मुझे नये कार्यालय में आये दो महीने ही हुये, ऑफिस के पास ही घर ले लिया….,
ऑफिस जाते हुये अक्सर एक उदास मासूम चेहरा मुझे दिख जाता, जाने उन आँखों में क्या कशिश थी जो निगाहें बरबस बगल के घर की ओर उठ जाती थी..,खिड़की के जंगले को पकड़े वो उदास ऑंखें,
होठों पर ख़ामोशी लिये शून्य में देख रही थी, मन भर आया, इतनी छोटी सी बच्ची को खेलने -खाने की उम्र में कौन सा दुख है, जो वो खामोश हो गई।उसकी खामोश आँखों की अबूझ पहेली मुझे बहुत आकर्षित करती है, इसलिये मैंने अपने ऑफिस जाने का रास्ता उस गली से जोड़ लिया, जिससे मैं उसे देख सकूं।
जाने क्यों उसके साथ मेरा एक अनाम रिश्ता जुड़ गया।
पिछले दो महीने से मैं देखती हूँ,वो यही खिड़की से ठोड़ी टिकाये बैठी रहती, उसकी आँखों में छाई अव्यक्त उदासी एकबारगी मन को छू जाती है।मन बेचैन हो जाता, किस तरह बच्ची की खुशियाँ वापस ले आऊँ।
आज सुबह घर से तय करके निकली थी, उसके घर जरूर जाऊँगी। और उसकी ख़ामोशी का राज जान कर आऊंगी।अगर समय पर मेरी शादी हो गई होती तो इसके बराबर मेरी भी बेटी होती।
वो एक पुराना घर था, घंटी बजाते ही बड़ी उम्र की एक सभ्रान्त सी महिला ने दरवाजा खोला, “जी मैं बेबी से मिलने आई हूँ “
. “परी बेबी से मिलने आई है आप, मैं परी की दादी हूँ..”उन्होंने परी को आवाज दी।आवाज सुनते ही परी दौड़ कर आई, मुझे देख एक पल ठिठक गई, पर दो महीने की मौन स्वर वाली दोस्ती रंग लाई वो फिर गले लग गई,। उसके कोमल हाथ मेरे गले के इर्द -गिर्द पड़े थे, उन हाथों की पकड़ मुझे जता रही थी, वो इन पलों को बांध लेने को आतुर थी।और मुझे उन हाथों में एक आत्मीय सी गंध आ रही थी।
” मम्मी -पापा दोनों की जान है परी, छोटी सी तकरार जब अहम् की लड़ाई बन गई, इसके माता -पिता दोनों समझ नहीं पाये, अरे घर -गृहस्थी में पचासो ऐसी बातें होती है, जो बुरी तो लगती है लेकिन परिवार की भलाई के लिये छोड़नी पड़ती है…, माँ -बाप के लड़ाई -झगड़े और अलगाव का बच्चों पर कितना बुरा प्रभाव पड़ता है,ये परी को देख कर आप समझ गई होंगीं,परी उसी अलगाव का दंश सह रही…, दोनों चाहते है परी खुश रहे पर दोनों ही अपने अहम् को छोड़ नहीं पा रहे ..”उदास स्वर में परी की दादी बोली।
मन भर आया, मेरी गोद में उसे मातृत्व की अनुभूति मिली, वो कस कर मुझे पकड़ी थी। ऑफिस के लिये मैं लेट हो गई थी, छुट्टी का आवेदन भेज मैंने परी की मम्मी का पता लिया, वो इसी शहर में रहती, उनको फोन कर मैंने सारी बात बताई, फोन पर उनके रोने की आवाज सुन मैंने पूछा,”परी को देखना चाहती हो “
“हाँ, तीन महीने हो गये, मैंने परी को नहीं देखा, मैं जॉब करती हूँ, अपने साथ परी को रख सकती हूँ, लेकिन मेरे पास परी को संभालने वाला कोई नहीं, वहाँ कम से कम उसकी दादी तो है..”
दोपहर बाद मैंने फिर उसी घर की घंटी बजाई, परी की दादी ने दरवाजा खोला मैंने इशारा किया, पीछे नलिनी को देख खुशी से वे चिल्ला पड़ी, “परी देख कौन आया ..”
