यादें मिट क्यों नहीं जाती? ( भाग-4 ) : Moral stories in hindi

 आपने पढ़ा कि राम नरेश बाबू कोर्ट-कचहरी के चक्कर में हमेशा बाहर ही रहते थे। हवेली की सारी जिम्मेवारी सुमित्रा देवी पर थी। फिर भी व्यस्तता के बावजूद वह यदा-कदा रश्मि की पढ़ाई के संबंध में जानकारी लिया करती थी। अनुराग और रश्मि के बीच नजदीकियांँ बढ़ने लगी थी। दोनों अपने भावी जीवन की रूपरेखा से परस्पर अवगत हुए। अनुराग चाहता  था कि घर के बाहर कहीं एकांत में मिले, ढेर-सारी बातें करे, प्रेमालाप करे, लेकिन रश्मि इसके लिए राजी नहीं  हुईं ग्रामीण परिवेश के कारण। पढ़ाई के समय भी सरिता अखवार पढ़ने के बहाने वहाँ अड्डा जमाए रहती थी जो दोनों को खलता था। उस दिन जब उसकी माँ ने किसी काम के कारण उसे हवेली के अंदर बुला लिया तो दोनों के चेहरे खुशी से खिल उठे।अब आगे……..

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  रश्मि ने खामोश होकर अपनी मद भरी आंँखों से अनुराग की ओर देखा। अनुराग ने भी उसके चेहरे की ओर देखा, दोनों की नजरें एक-दूसरे से मिली, नजरें गिरी, लेकिन संवादहीनता के बावजूद संवाद जारी था, उनकी अपनी विशेष भाषा में।

 पल-भर बाद अनुराग ने कहा, ” मैं कुछ…कहना चाहता हूँ… आपसे…”

  इसके बाद थोड़ी देर तक वह कुछ नहीं कह पाया। वह हिम्मत बटोरता रहा कहने के लिए लेकिन दिल की बातें जुबान पर लाने के क्रम में कंठ में ही आकर ठहर जाती।

  दोनों के बीच कुछ  देर तक खामोशी पसरी रही।

  “बोलिए ना!… क्या कहना चाहते  हैं? “लरजती आवाज में रश्मि ने कहा।

  “आपकी… तस्वीर… मेरी आंँखों के सामने नाचती रहती है… पल-पल काटना  तुम्हारे बिना पहाड़ मालूम पड़ता है .. बहुत बेचैनी महसूस होती है…।”

  उसका प्रेमालाप सुनने के बाद वह खामोश हो गई। उसके चेहरे पर गंभीरता उभर आई।

 उसने पुनः कहा, ” बोलो रश्मि!… खामोश क्यों हो गई… ” कहकर वह बेसब्री से उसके चेहरे की ओर देखने लगा।

  रश्मि उठकर उस कमरे से बाहर जाने लगी।

  अनुराग एक झटके से उठा और रश्मि का रास्ता रोकते हुए उसने पूछा, “कहाँ जा रही हैं?…”

  ”               “

  उसके जवाब नहीं देने पर उसका दिल हौले-हौले स्पंदित होने लगा।

 ” नाराज हो गई मुझसे…”

  ” आप इतना चाहते हैं मुझे… कि मेरे बिना…”

  “हांँ रश्मि!… मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता” कहते हुए उसने रश्मि को अपने आलिंनपाश में जकड़ लिया था।

 ” छोड़िये भी!… कोई देख लेगा तो… बहुत बुरा होगा” अपने को आलिंनपाश से छुड़ाते हुए धीमी आवाज में उसने कहा।

” लेकिन जाइए मत यहाँ पर से” अपनी पकड़ से  रश्मि को मुक्त करते हुए उसने कहा।

 ” अच्छा! ” कहती हुई वह अपने नीयत स्थान पर बैठ गई।

  अनुराग भी कुर्सी पर जा बैठा लेकिन वह भयभीत था। उसे महसूस हो रहा था कि कहीं ये सारी बातें उजागर न हो जाए। रश्मि उसके इस आचरण को स्वीकार करती है या नहीं। कुछ पल तक वह पशोपेश में पड़ा रहा। फिर उसने जोर देकर कहा,” रश्मि!… तुमने कुछ कहा नहीं!… मुझसे कुछ गलती हो गई क्या?… मेरी बातों से तुम्हें दुख हुआ है क्या?…”

 “नहीं!… निश्चिंत रहिए!” नरम स्वर में वह बोली।

  “कुछ भी बोलो रश्मि!” व्यग्र होकर उसने कहा।

  “हम दोनों पढ़ेंगे… फिर…” उसने चुप्पी साध ली।

 ” फिर क्या?… तुम्हारा इरादा क्या है?… “

” शादी कर लेंगे पढ़ाई समाप्त होने के बाद। “

     हर्षातिरेक में उसका दिल झूमने लगा। मानों कुबेर का खजाना हाथ लग गया हो।

 उत्तेजना के वशीभूत होकर उसने उसके गालों को स्पर्श करते हुए कहा,” रश्मि!… सच कह रही हो? “

