वक्त पर काम आना – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

मानव और मनमीत दोनो एक ही गांव से थे दोनो ही गरीब परिवारों के थे मनमीत मानव से सात साल बड़ा था जो कि शहर में छोटी मोटी नौकरी कर रहा था और मनमीत नौकरी की तलाश में था कुछ जगह धक्के खाने के बाद उसने विदेश जाने का मन बनाया गांव की सोसाइटी में कर्ज की बात की तो सोसाइटी के प्रवन्धक ने कहा कि ठीक है अगर वीजा आ जाता है तो मैं कर्ज़ दे दूंगा।

मनमीत का आज शहर में इंटरव्यू था वो इंटरव्यू में पास हो गया उसे कहा गया कि बीस दिन में बीजा आ जाएगा उससे पहले अपना मेडिकल करवाकर जमा करवाओ। मेडिकल की फीस तकरीबन चार हजार रुपये थी। मनमीत ने तो बड़ी मुश्किल से आने जाने का किराया ही इकट्ठा किया था अब मेडिकल कहाँ से करवाये उसे समझ नही आ रहा था।

तभी उसे मानव का ख्याल आया कि वो भी तो इसी शहर में रहता है उसने फ़ोन किया और अपनी परेशानी बताई मानव ने कहा कि मुझे आज का दिन का बक्त दो कल तक मैं इंतज़ाम करता हूँ और आज तू मेरे पास रह जा कल मेडिकल करवाकर चले जाना। जैसे कैसे मानव ने किसी यार दोस्त से मांगकर चार हजार का इंतज़ाम किया मेडिकल हुआ और मनमीत महीने भर में विदेश चला गया। 

मनमीत ने जाते ही सैलेरी पर मानव को चार हजार भेज दिए सोसाइटी का कर्ज भी उतार दिया और खूब पैसा कमाया। कई साल गुजर गए मनमीत के दो लड़के हुए तो मानव की दो लड़कियां एक लड़का। मगर मानव की हालत आज भी बही कमाने और बही खाने वाली थे। मानव ने अपनी बड़ी बेटी की शादी रखी तो मनमीत को भी फ़ोन कर दिया मनमीत छुट्टी लेकर घर आया उसे मानव के हालात पता थे। दहेज तो दूर बारात के खाने का इंतज़ाम भी मुश्किल था। 

मनमीत अपना बुरा बक्त नही भुला था इसलिए उसने बड़ी चालाकी से मानव को कहा कि भाई देखो मेरा एक सपना है अगर तुम पूरा कर दो तो मैं जिंदगी भर एहसानमन्द रहूँगा। मानव ने हैरानी से पूछा कि मैं क्या कर सकता हूँ तो मानव ने कहा कि मेरे दो बेटे ही हैं और मैं चाहता हूं कि मेरे घर से बेटी की डोली उठे मैं किसी बेटी का कन्यादान करूँ

क्योंकि ये सबसे बड़ा दान माना जाता है और बैसे भी तेरी तो दो बेटियां हैं तुम तो अगली का भी कर सकते हो। थोड़ी देर सोचकर मानव ने हां कर दी क्योंकि उसकी मजबुरी भी थी मनमीत ने न सिर्फ कन्यादान किया बल्कि पूरे शान शौकत रस्मो रिवाज से गहने दाज आदि देकर बेटी को विदा किया। पूरा गांव मनमीत की तारीफ कर रहा था मगर मन ही मन मनमीत यही सोच रहा था कि आज मैं जो कुछ भी हूँ उन्ही चार हजार की बजह से हूँ जो मानव ने दिए थे। इसलिए ये सिर्फ बक्त पे काम आने की मेरी बारी थी जैसे मानव ने बक्त पर मेरी मदद की थी।

 

              अमित रत्ता

      अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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