआ बाऊ जी, किसका फ़ोन था?? ,, मेंहदी रचे हाथ लिए जब वसुधा कमरे में आई तो अपने पिता को फोन के पास परेशान बैठे देख पूछ बैठी।
” कुछ नहीं बेटा, बस यूं ही किसी रिश्तेदार का था …..! और तुम इधर उधर क्यों घूम रही हो बेटा… थोड़ा आराम कर लो …. सारा दिन रस्मों रिवाज में बीतेगा तो थक जाओगी । ,, आशुतोष जी ने प्यार से अपनी बिटिया का सर पुचकारते हुए कहा।
पिता के स्नेह भरे स्पर्श से वसुधा की आंखें आज नम हो गई थीं। कल शादी के बाद वो इस स्पर्श को कितना याद करेगी…. एक तरफ नए जीवन की शुरुआत की खुशी और दूसरी तरफ विदाई का गम …. लड़की के जीवन का यही सत्य है।
” बेटा, तुम्हारी अनिकेत से बात तो होती है ना … ,,
पिता के इस सवाल से वसुधा थोड़ा शर्मा गई और सिर्फ गर्दन हिलाकर हां में जवाब दिया।
” उसने कुछ कहा तुमसे?? ,, आशुतोष जी ने फिर सवाल किया ।
वसुधा ने प्रश्नवाचक निगाहों से पिता की ओर देखा फिर पूछा, ” किस बारे में पापा। !! ,,
” अरे, कुछ नहीं … जाओ तुम आराम करो। ,, आशुतोष जी ने मुस्कुराते हुए कहा लेकिन उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें देखकर वसुधा को आशंका हो रही थी
कि जरूर कोई बात है जो पापा खुल कर पूछ नहीं रहे। या फिर मुझे बताना नहीं चाहते। वसुधा का मन विचलित हो रहा था लेकिन वो खुद भी खुल कर पूछ नहीं पा रही थी …..
शाम को इधर वसुधा दुल्हन का जोड़ा पहनकर तैयार हो रही थी और उधर अनिकेत भी सेहरा बांधे बारात के साथ तैयार था।
वसुधा के घर में सारी तैयारी तो हो रही थी लेकिन एक अजीब सी चुप्पी पसरी हुई थी। वसुधा ने मां से पूछने की कोशिश की लेकिन मां ने भी कुछ नहीं बताया।
बारात निकलने के समय वसुधा के पास अनिकेत का फोन आया तो वसुधा ने लपककर फोन उठाया।
” वसुधा…. मैं आ रहा हूं तुम्हें लेने …. मेरी दुल्हन तैयार तो है ना ?? ,,
” जी… मैं भी बस तैयार ही हूं ….. अनिकेत जी , सब ठीक तो है ना ?? पापा के साथ आपकी कुछ बात हुई है क्या ?? ,, वसुधा ने थोड़ा रूकते हुए पूछ लिया।
” नहीं तो …. हां कल पापा की बात हुई थी …. अच्छा वो सब छोड़ो आज तो हमारी शादी है तुम बस उसके बारे में सोचो । ,, अनिकेत ने बात टालते हुए कहा।
बारात दरवाजे पर पहुंच गई थी सब ने आगे बढ़कर बारात का स्वागत किया । वसुधा भी अपने कमरे की खिड़की से बाहर का नजारा देख रही थी।
काफी देर हो चुकी थी लेकिन वसुधा को वरमाला के लिए बुलाया नहीं जा रहा था। कमरे में वो अपनी सहेलियों से पूछती तो कोई भी कुछ बता नहीं रहा था तभी वसुधा का छोटा भाई कमरे में आया तो वसुधा पूछ बैटी। बंटी नीचे क्या हो रहा है ?? पापा मम्मी कहां हैं ?? ,,
” दीदी , पापा और जीजू के पापा लोग सब बातें कर रहे हैं पापा उनके सामने बार बार हाथ जोड़ रहे हैं लेकिन वो लोग बहुत गुस्सा हैं ,,
वसुधा का दिल तेजी से धड़कने लगा। अब उससे रूका नहीं गया और वो खुद ही नीचे पहुंच गई जहां लडके वाले और उसके पापा की बहस हो रही थी । दरवाजे पर ही वसुधा के पैर ठिठक गए । वसुधा के पापा हाथ जोड़े गिड़गिड़ा रहे थे ,” समधी जी , मैं जल्दी ही कोई इंतजाम कर दूंगा लेकिन अभी मेरी गुंजाइश नहीं है गाड़ी देने की …. ,,
अनिकेत के पापा तन कर सामने खड़े थे ,” देखिए समधी जी, हमने पहले ही कह दिया था कि बहू हम तभी विदा कराके ले जाएंगे जब आप गाड़ी देंगे ….
अरे हमारे बेटे के लिए तो करोड़ों के रिश्ते आ रहे थे लेकिन हमने फिर भी आपसे रिश्ता जोड़ा …. यदि गाड़ी नहीं आई तो हम बारात वापस ले जाएंगे …. सोच लीजिए आपकी कितनी बदनामी होगी…… ,,
वसुधा के पापा ने अपनी पगड़ी उतारने लगे तो वसुधा से रूका नहीं गया ,” बस पापा, आपको कोई जरूरत नहीं ऐसे लोगों के सामने गिड़गिड़ाने की। अच्छा हुआ जो
इनका असली चेहरा अभी ही सामने आ गया वर्ना मुझे जीवन भर ऐसे परिवार का हिस्सा बनना पड़ता जहां मेरे पिता का कोई सम्मान नहीं होता। और हां …. अंकल जी ….
ये आपकी गलतफहमी है कि बदनामी सिर्फ लड़की वालों की होती है …. अब वो जमाना गया कि लड़की वालों को जो चाहे वो कह दो…
मेरे पिता ने मुझे इस काबिल बनाया है कि मैं सर उठाकर समाज में जी सकती हूं … आप बस अपनी और अपने बेटे की फ़िक्र करें क्योंकि ऐसे दहेज लोभियों के यहां कोई अपनी बेटी नहीं देना चाहेगा। ,, वसुधा अपनी रौ में बोलती चली गई और सब उसका मुंह ताकते रहे।
अनिकेत के पिता को उलटे पांव वहां से खाली हाथ और खाली बारात लेकर वापस लौटना पड़ा।
कुछ दिनों तक वसुधा के परिवार में भी एक सदमा सा बना रहा लेकिन बेटी की इस बहादुरी पर उसके पिता को गर्व था। उन्हें यकीन था कि उनकी बेटी कभी उनका सर नहीं झुकने देगी।
सविता गोयल