वो गुलाबी दुपट्टा – सरला मेहता

” वीरा ओ वीरा ! कहाँ है बहना, राखी नहीं बाँधनी तुझे। ” निहाल पूरे घर में चक्कर लगा चुका है। लेकिन वीरा छत पर खड़ी पड़ोस वाले घर को देख अतीत की यादों में खोई है,,,

” इसी घर में उसका सबसे अच्छा दोस्त रहता था। दो शरीर व एक जान थे वे। शेरा कहीं भी जाता, वीरा के लिए तोहफ़ा लाना नहीं भूलता। आख़री बार यही तारों जड़ा गुलाबी दुपट्टा दिया था। दोनों के घर वाले राजी भी थे ब्याह के लिए। तभी शेरा सेना में भर्ती हो गया। कुछ महीनों बाद ही उसकी शहादत की खबर आ गई। और वीरा के सपनें भी इसी दुपट्टे की तहों में दफ़न हो गए। “

वीरा का भी घर बस गया। किन्तु पति के साथ सभी रिश्ते निभाते हुए भी उन्हें दिल में नहीं बसा सकी। बस हर पल शेरा के कहे शब्द गूँजते रहते,”ओय ! मैं कुड़माई तो तुझसे ही करूँगा।”

ज्यों ही वह भाई को राखी बांधने सीढ़ियाँ उतरने लगी, वही जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी,” अरे, ये पीपल कैसे सूख गया। “

वीरा की साँसे ही थम गई  शेरा को देख कर। वह बैसाखी लिए पीपल के ठूठ का सहारा लिए खड़ा है। वीरा होशोहवास भूल  दौड़ पड़ती है। मम्मा का दुपट्टा खींचते बेटा भी चल पड़ता है।

दो प्रेमी उसी पीपल के पास आमने सामने हैं, जहाँ कभी वे झूला करते थे। शेरा समझ नहीं पा रहा है क्या पूछे, ” अरे  ये प्यारा सा बच्चा कौन है ?”

दुपट्टे से आँसू पोछती वीरा जवाब देती है, ” ये मेरा बेटा,,,शार्दुल। “

“शार्दुल,,,का अर्थ तो शेर का बच्चा होता है न, वीरा। और ये दुपट्टा ?” भरे गले

से शेरा पूछता है।

” तुम जिंदा हो शेरा, मैं भी जी लूँगी अब।” कहते हुए आँसू बहाती वीरा अपने घर की ओर चल पड़ती है। शेरा, शार्दुल की बातें सुनते हुए अतीत की गुलाबी यादें भुलाने की नाकाम कोशिश कर रहा है।

सरला मेहता

इंदौर

स्वरचित

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