माँ को देख परी ने मुँह फेर लिया,
“परी बेटा..”नलिनी हाथ बढ़ाया तो परी ने झटक दिया, अभी भी परी खामोश थी, परी की हालत देख नलिनी रो पड़ी।
नलिनी दुबारा पास जा कर सॉरी बोला तो परी की ख़ामोशी टूटी ,”अब तो आप मुझे छोड़ कर नहीं जाओगी “
“नहीं… कभी नहीं “माँ का आश्वासन पाते ही परी माँ की खुली बांहों में सिमट गई, सभी की आँखों में आँसू थे,
मैंने सोचा, अब समझाने की बारी परी के पापा की है, मैंने देखा नहीं, वो कब से पीछे खड़े थे, प्रखर को देख मैं जड़वत हो गई…,ओह प्रखर…. मैं कराह उठी, प्रखर की गलती क्या थी, बस थोड़ा सा समय ही तो माँगा था उसने…, लेकिन मुझे लगा वो शादी के लिये टाल रहा.., अविश्वास का कीड़ा दिल में आते ही,गुस्से से मैं प्रखर से सम्बन्ध तोड़ दी, उसके आते कॉल को प्रतिबंधित कर मैंने उसकी बात सुनने से इंकार कर दिया, काश उस वक्त मैंने भी अहम् छोड़ कर उसकी बातें सुनी होती तो शायद आज परी की माँ मैं होती।
परी की ख़ामोशी टूटते देख, प्रखर की आँखों में भी आँसू थे, जो ख़ामोशी महंगे खिलौने, महंगी ड्रेस और बाकी रिश्ते तोड़ न पाये, वो माँ के आश्वासन पर टूट गये।
“देखिये जब दो लोग दाम्पत्य जीवन में बंधते है तो दोनों को एक दूसरे को समझने में समय लगता है, कोई साल भर में समझता है, कुछ को कई साल लग जाते, हाँ दाम्पत्य जीवन में अहम और शक आड़े नहीं आना चाहिए, क्योंकि दोनों ही रिश्तों को तोड़ते है,बच्चे कितने कोमल होते है उनके मन में माता -पिता के लड़ाई -झगड़े का कितना प्रभाव पड़ता है, ये परी को देख आप समझ गये होंगे, कई बाऱ शिकायत को छोड़ देना ही बेहतर विकल्प होता है, अतः शिकायतों को आप छोड़ना भी सीखे “मैंने समझाते हुये कहा, लेकिन क्या सच में छोड़ना आसान होता है.., मैंने भी तो यही गलती की थी।
“मुझे माफ करना नलिनी .. मैंने भी अपने पुरुषोचित अंह में आ कर तुम्हारी अवहेलना की, दोनों मिल कर भी समस्या का निदान कर सकते थे “प्रखर नलिनी का हाथ पकड़ बोला।
“नहीं प्रखर गलती मेरी थी, मैं दूसरों के बहकावे में आ अपना घर उजाड़ बैठी, मुझे अहंकार हो गया था मैं तुमसे ज्यादा कमाती हूँ,तो मैं क्यों दबू…,मैं क्यों भूल गई मैं एक स्त्री हूँ,घर -परिवार के लिये मेरा दायित्व तुमसे ज्यादा है…”प्रखर के गले लगती नलिनी बुरी तरह रो पड़ी,।
तीन महीने से रुका बांध अपनी सीमा तोड़ बैठा,। और एक रिश्ता टूटते -टूटते जुड़ गया।
“आंटी.. आप मुझसे दोस्ती कभी मत तोड़ना..”
“न बेटा, इतनी प्यारी दोस्त को मैं कभी खोना नहीं चाहूंगी…”आँखों में उमड़ते आँसूओ के सैलाब को रोकते मैं बाहर निकल आई,।
पीछे से प्रखर ने आ कर, हाथ जोड़ लिया..”माफ़ी के काबिल तो मैं नहीं हूँ, पर बरसों पहले टूटा रिश्ता क्या फिर से दोस्ती के रूप में जुड़ सकता है…”
चुपचाप हाथ बढ़ा दिया, जिसे प्रखर और नलिनी ने मजबूती से पकड़ लिया…. बहुत कुछ खो कर भी मैंने आज कुछ पा लिया, जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
—संगीता त्रिपाठी
#टूटते रिश्ते जुड़ने लगे