वो अंतिम कुछ क्षण,पापा के संग – डॉ पारुल अग्रवाल

#पितृदिवस

पापा,कहने को छोटा सा शब्द पर अपनेआप में पूरी दुनिया समेटे हुए।आपकी कमी को कोई नहीं भर सकता। सब कहते हैं कि मायका माँ से होता है पर मेरे लिये तो मेरा मायका आपसे शुरु होता था। बहुत सारी बातें बिना कहे रह गई।

पापा मेरे से दूर उस समय चले गए जब करोना की वजह से आना जाना बंद था। पापा उस समय बड़े भैया के पास बंगलौर थे,लीवर की बीमारी से जूझ रहे थे,चाट पकौड़ी के शौकीन मेरे पापा इस टाइम नमक के बिना खाना खाने को मजबूर थे। 

भैया के यहां सब बोल रहे थे कि जब भी उनके शरीर में अमोनिया का स्तर बढ़ जाता है, तब वो पता नहीं कौन कौन सी पुरानी बातें करते हैं,बस बोलते चले जाते हैं। मैं भी किसी तरह उनसे मिलने बंगलौर पहुंची, क्योंकि करोना की वजह से फ्लाइट कम ही मिल रही थी।

मैं जैसे ही घर पहुंची, पापा मेरे को देखते ही पहचान गए, तुरंत मेरे से बेटी और पति के बारे में पूछने लगे। कहां तो सब कह रहे थे कि वो किसी को भी पहचान नहीं रहे, पर मेरे से बात करने में एक बार भी ऐसा नहीं लगा। 

मैं वहां 2-3 दिन रही, इस बीच पापा बहुत पुरानी बातें तो कर रहे थे, जिनसे मैं भी अनजान थी पर उतनी नहीं जितना सब ने बताया था। मेरे से बात करते हुए पापा ने ये भी बोला की देख ये घड़ी, मैं इसे एक पल को भी दूर नहीं करता। दरअसल वो घड़ी मैंने पापा-मम्मी की पचासवीं वर्षगांठ पर दी थी।

ये देख मेरी आखों में पानी आ गया। कहां मुझे कभी कभी लगता था कि शादी के बाद पापा सिर्फ अपने बेटों और बहुओं के ही होकर रह गए,कहां पापा का इतने दर्द में भी मेरी दी हुई घड़ी से इतना प्यार। 



मेरे से पापा ने उन तीन दिनों में काफ़ी बातें की। वो बहुत बीमार थे,पर मेरे से उन्होंने सब कुछ बड़े प्यार से पूछा। जब शाम को मैं दिल्ली वापिस आने के लिए निकली,उन्होंने मेरे को बोला कि खुश रहना, शायद पापा को लग गया था कि अब वो मेरे को और मैं उन्हें आखिरी बार मिल रहे हैं। मैं इधर दिल्ली के लिए रवाना हुई और उधर पापा की हालत बिगड़ने लगी। अगले दिन पापा की हालत बहुत खराब हो गई। करोना की वजह से हॉस्पिटल में बिस्तर नहीं मिल रहा था। 

किसी तरह दो दिन बाद हॉस्पिटल में जगह मिली और 7-8 दिन में पापा अपनी अनंत यात्रा की तरफ चल दिए। शायद पापा मेरे से मिलने के लिए ही रुके थे। जब आखिरी समय में मिले,तो भी इतने बीमार होने के बावजूद हंसते हुए ही मिले। पापा का जाना मेरे लिए एक बहुत गहरा सदमा था।

उस दिन पहली बार मेरे को महसूस हुआ कि माता-पिता चाहे कितने भी उम्र के ना हो जाएं पर उनका जाना किसी आघात से कम नहीं था। पापा ने आखिरी समय में बहुत कष्ट झेला। आशा है, अब वो जहां भी होंगे हर दर्द से दूर होंगे। मै आखिरी समय में पापा से मिल पायी, बस दिल को इसी बात की थोड़ी तसल्ली है। ये कुछ नीचे अपनी लिखी पंक्तियां मैने पापा को समर्पित की हैं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻

माँ को ममता की मुर्ति तो,सभी ने बतलाया है।

पर पापा जैसा दुलार भी,कहां कोई कर पाया है।

सर्द रातों में उठ उठकर,हमें  गर्माहट की रजाई पहनाई है।

दुनियादारी और सबको अपना बनाने की सीख, सब आपसे ही तो पायी है।

अपने जीवन की जमा पूँजी, मेरे सपनों को पूरा करने में लगायी है।

सच तो ये है भगवान की जिम्मेदारी पिता रूप में आपने निभायी है।।

डॉक्टर पारुल अग्रवाल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!