” ए अनंत के बच्चे…तुझे कितनी बार कहा है कि मेरी टेबल को हाथ न लगाना..चोर कहीं का..चल भाग यहाँ से…।” लगभग चीखते हुए नितिन ने अपने फुफुरे भाई को धक्का देकर कमरे से बाहर निकाल दिया।अनंत रोता हुआ अपनी माँ रेवती के पास गया,” माँ..मैंने तो कोई चोरी नहीं की…फिर भईया ने मुझे चोर क्यों कहा?” रेवती बरतन साफ़ कर रही थी,उसने तुरंत अपने हाथ धोये..बेटे के आँसू पोंछे और उसे अपने सीने-से लगा लिया।उसे समझ आ गया कि जिस स्त्री का पति नहीं होता, उसे ससुराल हो या मायका..सभी जगहों से #अपमान ही मिलता है।
इसी घर के आँगन में खेलकर रेवती बड़ी हुई थी।पिता कृष्णकांत काॅलेज़ में प्रोफ़ेसर थे और माँ प्रभावती एक सुघड़ गृहिणी…।बड़ा भाई आकाश रक्षाबंधन पर राखी बँधवाने के लिये जब उसे परेशान करता तब वह अकड़कर कहती,” ससुराल गई तो फिर नहीं आऊँगी…।” फिर दोनों भाई-बहन में प्यार-भरी नोंक-झोंक होने लगती जिसे देखकर प्रभावती कहतीं,” बस भगवान… दोनों भाई-बहन का प्यार इसी तरह बनाये रखना…।”
आकाश इंजीनियरिंग पास करके एक कंपनी में नौकरी करने लगा।तब प्रभावती ने एक सुयोग्य कन्या देखकर उसका विवाह कर दिया।साल भर बाद वो एक पोते की दादी भी बन गईं।रेवती बीएससी के बाद आगे पढ़ना चाहती थी, उसके पिता भी चाहते थें कि उनकी बेटी आत्मनिर्भर बने लेकिन प्रभावती का कहना था कि समय पर बेटी अपने ससुराल चली जाये, इसी में परिवार की भलाई है।रिश्तेदारों के बताये रिश्तों में से एक
रिश्ता उन्हें पसंद आ गया।लड़का सुमित बैंक में काम करता था..दो साल पहले ही उसके पिता का एक सड़क-दुर्घटना में देहांत हो गया था…घर में माँ, बड़ा भाई-भाभी और उनके दो बच्चे थे।एक दिन सुमित अपने बड़ों के साथ उनके घर आया…रेवती से मिला।फिर उन्होंने देर नहीं की और एक शुभ मुहूर्त में बेटी का हाथ सुमित के हाथ में दे दिया।
कुछ समय के बाद प्रभावती की बहू ने एक पोती को जनम दिया।साल भर बाद रेवती भी एक बेटे की माँ बन गई थी।कृष्णकांत रिटायर हो गये थे।अब वो पत्नी संग पोते नितिन-पोती मंजरी के साथ खेलने में व्यस्त रहते थें।
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परन्तु जीवन में सब कुछ अच्छा ही हो..ऐसा तो होता नहीं।रेवती का बेटा अनंत स्कूल जाने लगा था।उसी बीच सुमित की कुछ नये लोगों से जान-पहचान बढ़ी तो उसकी ख्वाहिशें भी बढ़ने लगी जिन्हें पूरा करने के लिये वो बैंक के रुपयों में घपले करने लगा।घर में सुख-सुविधाओं का सामान आने लगा तो सभी बहुत खुश हुए लेकिन एक दिन उसकी यह घपलेबाजी पकड़ी गई और पुलिस उसे घर से हथकड़ी पहनाकर ले गई।उसके बैंक अकाउंट को सीज़ कर दिया गया तब उसे अपने जेठ पर आश्रित होना पड़ा।
दामाद के बारे में सुनते ही रेवती के पिता दौड़े हुए आये…उसे घर चलने को कहा लेकिन उसने इंकार कर दिया।तब आकाश उसके हाथ में कुछ रुपये देते हुए बोला,” इसे बोझ नहीं, बड़े भाई का आशीर्वाद समझकर रख ले।” पुलिस की जाँच चल रही थी कि एक दिन जेल में खाना खाते समय सुमित की एक कैदी से झड़प हो गई…कैदी भी सनकी था, उसने पास रखा पत्थर उठाकर सुमित के सिर पर दे मारा जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई।