  अनुराग की आंँखों में आंँखें डालकर रश्मि ने कहा,

” क्या? तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं?…”

  ” मेरी अच्छी रश्मि!… विश्वास है… तुम्हारे एक इशारे पर मैं सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हूँ… रश्मि!… तुम्हें आजमाना होगा तो कभी भी आजमा लेना।… बंदा कभी भी पीछे नहीं हटेगा” बेबाकी से अनुराग ने कहा।

                                  अचानक उसके बेड-रूम का दरवाजा खुला। उसकी पत्नी कमरे में दाखिल हुई।

 उसका जेहन अतीत के कोहरा से मुक्त हो चुका था।

  अनुराग ने रजाई से सिर निकालकर पूछा,” फिल्म समाप्त हो गई… “

 ” फिल्म तो समाप्त हो गई… आप कौन फिल्म यहांँ पर देख रहे हैं… जो अभी तक जाग रहे हैं… रात-भर पहरा देने का इरादा है क्या जी?”

  “नींद नहीं आई…”

  ” नींद कहाँ से आएगी?… दिन-रात न जाने क्या सोचते रहते हैं… ब्लडप्रेशर बढ़ जाएगा न, तो फिर समझ में आ जाएगा” यशोदा ने हाथ नचाते हुए कहा।

” रागिनी और मनीष सो गए… “

 ” हांँ!… वे लोग टी. वी. रूम में ही सो गए… अब आप भी तो सो जाइए!… हुंह!…दो बजने को है” कहकर यशोदा  उसके बिस्तर के बगल में लगी चारपाई पर सोने का उपक्रम करने लगी लाइट बुझाने के बाद। थोड़ी देर के बाद ही यशोदा खर्राटे लेने लगी। लेकिन अनुराग की आंँखों में नींद का नामोनिशान तक नहीं था।

  उसकी चेतना जाग चुकी थी। वह भूतकाल के खंडहर से निकलकर वर्तमान की खुरदुरी सतह पर विचरण करने लगी।

  अनुराग सोचने लगा। आखिर क्यों वह अतीत के कब्रों को खोदता है? क्या मिल जाएगा बीती हुई घटनाओं के बारे में सोचकर? यादें क्यों जोंक की तरह उससे चिपक कर खून चूस रही है वर्षों से? अंतस में उन हादसों से कचोटें पैदा होती है क्यो? भावनाओं के ज्वारभाटे क्यों आहत कर देते हैं अंतर्मन को? क्या यादों के नासूर से मुक्ति नहीं मिल सकती?

  इसी उधेड़-बुन में उसकी निगाह अपनी पत्नी की ओर चली गई अनायास ही। उसका दिल हाहाकार कर उठा,

” काश!… मैं भी इसी तरह गहरी नींद में सो पाता।”

 उसने आंँखें बंद करके कोशिश की, कि नींद में डूब जाऊंँ, लेकिन कुछ मिनट बाद ही उसकी पलकें खुद-ब-खुद खुल गई और उसके दिमागी पटल उठ रहे अतीत के धुएँ के आवरण में वर्तमान विलीन हो गया।

                                  उस दिन आसमान में काले बादल मड़रा रहे थे। चारो ओर घना अंँधेरा छाता जा रहा था। इसके साथ बारिश भी शुरू हो गई थी।

  थोड़ी देर के बाद ही नालियों में बहते बरसाती पानी की घड़घड़ाहट की आवाज, रिम-झिम, रिम-झिम बरसाती बूँदों की फुहार के साथ मधुर संगीत बिखेर रही थी।

  रश्मि की मांँ शादी के निमंत्रण में हवेली से बाहर गई हुई थी। सरिता सोई हुई थी संयोग से।

  अनुराग ने पहुंचते ही यथावत कहा था, ” लाओ काॅपी, आज थ्योरम पढ़ा देता हूँ…”

  “उसने अंगड़ाई लेते हुए कहा,” नहीं!… मन नहीं करता है पढ़ने को।… लगता है, खूब रोऊंँ… ऐसा लगता है, जैसे मैंने कुछ खो दिया है… चैन नहीं मिलता है… मुझे क्या हो गया है? “उसका गला भर आया था। उसकी आंँखों से आंँसू बहने लगे थे।

  अनुराग ने अपने रुमाल से उसके गालों पर बहते आंसुओं की बूँदों को पोंछ दिया था।

” आप बड़े वो हैं! ” इसके साथ ही उसके गालों पर सुर्खी छा गई थी।

” ऐसी बात नहीं है रश्मि!… क्या मैं बेचैन नहीं हूँ। “

 अनुराग की सांसें तेजी से चलने लगी थी। उसका हलक सूखता जा रहा था। दिल उमड़ पड़ा था। आंँखों से आंँसू बह चले थे, जिसको कलेजे पर पत्थर रखकर रोक लिया था उसने।

