वक्त रहते -श्वेता सोनी : Moral Stories in Hindi

# दो पल के गुस्से से प्यार भरा रिश्ता बिखर जाता है..

कहानी -वक्त रहते 

 “अम्मा,, ओ अम्मा,, उठो अम्मा, ई का होई गवा,अम्मा “सुषमा चीख उठी और फिर फफक कर रोने लगी, उसकी सास झिंझोड़ने से अचकचा कर उठीं,,,,

” का हुई गवा दुलहिन,”,

“अरे अम्मा, गजब हुई गवा, दीदी फांसी लगा लिहिन अम्मा.. ई का हुई गवा अम्मा”

अम्मा का जी धक से हो गया, साँस हलक में अटकी रही, ऐसे जैसे तेज हवा के झोंके से रेगनी पर एक कपड़ा किसी सहारे में अटका रह जाता है और हवा में झूलता रहता है ना गिरता है ना थिरता है.

 मुसीबत का पहाड़ टूटना एक कहावत ही सही,जब चरितार्थ होता है तो पहाड़ सा ही हृदय को दबाता रहता है दुखों के बोझ तले।

 किसी तरह अपने को सँभालते हुए गिरते पड़ते सुषमा राजेश और सास के साथ बड़े भैया के घर जाने को हुई थी कि पड़ोस के शर्मा जी ने टोक दिया,,

 “राजेश बेटा, हमको लगता है अभी वहां जाना तुम लोगों का ठीक नहीं होगा. पुलिस कैसे हो गया है तुम्हारे भाई को कस्टडी में ले लिया है. बहू के मायके वाले आए हैं.. बड़ा हो हल्ला मचा है दरवाजे पर.

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 कदम जहां थे वहीं रुक गए.

बड़ी विकट स्थिति थी दिल में कोई चीज ऐसी अटकी पड़ी थी कि उसके होने से घुटन हो रही थी और बाहर निकलने से भय।

सुषमा सास के गले लिपटकर रो पड़ी क्या करे.. क्या न करे..इस क्षण.. यह एक यक्ष प्रश्न था उनके समक्ष। अचानक दीदी का चेहरा आँखों के सामने घूम गया,बच्चों के पास ना होते हुए भी उनके रोने की आवाज़ कानों में चीत्कार उठी थी.

 पूरी गृहस्थी ही ढहे-ढिमलाए माटी के घर जैसी विनष्ट हो गई थी.

ईश्वर का यह क्या प्रकोप बरसा है उनके परिवार पर. अम्मा सर पर हाथ धरे रोए ही जा रही हैं, बच्चे सहमे हुए कुछ समझ पाने की कोशिश कर रहे हैं।ये.. कुछ कह नहीं रहे मगर भैया से लाख मनमुटाव के बावजूद इस समय भाई को अपने गले लगा कर फूट फूट कर रोना चाहते हैं.. यह इनका चेहरा साफ-साफ बता रहा है।

 भैया और दीदी में शादी के दो साल के बाद से ही लड़ाइयाँ शुरू हो गईं थीं. पता नहीं क्या था मगर दोनों के बीच कभी दांपत्य जीवन का तालमेल बना ही नहीं।

भैया की कपड़े की दुकान थी पर दुकान में ज्यादा आमदनी न थी. घर में सुख सुविधाओं की कमी तो थी ही, कुछ भैया का गर्म मिजाज भी आज की इस दुर्घटना का कारण बन गया. दीदी सुंदर बहुत थी उन्हें अपने रूप का बड़ा मान रहता था.. भगवान ने दिया भी तो था इतना..

 दो बच्चे थे प्यारे प्यारे 

 दीदी और सुषमा को अलग हुए पाँच वर्ष हो गए थे. सुषमा का दीदी से  कोई वाद -विवाद नहीं था, हाँ, मगर उन्हें हमेशा ये बात खलती थी कि अम्मा अपनी छोटी बहू को बहुत चाहती है और यही वजह थी कि वह सुषमा से कटी कटी रहती थीं. 

 बोलती कुछ न थीं, उनकी अधिक बोलने की आदत नहीं थी.सब कुछ उनका मौन ही कह जाता था.

कुछ लोग आक्रोश में वह सब कुछ कह जाते हैं जो उन्हें नहीं कहना चाहिए था… कुछ लोग वह सब कुछ नहीं कह पाते हैं जो उन्हें कह देना चाहिए था..

 जो अपनी बात कहते नहीं हैं, वह अंदर ही अंदर ज्वालामुखी बनते रहते हैं न मृत…   न जीवित… सुषुप्त..

 और एक दिन वह ज्वालामुखी अप्रत्याशित रूप से फट जाता है.. आज वही ज्वालामुखी फटा था।

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      रात को दीदी और भैया में जोरदार झगड़ा हुआ था.जैसा कि दीदी की आदत थी हमेशा कि वह घंटे दो घंटे कमरा बंद करके पड़ी रहती थीं. भैया ने इस बार भी उनका कमरा बंद होने पर विशेष ध्यान नहीं दिया होगा लेकिन जब ध्यान दिया तब तक सब कुछ बिखर गया था.. दीदी हम सब को छोड़कर जा चुकी थीं.

 वक्त रहते अगर इस मामले में सभी ने हस्तक्षेप किया होता तो शायद आज वह जीवित होतीं. अगर भैया ने अपने क्रोध पर नियंत्रण किया होता तो आज उनकी पत्नी और उनके बच्चों की मां जीवित होती.

मायके वाले जो आज अपनी बेटी के मरने पर तांडव कर रहे हैं,अगर वक्त रहते उन्होंने झगड़े को सुलझाने का प्रयास किया होता तो उनकी बेटी आज जीवित होती. और अगर मामला न सुलझता तो अपनी बेटी को इस रिश्ते से छुटकारा भी दिला सकने का विकल्प था उनके पास.. चाहे वह जहां भी रहती..जहां भी… मगर आज वह जीवित होती.

जब से रिश्ता और घर अलग-अलग हुआ, सुषमा ने कभी उनके मन की तह में जाकर झांकने की कोशिश नहीं की.

 देवरानी जेठानी बहन जैसी हो जाएं, यह घटना तो विरले ही होती है इस दुनिया में.

 जैसे-तैसे दिन बिता, शाम को पंचनामे के बाद शव घाट पर ही लाया गया.

 भैया को कस्टडी से छोड़ दिया गया, आत्महत्या ही साबित हुआ था. दीदी को  अंतिम विदाई देने का वक्त आ गया, उन्हें सुहागन का पूरा श्रृंगार सौंपा गया, एक सुहागन की अर्थी उठना हमारे समाज में बड़ा शुभ माना जाता है मगर क्या इस तरह की अर्थी शुभ थी..

भैया ने जब चुनरी ओढ़ई,सिंदूर भरा तो सबकी आंखों से नीर फूट पड़ा..

 हाय रे विधाता! यह कैसी विडंबना.. जिससे लड़ते हुए यह नौबत आ गई जिसके कारण मृत्यु को गले लगाया उसी के हाथों सजाकर विदा की जा रही है यह सुहागन..

 कभी-कभी दो पल के गुस्से से प्यार भरा रिश्ता और प्यार भरी दुनिया सब बिखर जाते हैं।

श्वेता सोनी

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