“सुन कल कॉलेज मत जाना।लड़के के माता -पिता कल तुझे देखने आ रहे। “लड़के “.. क्या कह रही हो माँ, अभी तो मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई। नहीं करनी मुझे शादी…। चुप कर पगली, रिश्ता बहुत अच्छा है, बस वो लोग तुझे पसंद कर ले, तो मै चट मंगनी पट ब्याह कर दूँ। लड़का बहुत अच्छा है इंजीनियर है, तू राज करेंगी।
“तो क्या करू इंजीनियर है,इंजीनियर होने से लड़का अच्छा हो जाता है, ये आप कैसे कह सकती हो माँ।”
” घर -परिवार बहुत अच्छा है शुचि,” पर माँ मेरी पढ़ाई,अरे मेरी लाड़ो, ससुराल जा कर पढ़ाई पूरी कर लेना,और सुन ये जो हर समय मुँह फाड़ कर हंसती है, कल मुँह बंद रखना।माँ सहजता से बोल अपने काम में लग गई। और शुचि, उदास हो अपने कमरे में लौट आई।
रात, सोच – विचार में मग्न शुचि ने एक फैसला ले ही लिया, वो लड़के से आग्रह करेंगी, शादी,उसकी पढ़ाई पूरी करने के बाद करें। चाहे जो हो, वो अपने पढ़ाई जरूर पूरी करेंगी..।फैसला कर शुचि का मन हल्का हो गया।और उसे नींद आ गई।
अगली सुबह, शुचि अलसाई सी बिस्तर पर पड़ी थी, माँ ने आकर उसे उठा दिया -शुचि जल्दी कर, लड़के वाले पहुँच ही रहे होंगे। शुचि को बाथरूम में धकेल, माँ ने अपनी गुलाबी साड़ी निकाल कर रख दिया। दूसरी बेटी अर्चि चिल्लाई -माँ ये साड़ी तो आपने मेरे लियें रखा था, फिर दीदी को क्यों दे रही हो। आज पहनने के लियें दे रही हूँ। तुझे दूसरी खरीद दूंगी। उसके बाद तेरा ही नम्बर है।
मेहमान आ चुके थे, शुचि को तैयार कर जब लाया गया,तो संवाली सलोनी शुचि पर से कोई नजर हटा नहीं पाया। शुचि नजरें झुकाये बैठी थी। लड़का सुहास के माँ -बाप ने शुचि और सुहास को एकांत देने के इरादे से, शुचि के पेरेंट्स से घर देखने की इच्छा जाहिर की। उनका इशारा वे लोग भी समझ गये, चारो लोग, बैठक से बाहर आ गये।
शुचि की किसी लड़के से एकांत में मुलाक़ात का ये पहला अवसर था। शर्म और झिझक से उसका सर ऊपर ही नहीं उठ रहा था। वहीं हाल सुहास का भी था। शुचि सोच रही थी ये कैसा इंजीनियर है, एक लड़की से बात भी नहीं कर पा रहा..। सुहास ने शुचि को सहज करने की नियत से घबराते हुये पूछा “आपका नाम क्या है, शुचि “.. सुनते ही शुचि को हँसी आ गई। माँ ने मना किया था, याद आते ही शुचि ने हँसी रोक लीं।।
पर हँसी रोकने के चक्कर में, शुचि का बनता, बिगड़ता चेहरा देख, सुहास को भी हँसी आने लगी।सुहास अपलक शुचि को हँसते देख रहा, सामने एक मासूमियत से भरा चेहरा हंसी से ओत -प्रोत था। सुहास, अपनी बेवकूफी पर शर्मिंदा हो गया। लड़की देखने का ये पहला अवसर था।सुहास को शुचि की मासूमियत भा गई।
मन में सोच लिया शादी इसी से करूँगा। फैसला ले बैठक के बाहर आ, अपनी सहमति बता दी। उधर शुचि हँस तो पड़ी थी, पर सहम भी गई, पता नहीं लड़के ने क्या सोचा होगा।एक नजर जो सुहास पर पड़ी, तो उसकी हैंडसम व्यक्तित्व, उसे प्रभावित कर गया।और एक दिन पहले लिया फैसला, डगमगाने लगा।
सुहास के सहमति देते ही, जल्दी ही विवाह की तारीख निकाल आई।शुचि का एक दिन पहले लिया हुआ फैसला,सुहास की पत्नी बनने की ख़ुशी में कहीं रुक गया था।उषा जी ने सच में शुचि का चट मंगनी पट ब्याह कर दिया।आखिर दो कन्याओं के हाथ और पीले करने थे।
नये घर में शुचि, सुहास का प्यार पा रच -बस गई। दो प्यारे बच्चों की माँ भी बन गई। जिंदगी अपनी रफ़्तार से चल रही थी।शुचि के लियें भी बच्चे और पति यही जिंदगी थे।अक्सर घर के फैसले सुहास ही लेता। बच्चों की पढ़ाई, कैरियर के समय , सुहास ने कहा , तुम नहीं समझ पाओगी शुचि, तुमको नॉलेज नहीं है।बच्चे बड़े हो गये, कभी वो बच्चों से उनके कैरियर के बारे में बात करेंगी तो बच्चे तुरंत बोल देते -माँ आप नहीं समझोगी।
आप नहीं समझोगी, ये अब शुचि को खटकने लगा। शुचि को सुहास और बच्चे बहुत प्यार करते थे, पर अनजाने में उनकी कही-आप नहीं समझोगी , शुचि को कचोटने लगा। जो फैसला बरसों पहले रुका हुआ था, अचानक पूर्ण होने के लियें बेक़रार होने लगा। शुचि ने फिर फैसला लिया, अपनी पढ़ाई पूरी करने की। इसमें उसका साथ दिया सुहास ने। तीन साल के कठिन परिश्रम से, आखिर शुचि ने अपना एक मुकाम पा ही लिया। एक उम्र बाद पढ़ाई करना, उसके लिये आसान नहीं था। पर फैसले को पूरा करने के जज्बे ने उसे हर कठिनाई से पार कराया।
दोस्तों मेरा ये ब्लॉग कैसा लगा, अपनी बहुमूल्य राय जरूर दे। हम नारीयाँ, अपने कर्तव्य के आगे अपने कैरियर, पढ़ाई या नौकरी के सपनों को पूरा नहीं कर पाते, समय बीत जाने के बाद हमें उस की अहमियत समझ में आती है। शिक्षा, जितनी लड़को के लियें जरुरी है, उतना लड़कियों के लियें भी, अतः, बेटियों को शिक्षित करने के बाद ही आगे सोचे..।
—संगीता त्रिपाठी