माता-पिता अपनी बेटी के लिये सुख-सुविधायें तो जुटा सकते हैं लेकिन उसका भाग्य नहीं लिख सकते हैं।सुमित के जेल जाने पर रेवती की सास और जेठानी के तेवर तो बदले हुए थे ही..अब उसकी मृत्यु का ज़िम्मेदार भी रेवती को मानकर उसे प्रताड़ित करने लगे।सास दिन-भर ताने मारती कि मेरे बेटे को खा गई और जेठानी उससे सारा काम करवाती।जेठानी का बेटा तो वक्त-बेवक्त अनंत को ‘ चोर का बेटा’ कहकर दुत्कारता रहता।
दामाद के आकस्मिक मुत्यु का दुख कृष्णकांत सह नहीं पाये और महीने भर के अंदर ही वो चल बसे।पिता के निधन पर आई बेटी का मुख देखकर प्रभावती का कलेज़ा मुँह को आ गया।वो समझ गई कि रेवती वहाँ सुखी नहीं है..उन्होंने बेटी और नाती को वापस जाने नहीं दिया।
मायके में आकर रेवती को थोड़ा सुकून मिला..अनंत भी नियमित स्कूल जाने लगा था। लेकिन कुछ महीनों बाद से उसे अपनी भाभी कामिनी के व्यवहार में परिवर्तन नज़र आने लगा।अनंत अपनी मामी से दूध या फल माँगता तो कह देती कि खत्म हो गया है।घर पर बहू का राज था तो प्रभावती भी कुछ बोल नहीं पाती थीं।रक्षाबंधन पर कामिनी दबी ज़बान से पति से बोली,” तोहफ़ा क्या देना..पूरी ज़िंदगी तो माँ-बेटे का बोझ आपको ही उठाना है…।” सुनकर प्रभावती चकित हो गईं थीं।
फिर एक दिन माँ का साया भी रेवती के सिर पर से उठ गया। कामिनी को पूरी छूट मिल गई…वह रेवती से घर का पूरा काम करवाने लगी…।कभी वो थक कर बैठ जाती तो कामिनी ताने मारती,” मुफ़्त की रोटियाँ खाने का इतना ही शौक है तो अनाथालय चली जाओ..।” आकाश सब देखकर भी चुप था।नितिन भी अक्सर ही अनंत की काॅपी-किताबें छिपा देता..।वह सारा अपमान सह रही थी कि माँ- बेटे के सिर पर एक छत तो है।
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आज भी अनंत को स्कूल का होमवर्क करना था लेकिन उसे गणित की काॅपी मिल नहीं रही थी, वही ढूँढने वह भईया के कमरे में आया ही था कि नितिन ने देख लिया और उसे चोर कह दिया।अपने बेटे के लिये चोर शब्द सुनकर रेवती को ऐसा लगा मानों किसी ने उसके कानों में पिघला शीशा उंडेल दिया हो।आज नितिन तो कल मंजरी भी..।
” माँ..बताओ ना…भईया ने मुझे चोर…।”
” अब कभी नहीं कहेगा…।” रेवती दृढ़ता-से बोली और बेटे का हाथ पकड़कर अपने कमरे में आ गई।उसने सूटकेस में कपड़े रखे और माँ के दिये कुछ रुपयों को रखकर उसने आकाश के नाम एक नोट लिख दिया,” भईया..इतने दिनों तक आपने मुझे आश्रय दिया..धन्यवाद! लेकिन अब मैं आप पर बोझ बनना नहीं चाहती।आपकी- रेवती।” अगले दिन पौ फटते ही वह बेटे की अंगुली पकड़कर घर से निकल गई एक अनजाने डगर पर..।
रेवती ने रहने के लिये एक कमरा लिया।बेटे को खिला-पिलाकर वह रोज काम की तलाश में निकल जाती।दो दिन के अथक प्रयास के बाद उसे दो घरों में खाना बनाने का काम मिला।अनंत को वो घर पर ही पढ़ाती थी।काम करने से उसकी जान-पहचान बढ़ी तो उसे पता चला कि बैग-फ़ैक्ट्री में महिला कारीगरों के लिये वैकेंसी है।उसने देर नहीं की और शाम की शिफ़्ट में वो फ़ैक्ट्री जाने लगी।आमदनी बढ़ी तो उसने अनंत को फिर से स्कूल भेजना शुरु कर दिया।रेवती दिन-रात मेहनत कर रही थी और अनंत मन लगाकर पढ़ाई कर रहा था।अच्छे अंक आने पर उसे वज़ीफ़ा भी मिलने लगा और इस तरह साल दर साल बीतने लगे।
रेवती अब फुल टाइम फ़ैक्ट्री में ही काम करने लगी थी।उसकी तरक्की हुई…तनख्वाह बढ़ी…और रहने के लिये घर भी मिल गया।छोटे स्टाफ़ से लेकर बड़े अधिकारी तक उसका बहुत आदर करते थें।अनंत भी इंजीनियरिंग पास करके एक कंपनी में नौकरी करने लगा।
एक दिन अनंत ने रेवती से कहा,” माँ..मुझे कनाडा में ज़ाॅब का ऑफ़र मिला है…क्या करुँ?”
