यादें ” – उमा वर्मा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi:  सीमा घर में अकेली बैठी है ,परिवार बाहर गया हुआ है ।जब भी वह अकेली होती है यादों के पन्ने फड़फड़ाने लगते हैं ।यह अगस्त का महीना ।सोच रही है रोयें या खुशी मनाये।इसी महीने पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी, इसी महीने में बेटी इस असार संसार से चली गई ।ईश्वर ने मेरे खाते में इतने आँसू क्यो भर दिया ।

पांच पांच भाई बहन चले गए ।कम उम्र में पिता को खो दिया ।मैंने अपने आँसू पोंछ लिए ।माँ चली गई ।पति चले गए ।दामाद चले गये ।और अब बेटी भी ।उसके जाने की खबर मिलते ही तो मै दौड़ती चली गई थी ।वह शान्त चित जमीन पर पड़ी हुई थी ।यह मै क्या देख रही थी।आँसू थे कि रुकने का नाम नहीं ले रहे थे ।

सब कुछ कितना जल्दी खत्म हो गया था ।उसे विदा कर दिया गया था, नये कपड़े और फूल माला के साथ ।मै हताश निराश घर लौटी थी ।लगता, कहीं से वह एक बार आ जाती ।लेकिन यह तो मेरे मन का वहम था ।ऐसा भी कहीँ होता है क्या? लगातार नाते ,रिश्ते का फोन आने लगा था ।लेकिन बात करने की हिम्मत ही नहीं थी मुझमें ।

बात करती तो आखों में आंसू आ जाते ।और मै फोन अपनी बहू को पकड़ा देती ।मोबाइल पर भजन सुनती तो रोना आ जाता ।मै ईश्वर को कोसने लगती ।लगता संसार में सबकुछ मिथ्या है ।न जाने कितने लेख ,कितनी रचना लिख डाली ।सोचती लोग क्या कहेंगे ।पागल हो गई है ।पर मै कैसे अपने मन को दिलासा दूं?

मेरे जीवन का एक हिस्सा ही चला गया तो खुश कैसे रहूँ? पूजा पाठ में मन ही नहीं लगता था ।सब कुछ बेकार लगता ।मै लिखने लगी ।लिखती तो पहले से ही थी अब दिशा ही बदल गई ।उसकी याद तो पीछा ही नहीं छोड़ती ।उसके दिये हुए शाल ,स्वेटर, कपड़े पहनकर लगता था कि उसकी खुशबू बसी होगी तो मै पागलों की तरह सूंघती उसे महसूस करने के लिए ।कभी-कभी लगता, हाँ उसकी खुशबू तो है इसमें ।

सब की नजर बचाकर करती थी मै कि कोई देख न ले ।इसे सिर्फ मै ही महसूस कर सकती थी ।हरदम लगता उसका फोन आने वाला है ।लेकिन यह कैसे हो सकता है ।यह तो मेरा पागलपन था।उसकी यादें बसीं थी न,जेहन में ।हर समय पूछती थी वह ” खाना हो गया “? ” सो गये “? ” क्या हो रहा है “?

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सिर्फ अपने लिए नहीं….. – लतिका श्रीवास्तव 

आज मैंने यह बनाया है ।आप आइये तो आपको भी खिलाती हूँ ।वह मेरी बेटी थी।एक अच्छी, सच्ची दोस्त भी ।हर बात, हर समस्या हम आपस में शेयर करते ।सब कुछ खत्म हो गया है ।अंत समय में जरूर उसने मुझे याद किया होगा ।उसकी यादों को सहेजती शोशल मीडिया पर पोस्ट करती रहती ।

फिर सोचती लोग तो यही कहेंगे कि इसे और कोई टाॅपिक नहीं मिलता क्या? बस एक ही राग अलाप रही है ।पर इससे मेरा मन हल्का हो जाता है ।आजकल मुझे जगजीत सिंह का वह गीत सुनना अच्छा लगता है ” कहाँ तुम चली गई—” उनकी गीत में कितना दर्द छिपा है यह तो वही महसूस कर सकता है जिसने किसी बहुत अपने को खोया है ।

पर अपने संतान का जाना? बहुत दुःख दायी होता है ।लोग समझाते हैं ।आसपास देखने के लिए कहते हैं ।पूरा संसार ही दुख का दरिया है ।मै सब कुछ समझ सकती हूँ ।पर मेरे मन की तकलीफ तो मेरी अपनी है ।कैसे भूला जा सकता है ।नहीं भूला जा सकता है ।यादों का सिलसिला चलता रहता है ।

पन्ने दर पन्ने पलटने लगी हूँ तो कई दृश्य घूमने लगते हैं जब उसके पापा नहीं रहे थे तो उसने मुझे समझाया था, दिलासा दिया था कि कैसे रहना है, कैसे अपने पर ध्यान देना है, समय पर खाना है।परिवार के साथ समय बिताना है ।फिर ईश्वर ने समय को पलट दिया जब मेरे दामाद जी चले गये ।

उसपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था तब वही दिलासा के शब्द मैंने उसे लौटाया था।लेकिन वह बड़ी साहसी और हिम्मत वाली थी ।बहुत जल्दी उसने अपने आँसू पोंछ लिए थे।और सबकुछ संभाल लिया था ।लेकिन एक बेटी का दर्द माँ से भला कैसे छिप सकता था ।मैंने उसे देखा था छिप कर आँसू पोछते हुए ।

समय भागता रहा ।सबकुछ यथावत् चलने लगा ।परिवार में नयी खुशियाँ भी आयी।मै भी खुश हो गई थी ।लेकिन दिल के किसी कोने अब भी वह विराजमान थी ।जब भी उसकी तस्वीर पर माला देखती हूँ तो मन जाने कैसा हो जाता है ।वह इतनी दूर कैसे चली गई कि अब कभी नजर ही नहीं आती ।एक माँ उसे सिर्फ अपने आँसुओ की श्रद्धांजलि ही तो दे सकती है ।वह मैंने दे दिया ।जाओ बेटा सुखी रहो।

—” उमा वर्मा, राँची ।झारखंड ।स्वरचित, मौलिक और अप्रसारित रचना है ।

#आँसू

 

error: Content is Copyright protected !!