वक़्त से डरो! – लक्ष्मी त्यागी : Moral Stories in Hindi

श्रीमती विनीता जी, जैसे ही घर के मुख्य द्वार में प्रवेश करती हैं ,उन्हें किसी बच्चे की रोने की आवाज आती है, वे समझ जाती हैं कि दुलारी जी का पोता रो रहा होगा वही उनके घर में छोटा बच्चा है। वे  दुलारी जी से मिलने के लिए उनके घर आई थीं।

दोनों ने कल आपस में सलाह की थी कि कीर्तन में जाना है किंतु यहां आकर देखतीं  हैं, उनका पोता बड़ी जोरों से रो रहा था। वह घर के अंदर प्रवेश कर जाती हैं, और दुलारी जी को पुकारती हैं -कहां हो, क्या कर रही हो ?

 अभी आई जीजी ! तैयार हो रही हूं, आप बैठिए ! अभी आती हूं, दुलारी जी की आवाज आई।

विनीता जी ने सोचा -शायद उनका पोता रो रहा है, इस कारण उन्हें तैयार होने में देरी हो गई है। हो भी क्यों न, छोटे बच्चों का परिवार है, देर सवेर तो लगी ही रहती है। तभी दुलारी जी की बहू, ट्रे में एक गिलास पानी लेकर आई और विनीता जी के पैर छूकर, उनका अभिवादन किया। पानी का गिलास हाथ में लेते हुए विनीता जी ने पूछा -क्या बेटा रो रहा है ?

हां जी आंटीजी ! बहुत देर से रो रहा है। सुबह से घर का काम निपटाया है, उसको ले रही थी, न ही सोने देता है न ही कुछ काम करने देता है। अब भी न जाने क्यों रो रहा है ?

भूखा होगा, उसे दूध पिला दो !

 उसी का दूध तैयार करने के लिए जा रही थी आपके लिए पानी लेकर आ गई। जब रोता है, तो फिर चुप होने का नाम नहीं लेता, लगातार रोता रहता है। क्या घर में और कोई नहीं है ? जो बच्चे को संभाल ले और तुम उसका दूध गर्म कर सको !

 मैं अकेली हूं, उसे संभालू या दूध गर्म करुं , तभी दुलारी जी अंदर से तैयार होकर आईं और बोली- चलो, जीजी ! बहुत देर हो गई। 

क्या तुमने अपने पोते का रोना नहीं सुना, कितनी देर से रो रहा है ?

 वह तो रोता ही रहता है, उसकी मां अपने आप संभाल लेगी, लापरवाही से दुलारी जी बोलीं। 

बहू भी थकी सी लग रही है, घर के काम भी हैं, और बच्चे को संभालना भी। 

यह आप क्या बातें कर रही हैं ?यह तो सभी के साथ होता है, क्या, हमने अपने बच्चे नहीं पाले ? इन्हें भी तो पता चलना चाहिए ,बच्चे कैसे पलते हैं ? दुलारी जी हँसते हुए बोलीं। 

उसका ही बेटा नहीं, पोता तो तुम्हारा भी है। 

तो क्या करूं ? हमने अपने समय में अपने बच्चे पाल दिए, अब क्या इनके भी बच्चे, हम हीं पालें,ये आराम से अपने खसमों की बगल में सोती रहें ,इनके बच्चों के गू ,मूत हम करें। 

उनकी ये बातें सुनकर विनीता जी को उनकी सोच पर दुःख हुआ किन्तु उन्होंने उनसे कुछ नहीं कहा। बातों का रुख बदलते हुए बोलीं -आप तो शायद संयुक्त परिवार में थीं। 

जी आप सही कह रहीं है ,मेरे बच्चों के बाबा ,दो ताऊ ,और चाचा थे ,भरा- पूरा परिवार था खुश होते हुए बोलीं -हम लोग तो घूंघट में ही सब काम करते थे।

आपको  तो बच्चों  के साथ बड़ी परेशानी हुई होगी ,सब काम और बच्चों का पालना। 

परेशानी तो होती ही है किन्तु बच्चों के ताऊ और ताई बड़े अच्छे थे ,बच्चों को खिलाने के लिए घेर में ले जाते थे। मैं तो सुबह से ही, बच्चों को नहलाकर उनके बाबा के साथ भेज देती थी , यहाँ गर्मी में क्या करेंगे ?

चलो !अच्छा है, आपकी जेठानी क्या करती थीं ?

