वासु देख तो दरवाज़े पर कोई है
दादी आप भी सठिया गई हो ,कोई भी तो नहीं है
घड़ी घड़ी बोलती रहती हो
दरवाजे पर कोई है, दरवाजे पर कोई है
जब कि कोई भी नही है, कितनी बार तो देख चुका हूं
एक आह भर कर वासु फिर से खाली कमरे में पड़े बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ गया।
6 महीने पहले ऐसे ही उसके मम्मी पापा दोनो किसी काम से बाजार गए थे और दादी को थोडी देर में आने का बोल कर गए थे
मगर वो फिर कभी वापस नहीं आए
वासु खुद अभी 15 साल का है लेकिन दादी की दिमागी हालत देख कर बेचार खुद का दुःख तो भूल ही गया है
वासु देख दरवाजे पर कोई आया है
जल्दी देख तेरे मम्मी पापा आए होगे ।”
एक बार फिर दादी की वही आवाज वासु के कानो मे गई पर वो हिला भी नहीं, उसे पता था दादी बस रुक रुक कर यही बोलती रहेगी।
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दोनो की उम्र में बहुत अंतर था एक उम्र की शुरुवात में और एक उम्र के आखरी पड़ाव पर, लेकिन दोनो का दुःख एक जैसा था
दोनो को ही अभी सहारे की जरूरत थी ।
अभी फिर से दादी ने वही बोलना शुरू कर दिया था पर अब सच में कोई तो था दरवाजे पर,अभी आवाज आ रही थी
बुझे मन से वासु उठा और दरवाजा खोल दिया
सामने खड़े इंसान को देख कर वो पहचान नही पाया
रमा देवी है “
जी
आइए
उनको साथ ले वासु दादी के कमरे में ही आ गया
प्रणाम अम्मा जी ,
हमको पहचाना ,हम गौरी शंकर
गांव उमरिया से,
अपने गांव का नाम सुनते ही अम्मा के चहरे पर चमक आ गई
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कैसे आना हुआ बेटा,
गांव में कोई काम धंधा नहीं बचा अम्मा,
इयहा कोनो काम की तलाश में आए है
आप अपने पास रख लो तो बडी महरबानी होगी
उसकी बात सुन अम्मा और वासु एक दुसरे को देखने लगे अभी तो वो दोनो ही ऐसी स्थिति में नहीं थे कि खुद को संभाल सके ऊपर से एक का खर्चा और,,
मुझे माफ करना गौरी शंकर,तुम्हे तो पता ही है
अभी हम किसी की भी मदद करने लायक नहीं है
कैसी बात करतीं हो अम्मा,,,
तुम तो बस मुझे यहां रहने भर की जगह दे दो बाकि सब मुझ पर छोड़ दो ,
आस पास कोई काम मिल ही जाएगा।
न चाहते हुए भी अम्मा ने गौरी को रख लिया
पता नहीं कब क्या हो जाए
उनके बाद वासु के पास कोई तो होगा
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बस यही सोच कर उसे रहने को जगह दे दी
गौरी शंकर ने पास के घर में ही नौकरी कर ली ताकि वो वासु और अम्मा का भी ध्यान रख सके
दिन बीतते रहे और वासु अब 25 साल का हो गया
इन दस सालों में गौरी शंकर कभी वापस अपने गांव नही गया
दो साल पहले अम्मा भी इस लोक को छोड़ कर परलोक सिधार गई
वासु की नौकरी एक अच्छे महकमे में लग चुकी थी वो एक कामयाब इनसान था
वो कभी भी उस दिन को नहीं भूलता था जब गोरी शंकर उनके घर आया था और उस ने उस कच्ची उम्र के बिखरे बच्चे और पकी उम्र की उसकी अम्मा को संभाल लिया था
आज वासु की शादी भी तय हो गई तब उस ने गांव जा कर गौरी शंकर के परिवार को यही ले आने का निर्णय किया।
बिना बताए वो गांव पहुंच गया भरा पूरा परिवार छोड़ कर गौरी शंकर सिर्फ उसके और उसकी अम्मा के लिए किसी और के घर में नौकर की तरह काम करता रहा
अच्छी खासी जमीन और पैसा था गांव में गौरी का,,, लेकिन जब उसे पता चला कि उसका दोस्त और उसकी पत्नी अब नहीं रहे तो उसे सिर्फ यही रास्ता दिखाई दिया जिस से वो इन दोनों के काम आ सकता है अपने दोस्त का कर्ज चुकाने का यही एक तरीका उसे समझ आया
एक समय वासु के पिता ने गौरी शंकर की बहुत मदद की थी लेकिन जो गौरी ने किया वो कोई नही कर सकता।
वासु को जब यह सब पता चला तो गौरी शंकर के आगे नतमस्तक हो गया।
अपना पराया तो बस कहने की बात है जो समय पर साथ दे सहारा दे वही असली दोस्त, रिश्तेदार होता है
जीवन का यही सच है जिसको वो ही समझ सकता है जिसने यह महसूस किया हो ।
© रेणु सिंह राधे
कोटा राजस्थान