” इसमें सोचना क्या है बेटा…ऐसा मौका बार-बार थोड़े ही मिलता है..तू जाने की तैयारी कर..।”
” लेकिन आप यहाँ अकेली…।”
” अकेली कहाँ…फ़ैक्ट्री के सारे वर्कर्स भी तो मेरे अपने हैं..।” मुस्कुराते हुए रेवती बोली और आँखों से बहते आँसुओं को पोंछने लगी।ये तो खुशी के आँसू थे जो बरबस ही उसकी आँखों से छलक गये थें।
अनंत कनाडा में सेटेल हो गया।एक दिन बीच करके वो रेवती से अवश्य बात कर लेता था।बेटे के लाख कहने पर भी रेवती ने काम करना नहीं छोड़ा।उसकी उम्र हो चली थी, इसलिये अब वो सिर्फ़ सुपरविज़न का काम कर रही थी।
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एक दिन वह ऑफ़िस में बैठी सामानों की लिस्ट चेक कर रही थी कि अचानक एक स्टाफ़ ने आकर उससे कहा कि मेन गेट पर एक महिला बेहोश हो गई है।रेवती भाग कर गई और महिला का चेहरा देखते ही उसके मुँह से निकला,” भाभी..आप!” वह महिला कामिनी थी।रेवती को देखकर वो आँखें चुराने लगी तब रेवती ने प्यार-से उसके कंधे पर हाथ रखा तो वो फ़फक कर रोने लगी।रेवती उसे अंदर ले गई…उसके आँसू पोंछे और पानी पिलाते हुए बोली,” अब बताइये भाभी..आप यहाँ कैसे? भईया..नितिन..।”
कामिनी ने बताया कि नितिन की पत्नी ने आते ही मेरे सारे अधिकारों पर ताला मार दिया।तेरे भैया की इतनी तबीयत खराब थी, फिर भी वो घर में पार्टियाँ करती है..।उनके जाने के बाद से तो उसने घर को सराय और मुझे नौकरानी बना दिया था।बात-बात पर मुझे गँवार कहकर मेरा अपमान करती..।एक दिन मंजरी आई मुझसे मिलने तब नितिन की पत्नी बोली,” आ गई भीख माँगने..।” कहते हुए वो फिर रोने लगी,” मैंने तुम्हारा बहुत अपमान किया था, उसी का फल..।”
” नहीं भाभी..वो तो मेरे लिये वरदान था।अनंत कनाडा में नौकरी कर रहा है और मैं यहाँ पर…सभी मुझे बहुत सम्मान देते हैं।आप अपने मन पर कोई बोझ नहीं रखिये और घर जाइये…नितिन परेशान हो रहा होगा..।” रेवती ने अपनी भाभी को समझाकर घर भेज दिया।
आज रेवती एक सम्मानपूर्वक जिंदगी जी रही है।उम्र के तीसरे पड़ाव में भी वह नियमित रूप से फ़ैक्ट्री जाती है..काम-काज देखती है और महिलाओं को आत्मनिर्भर होने के लिये प्रेरित भी करती है।अनंत माँ का हाल-चाल पूछता रहता है..समय निकालकर मिलने भी आता है।कभी-कभी कामिनी भी उससे मिलने आ जाती है लेकिन वो फिर कभी पलटकर अपने मायके नहीं गई।
विभा गुप्ता
# अपमान स्वरचित, बैंगलुरु
एक माँ अपना अपमान सह सकती है लेकिन अपने संतान का तिरस्कार उसके लिये असहनीय होता है और तब वो अपने लिये नया रास्ता तलाश करती है..।रेवती ने भी अपने बेटे के लिये नयी राह चुनी..।