एक के तो बच्चे ही नहीं हुए ,दूसरी के बच्चे बड़े हो गए थे ,मेरे बच्चों की देखभाल वही करती थीं। मैं खाना बनाती थी ,तो दूसरी ऊपर के काम करती थीं। 

आपकी ससुराल तो आपको अच्छी मिली। 

खुश होते हुए ,वे बोलीं -सही कह रहीं हैं। चलिए ,मंदिर भी आ गया ,कुछ देर तक  तो सभी भजन -कीर्तन में व्यस्त रहीं ,जब एक घंटा हो गया ,

तब प्रसाद वितरण के समय एक चर्चा सामने आई -अलका जी की बहू, कितनी नालायक निकली ? इस उम्र में, उनसे अलग हो गई है, वह उनके साथ नहीं रहती है। क्या जमाना आ गया है ? आजकल बहूओं  को कोई कहने- सुनने वाला नहीं रहा, अपनी चलाती हैं।

 क्या करें ?जी वक्त बदल रहा है,आजकल की बहुएं थोड़ी पढ़ -लिख क्या आ गईं ? सिर पर ही सवार रहती हैं। इस उम्र में बेचारे बूढ़े -बूढ़े कहां जाएंगे ? कितनी दिक्कत होती है ?

तभी तो कहते हैं -बहू को ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए , दुलारी जी बोलीं -बहन जी ! हमने भी कुछ ज्यादा ही ढ़ील दे रखी है, इतनी ढ़ील भी ठीक नहीं। इनकी डोर कस कर रखनी चाहिए। चर्चा करते हुए वे दोनों मंदिर से बाहर आ गईं , दुलारी जी के मन से वह बात जा ही नहीं रही थी, वह बार-बार इसी बात को कहे जा रही थीं। 

तब विनीता जी बोलीं -आपने देखा था, अलका जी ने, अपनी बहू के साथ क्या व्यवहार किया था ?कैसे उसको परेशान किया ?जब नई -नई वो घर में आई थी ,उसके हर काम में मीन -मेख निकालतीं थीं ,और जब उसके बच्चे हुए ,वो बेचारी अकेली ही ,उन्हें संभालती थी। 

अब आप ही सोचिये !बहु घर का काम भी कर रही है, बच्चे भी संभाल रही है ,अपने भी चार काम होते हैं ,ड़र या शर्म के कारण, कुछ नहीं कहती है किन्तु उसकी वे यादें, क्या उसे वो ख़ुशी दे सकेंगी ,जैसे खुश होकर आप बता रहीं थीं – मेरे बच्चों को उसके बाबा और ताऊ संभालते थे।

जब उसे आराम नहीं मिलेगा कोई उसके बच्चे नहीं को संभालेगा तो ,एक बच्चा ही उसने, न जाने कितनी मुश्किलों से पाला है ?उसका ये कड़वा अनुभव उसे और बच्चे भी बनाने नहीं देगा। 

आराम हर कोई चाहता है  किन्तु सास -ससुर की सोच ही, आखिर कैसी होती जा रही है ?बहु के जो बच्चा हो रहा है उसी घर का वारिस है ,उनका पोता है। माना कि आजकल बच्चों का विवाह ही इतनी देरी से हो रहे  हैं  माँ -बाप की उम्र भी बढ़ जाती है ,इतना सहयोग नहीं कर पाते, बीमार रहते हैं किन्तु जो सक्षम हैं ,

उन्हें लगता है ये हमारी जिम्मेदारी नहीं ,और जब बुढ़ापे में बहु उन्हें नहीं पूछती तो उन्हें दोष दिया जाता है ,अरे उनसे कोई पूछे ! बहु भी इंसान है ,प्यार से प्यार पनपता है ,जब उसे तुम्हारी जरूरत थी ,तब तुम उसके साथ कितने खड़े हुए थे ?तुमने बहु पर अधिकार जतलाया किन्तु प्यार और अपनापन नहीं दिया। तब तुम बुढ़ापे में उससे कैसे उम्मीद करते हो ?

वक़्त को बदलते देर नहीं लगती ,आज वो तुम पर निर्भर है ,कल  तुम उस पर निर्भर हो जाओगे इसीलिए ”वक़्त से डरना” चाहिए। मकान की नींव यदि मजबूत नहीं होगी तो इमारत को भरभराकर गिरने से कोई नहीं बचा सकता।

दुलारी जी ,पर उनकी बातों का प्रभाव हुआ और वो बोलीं -आप सच ही तो कह रहीं हैं ,मैं भी तो अपनी बहु के साथ ऐसा ही कर रही हूँ। अच्छा हुआ, आपने मेरी समय रहते आँखें खोल दीं,आज का ये मेरा कीर्तन सफल हुआ शायद ईश्वर ने इसीलिए मंदिर बुलाया था ताकि मैं अपने को संभाल सकूँ।   

                ✍🏻 लक्ष्मी त्यागी

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