किसी समय राजा-महाराजाओं जैसी शान रखने वाले गाँव के ज़मींदार व्यापारी सज्जन कुमार आज खाट पर पड़े पड़े मृत्यु का इंतज़ार कर रहे हैं । उनकी सेवा-सुश्रुभा करने वाले नौकर-चाकर भी परेशान हो गए हैं और कुड़ कुड़ कर देखभाल के नाम पर बस रसमअ दायगी करते हैं ।
“कब तलक गोड़ रगड़ेगो सज्जना अब तो भगवान बाए उठाय ही लै तो ही अच्छो है ।” गाँव के बड़े-बूढ़े जो सज्जन कुमार से कुछ सही अवस्था में हैं और जो उनके सारे जीवन और क्रियाकलापों से परिचित हैं आपस में बतियाते हैं ।हालाँकि शायद वे नहीं जानते कि कल यही स्थिति उनकी भी होने वाली है क्योंकि वक़्त किसी को नहीं छोड़ता है ।
“कर्मों का फल तो सबको भुगतना पड़ता है चाहे कोई भी हो । भीष्म पितामह को भी काँटों की शैया पर सोना पड़ा था अपने अंत समय में ।” ख़ुद को ज्ञानी-ध्यानी समझने वाले अपनी राय प्रकट करते और
सज्जन कुमार बिस्तर पर पड़े-पड़े आँखों से आँसू बहाते हुए अपने अतीत को याद करते रहते जब वह ख़ुद को किसी शहंशाह से कम नहीं समझते थे और दूसरे इंसानों को अपने इस्तेमाल की वस्तु ।हालाँकि उनके पिता भी ज़मींदार थे किंतु बेहद सरल और सीधे इंसान थे जिन्हें धन दौलत का तनिक भी घमंड न था किंतु इसके उलट सज्जन कुमार को अपनी सुंदर बलिष्ठ काया,
ज़मींदारी,धन दौलत,व्यापार और शहरी शिक्षा का भारी गुरूर था जो उनके सर चढ़कर बोलता था । पिता की पसंद सीधी साधी रोहिणी से सज्जन ने शादी तो कर ली पर कभी पत्नी का दर्ज़ा नहीं दिया और अपने रास-रंग में ही मगन रहे । शहर में कॉलेज की शिक्षा के समय ही उन्हें महिलाओं की दोस्ती की चाट पड़ गई थी जो उन्हें चारित्रिक पतन की ओर ले गई ।
रोहिणी से भी संतान तो हुईं पर दो बेटियाँ और इस कारण रोहिणी की इज़्ज़त उनकी नज़र में और भी गिर गई क्योंकि एक परंपरावादी पुरुष की दृष्टि के अनुसार वह उन्हें एक बेटा भी न दे सकी । उन्हें सही रास्ते पर लाने की कोशिश करते-करते एक दिन माता-पिता भी चल बसे और सज्जन कुमार खुलेआम अपने से आधी से भी कम उम्र की सुंदरी बेला को किसी तरह अपने जाल में घेरकर ले आए
और पत्नी की तरह रख लिया । रोहिणी की स्थिति घर में सदा एक उपेक्षिता की ही रही पर वह सब्र कर अपनी बेटियों को पढ़ाती-लिखाती रही और सब्र के साथ जीवन बसर करती रही । बेला के कोई संतान नहीं हुई ।बेला ने धीरे धीरे सज्जन कुमार की सारी संपत्ति अपने नाम करवा ली । वह सुंदर और जवान थी और सज्जन कुमार बूढ़े होते चले गए ।
बेला को अब उन्हें अपने पति के रूप में लोगों से मिलवाते और उनके साथ खड़े होने में भी में शर्म आती और वह ख़ुद सारा कामकाज़ और व्यापार देखती । रोहिणी की बेटियाँ अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर ऊँचे पदों पर पहुँच गईं और उन्होंने अपनी माँ को पूरे मान-सम्मान के साथ अपने साथ रखा । उन्हें सज्जन कुमार से कोई लेना देना नहीं था ।
लगातार नशे के कारण सज्जन कुमार का स्वास्थ्य भी गिरता गया और अब उपेक्षित जीवन बिताने की बारी सज्जन कुमार की थी । बेला ने हवेली में उनकी देखभाल के लिए नर्स और डॉक्टर लगा दिए थे और ख़ुद ज़मींदारी और व्यापार की मालकिन बन कर ऐश कर रही थी ।
वह ख़ुद भी निःसंतान और अकेली थी इसलिए उसने अपने परिवार के लोगों को अपने चारों ओर इकट्ठा कर अपना विश्वासपात्र बना लिया और ससुराल पक्ष को धीरे धीरे अपने संपर्क से बेदख़ल कर दिया था ।
उसके अनेक दोस्त और शुभचिंतक थे जो उसे चारों ओर से घेरे रहते ।सज्जन कुमार सब देख कर भी कुछ न कर पाते और ख़ून का घूँट पी कर रह जाते । नौकर-चाकरों से जो थोड़ा बहुत अपनापन मिल जाता उसी से ज़िंदगी बसर करते करते एक दिन अधूरी,अतृप्त आत्मा
और पछतावे के साथ दुनिया छोड़ कर चले गए । रोहिणी और उसकी बेटियाँ अंतिम संस्कार पर गए और लौट आए । बेला के साम्राज्य में वैसे भी उनकी भावनाओं का अब भी कोई मोल न था ।
मनुष्य को अपने कर्म करते समय वक़्त से डरना चाहिए क्योंकि वक़्त ही है जो हमारे कर्मों का सही-सही हिसाब करता है !
गीता यादवेन्दु,आगरा