  उसने अपनी निगाहें रश्मि के चेहरे पर गड़ा दी।

 रश्मि की सांसें भी धौकनी की तरह चल रही थी। गर्म सांसों के आरोह-प्ररोह पर वक्ष का चढ़ाव-उतार साफ नजर आ रहा था। वह खिसक कर बिलकुल उसके पास पहुंँच गई थी। वह कुछ कहना चाह रही थी लेकिन कह नहीं पाता रही थी। उसके होंठ सिर्फ थर-थरा कर रह जाते थे।

  पल-भर बाद ही उसने कहा, “क्या तुम्हारे दिल में मेरे प्रति सचमुच प्रेम है।”

 वह झेंप गई। उसने अपनी नजर नीचे किए हुए ही कहा,

“ऊंँहू!…” इसके साथ ही शरारत भरी मुस्कान उसके चेहरे पर उभर आई थी।

  उसके चेहरे पर एक चमक आ गई थी।

  “खैर जो हो!… लेकिन हमलोगों  को इस रास्ते पर सोच-समझकर बढ़ना चाहिए… मैं डरता हूँ रश्मि कहीं..”

 ” कहीं क्या?”

  “अमीरी कहीं हम दोनों के संबंध के बीच दीवार न खड़ी कर दे… कहीं हमारा संबंध विच्छेद न करवा दे…”

  “क्या बकते हो अनुराग?… क्या दिल के प्रेम की माप धन-दौलत से होती है? रश्मि ने आवेश में कहा।

“नहीं!… फिर भी दिल खटक रहा है, किसी अनहोनी की आशंका से। “

” ऐसा कुछ भी नहीं होगा!… अपना दिमाग खामखा मत खराब किया करो… मैं भी नहीं भूल सकती अब तुम्हें” कहते हुए उसने अनुराग की कलाई पकड़ ली।

  अनुराग  का दिल प्रेम से भर आया था।

  “मैं भी तुम्हें नहीं भूल सकता… तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है”कहते हुए उसने रश्मि को अपने आगोश में ले लिया था।

 रश्मि की गर्म सांसों का अपनी गर्दन पर स्पर्श महसूस कर वह उत्तेजित हो गया।

 रश्मि ने उसकी छाती में मुंँह छुपाते हुए कहा, “अब क्या होगा अनुराग… मेरा दिल धड़कता है… “

 ” धीरज रखो रश्मि! घबराने की बात नहीं है, हमलोगों का प्रेम पवित्र है… अगर दो दिलों में सच्चा प्यार हो तो दुनिया की कोई शक्ति हमलोगों को अलग नहीं कर सकती है।

  उसी समय आसमान में बिजली कड़की थी।

  रश्मि ने भयभीत होकर अपनी गोरी बांहें अनुराग के गले में डाल दी थी।

  वातावरण में मादकता छा गई थी। रश्मि की देह की नशीली महक से वह मदहोश हो गया।

                           अनुराग और रश्मि में से किसी ने भी अपनी अंतरंग बातें  किसी से भी नहीं बतलाई थी, लेकिन न जाने कैसे उसके परिवार को शक हो गया था दोनों पर।

  अनुराग के कस्बाई साथी उसपर व्यंग्य-बाण छोड़ने लगे, लेकिन उसको इसकी कोई परवाह नहीं थी बल्कि वह गौरवान्वित होता था उनकी बातें सुनकर।

  दोनों पर कड़ी निगरानी रखी जाने लगी पढ़ाई के दौरान सुमित्रा देवी और सरिता के आदेश से।

 वह जाता रहा पढ़ाने के लिए किन्तु हर वक्त उसके कमरे में कोई न कोई मौजूद रहता। चाहकर भी वह रश्मि से पढ़ाई के सिवा कोई बातचीत नहीं कर पाता और न रश्मि अपने दिल का दर्द उसके सामने उड़ेल पाती।

  रश्मि गंभीर रहने लगी। गायब हो गई थी उसके चेहरे की दिव्य आभा। माहौल में पतझड़ की उदासी छा गई थी। उसके चेहरे पर दहशत का अक्स साफ झलकता था।

  पत्र के माध्यम से ही आपसी संवाद कायम रखने का ही मात्र  रास्ता बचा था उनके पास।

  अनुराग ने बड़े यत्न से एक पत्र लिखा, जिसमें अपनी मनःस्थिति और अंतर्मन की व्यथा का बेबाकी से बर्णन किया। उस पत्र के माध्यम से ही उसने रश्मि के अंतस से रू-ब-रू होने की इच्छा जाहिर की थी।

  चुपके से उसने वहां से जाते समय उस खत को उसे दे दिया था।

  अनुराग तो उस परिवार की आंखों में खटकने लगा ही था, दुर्भाग्यवश वह खत भी सरिता के हाथ लग गया।……….

    (कहानी का अंतिम शेष हिस्सा भाग:-5 में)

    स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित

                 ©® मुकुन्द लाल

                   हजारीबाग(झारखंड)

 

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