वो लड़की – सीमा नेहरू दुबे

अक्सर याद आ जाती है, बचपन सबका ही खास होता है, कितने ही संगी साथी होते है कुछ याद रहते है कुछ हम भूल जाते है, पर कुछ तौ हमारे जहन के किसी कोने मै छुप कर अपना घर बना लेते है। ऐसी ही थी वो लड़की, उसकी याद के साथ साथ एक गांना भी मन मे घूम जाता है ‘ सलामे इस्क मेरी जाँ जरा कबूल कर लो, ‘ क्युकी उसके पैर सिर्फ इसी गाने पर ही उठते थे।

कहने को तौ वो ब्राह्मण परिवार की प्यारी बच्ची थी, किसी जमाने मे वो परिवार एक अच्छी खासी साख रखने वाला परिवार हुआ करता था, परन्तु परिवार के विभाजन ने काफी कुछ अस्त व्यस्त कर दिया था, परिस्थिति ये थी कि पिता पियकड, जो सारा का सारा माल दारू मे उडा चुका था, माँ बेचारी स्कूल टीचर, हालत की मारी, बेचारी नौकरी तौ करती थी पर जिस दिन उसको तनखा मिलती उसी दिन उसको अपने पति के दर्शन नसीब होते और फिर हाथ से पैसे गायब, बेचारी रोती पीटती घर आती, उनका कई कई दिन भूके ही कटता था। हाँ उस घर के खंडर जरुर ये बताते थे कि कभी यहाँ भी चमन होता था।

    नल भी नही था उस घर मे, वो बेचारी चौराहे से मुनिस्पल्टी के नल से पानी लाती थी। लोगों की मदद से ही घर चलता था, शायद ही उसकी कुछ पड़ाई हुई होगी। एक भाई भी था, वो भी पिता से कम नही था। खैर मेरी शादी हो गयी और काफी हद तक उनकी खबरों से दूर हो गयी। फिर पता चला कि उसके भाई की सरकारी नौकरी लग गयी है, चलो ठीक हुआ सबने कहाँ, पर नौकरी के साथ बीबी भी आ गयी। पर उसकी स्थिति मे सुधार नही था, कुछ दिन बाद सुना उसकी भी शादी हो गयी,

जब पता चला तौ लगा शायद अब उसको कुछ सुख मिलेगा, पर हाय री किस्मत, कुछ को सच मे ही सुख छु कर नही जाता, एक दिन खबर मिली कि नीलू ने जहर खा लिया है, यहाँ से मायके वाले गए क्युकी ससुराल वालों ने कुछ धमकी दी थी, क्या पता नही चला, वो मायके आ तौ गयी पर उसकी हालात बही गत साँप छछुन्दर् जैसी हो गयी, ससुराल वाले आये नही और बेचारी माँ स्वर्ण सिधार गयी, भाबी अपने पूरे रुतवे मै आ गयी,


उसको लगा कि ये तौ मेरा ही हक खाये जा रही है, खूब काम करती और बदले मे गाली, वाह री किस्मत कैसी है तु। तलाक हो गया, दो रोटी से ज्यादा खा ले तौ आसमां जमीं पर, घर भले ही खंडर था पर जमीन काफी अच्छी खासी थी जो सिर्फ उनकी ही थी, इतनी बड़ी कि उस मे एक कुआँ भी था उस जमाने का। खैर शायद भाई को कुछ दया आई और उसने पता नही कहाँ से लड़का ढुंढ कर बयाह रच दिया। कहते है वो गयी फिर आई ही नही, कोई बुलाये तब ना। शायद वाह भी वो बर्तन ही घिस रही होगी।

फिर एक अनहोनी हो गयी भाई एक दुर्घटना मे उपर अपनी माँ के पास चला गया, कहते है तब वो रोटी पीटती आई थी, थोड़े दिन रही भी थी, फिर पता नही। जो भाबी थी उसने वो जमीनी हिस्सा बहुत ही अच्छे दामो पर बैच कर अलग घर ले लिया, उसके बच्चों ने बड़ियाँ खाना खाया, पुरी पढाई की, और सारा पैसा अंदर, यहाँ मेरे मन मे हमेशा आता है क्या लड़की का पिता के घर कोई हक नही, क्या रीति बना दी कि जब बुलाये तभी जाए और अगर कोई सवाल उठाये तौ तुरंत ही देश निकाला, ।

मेरी एक बार उसकी भाबी से मुलाकात हो गयी, मैने उनसे उसका नंबर पूछा तौ साफ मना कर दिया कि हमें पता नही, वो आना ही नही चाहती है मैने मन ही मन मुस्करा कर कहाँ कि आप बुलाना ही नही चाहती है। फिर एक ना पूछने वाला सवाल पूछ लिया कि क्या ज़ब घर बिका तौ आपने उसको कुछ दिया, तौ जवाब सपाट था क्यों?? उसका क्या हक़ है जो दे वो मेरे ससुर का, फिर मेरे पति का और अब मेरे बेटे का,

हाँ अगर वो आती जाती रहती तौ मै उसको कुछ ना कुछ करती रहती, भाई दान का पुण्य बहन बेटी का बहुत लगता है और उसकी परेशानी उसकी किस्मत, हमें क्या। मै आज भी जब वो गाना सुनती हु तौ वो मुझे याद आती है,, पता नही कहाँ है वो, पर ये जीवन की सच्चाई है कि अगर आपकी किस्मत खराब तौ सगे भी गैर होते है

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