मौसम हमेशा एक सा नहीं रहता कांता …आज धूप है तो कल छाँव भी होगी… एक दिन तेरी किस्मत में भी अच्छे दिन आयेंगे… तू चिंता क्यों करती हैं हम है ना तेरे साथ… जाने दें तेरे पति ने जब साफ साफ कह ही दिया उसको तेरे साथ नहीं रहना… फिर उसको जिसकेसाथ जाना जाने दें… उसको तेरे से जब प्यार ही नहीं है तो क्यों रोज रोज उसकी मार सहती है? … अब जब उसने तेरे से पूछा बच्चों कोचाहे तो रख सकती है या चाहे तो वो ले जाए… तुने क्या बोला?”रमा जी ने कांता से बड़े प्यार से पूछा
‘‘क्या बोलूं दीदी जी ,ऐसा लग रहा चार साल कैसे उस ज़ालिम के साथ दिन काटे … बस बच्चों की वजह से ही ना… अपने बच्चे उसकोकैसे दे सकती थी … मना कर दिया….फिर उस कलमुंही के साथ अपने जने बच्चे कैसे जाने देती …. जाने कैसा व्यवहार करें ?”कांताका मद्धिम स्वर उसके हाल को बयां करने को काफी था।
“ सुन तू ऐसा कर अब उस खोली में तो तेरा पति दूसरी औरत के साथ रहेगा तुम लोग वहां तो नहीं रह सकते हो….बस तू तो अब बच्चोंको लेकर हमारे साथ ही रह…
मेरी तबियत भी ठीक नहीं रहती..॥॥फिर इधर घर में तेरे भैया (रमा के पति)और कुहू (बेटी)ही तो रहते….जा जो स्टोर है उसको साफ़कर के उधर ही रहने की व्यवस्था कर ले….बच्चों को भी ले आ।” रमा जी अकसर बीमार रहती थी, ज्यादा काम कर ले तो चक्कर आनेलगते थे, इसलिए उनको लगा कांता के यहां रहने से उनको बहुत मदद मिल जायेगी।
दफ्तर से जब अरूण बाबू (रमा जी के पति )आये तो उनको भी यही लगा रमा ने सही निर्णय लिया।
कांता के बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ने भेज दिया। कुहू अभी एक साल की थी इसलिए रमा जी को उसपर ध्यान देने का पूरा वक्त मिलजाता था । कांता ने बहुत अच्छे से सब संभाल लिया था। वक्त के साथ साथ कांता भी उस घर का हिस्सा बनती जा रही थी ।
एक दिन रमा जी को चक्कर आ गया, वो होश में नहीं आ रही थी। कांता ने जल्दी से अरूण बाबू को फोन करके सब बताया और अपनेबड़े बेटे को साथ लेकर अस्पताल भागी।
डाक्टर ने नब्ज टटोलते हुए बोला ,“अब तो इनकी सांसें चल ही नहीं रही है…।” ये सुनते ही कांता के होश उड़ गए
तब तक अरूण बाबू भी आ गए थे….पत्नी के जाने का दर्द सीने में दफन कर उसकी अंतिम विदाई की।
अरूण जी अब उदास रहने लगे थे…..कांता के बच्चे उन्हें बाबूजी कहते थे और हमेशा कोशिश करते कुहू और बाबू जी को खुश रखे।
कुहू अभी दस साल की ही थी….वो कांता के बहुत करीब थी और उसे मौसी बोलती थी ।
अब कांता पर पूरे घर की जिम्मेदारी आ गई थी।
अरूण जी ने कांता के दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाई…..बिल्कुल अपने बच्चों की तरह ।
आज कांता के बड़े बेटे दीपक को अपने कालेज के दीक्षांत समारोह में अवार्ड मिलने वाला था।
बेटे ने बोला ,“आप सब को कालेज आना होगा….बाबू जी आप भी कुहू के साथ आइएगा….।”पहले तो अरूण जी ने मना कर दिया परदीपक की जिद के आगे हार गए।
सब लोग कॉलेज गये….जब दीपक का नाम बुलाया गया तो वो उठा और अरूण बाबू को अपने साथ मंच पर चलने का आग्रह करनेलगा।
अरूण बाबू बोले ,“बेटा अपनी माँ को ले जा….मैं जाकर क्या करूंगा?”
दीपक के बहुत आग्रह पर अरूण जी मंच पर गये।
दीपक को जब सम्मान दिया गया तो उसने अरूण जी के चरणों में समर्पित कर दिया और बोला‘‘ आज मैं जो कुछ भी हूँ इनकी वजह सेहूँ…..ये मेरे सबकुछ है….मेरे पापा ने जब हमे छोड़ दिया तो इन लोगो ने हमें अपना मान कर वो सब दिया जो हम कभी सपने में भी नहींसोच सकते थे….बाबू जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।”
कांता ये सब देख कर अपनी दीदी जी को याद कर रही थी,….आज उसके बच्चे जिस मुकाम पर हैं उसका सारा श्रेय दीदी जी को जाताहै….वो ठीक ही कहती थी मौसम हमेशा एक सा नहीं रहता…..धूप छाँव के खेल में बदलता रहता है…..आज उसने महसूस किया उसकेजीवन के पतझड़ को तो रमा दीदी ने खत्म कर दिया था अब जाकर उसके जीवन में बसंत आया है…॥वक्त का पहिया कब घुम जाए….कोई नहीं जानता….रमा दीदी आप होती तो कितना अच्छा होता ….।सोचती कांता आँखो में आये आंसू पोंछने लगी।
अब उसने अपना सारा जीवन अपने बच्चों के साथ साथ भैया और कुहू के लिए झोंक दिया।रमा दीदी के जाने के बाद उनदोनो के जीवनमें जो पतझड़ आया है उस मौसम को भी तो बदलना होगा।
दोस्तों कभी-कभी ऐसे लोग मिल जाते हैं जो निःस्वार्थ भाव से किसी के लिए सर्वस्व लुटाने को तैयार रहते हैं…….आपकी थोड़ी सी मददकिसी के जीवन में आए धूप को छाँव देकर बचा सकती है…. ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# कभी धूप कभी छाँव