वापस लौट आओ तुम.. – वीणा   : Moral Stories in Hindi

 हाय .आँटी. मैं तरन्नुम, सरला आँटी ने भेजा है मुझे।

ओह.. हाँ, मैंने कहा था सरला को। एक्चुअली मेरा पोता है अरमान ,उसकी देखभाल के लिए जरूरत थी मुझे किसी की। पाँच साल का है,दो साल पहले उसकी माँ की एक एक्सीडेंट में डेथ हो गई थी…उसी एक्सीडेंट में मेरी भी स्पाइनल इंजरी हो गई है। अब तो व्हील चेयर पर रहती हूं,अरमान के पीछे भागा नहीं जाता मुझसे।

और इसके पापा–तरन्नुम ने पूछा।

अमन का कारोबार है..अक्सर काम के सिलसिले में बाहर जाता रहता है। वह भी इसकी देखभाल नहीं कर पाता।

आप चिंता न करें आँटी, मैं अरमान की अपने बच्चे की तरह देखभाल करूंगी।

रहती कहाँ हो तुम–विमला जी ने पूछा।

शेल्टर में रहती हूँ …आँटी । बचपन में ही मम्मी–पापा की डेथ हो गई थी,पता नहीं किसने शेल्टर होम में रखा..पर वहीं रहती हूँ।

ओह, पढ़ी लिखी हो … विमला जी ने  फिर पूछा।

ग्रेजुएट हूं आँटी ..वो भी फर्स्ट डिवीजन। शादी भी हो गई थी,पर दो साल बाद तलाक हो गया।

कोई बात नहीं…अंदर अरमान बैठा हुआ है,जाकर मिल लो। और हां…तुम्हें शेल्टर में रहने की कोई जरूरत नहीं, अपना सामान लेकर यहीं आ जाना।

हेलो अरमान–कैसे हो? मैं तुम्हारी नई दोस्त, तरन्नुम।

अच्छा–अरमान ने धीरे से कहा। क्या तुम मेरे साथ खेल सकती हो।

हाँ हाँ ,क्यों नहीं–हमलोग अभी खूब धमा चौकड़ी मचायेंगे। तरन्नुम ने हँसते हुए कहा।

वो दोनों पोर्च में खेल ही रहे थे कि एक कड़क दार आवाज आई।

क्या कर रहे हो तुमलोग यहाँ? और हाँ ..तुम कौन हो? तुम्हें तो आज के पहले कभी नहीं देखा यहाँ?

मैं अरमान की नई दोस्त हूँ। सरला आँटी के कहने पर यहाँ आई हूँ।

वो तो ठीक है पर मुझे अपने घर में अनुशासन पसंद है और मैं किसी भी कीमत पर इसे भंग नहीं करना चाहता।

आज हो गया,आज के बाद ये उछल कूद मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए।

पर सर–तरन्नुम ने अमन को टोका। बच्चों को तो खेलने देना चाहिए तभी तो उसके व्यक्तित्व का विकास होगा।

मैं अरमान का पिता हूँ, मुझे अच्छी तरह से पता है कि इसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

ठीक है सर,आगे से ध्यान रखूँगी।

पर अमन के जाते ही फिर से दोनों धमा चौकड़ी मचाने लगे।

अमन की माँ विमला जी भी घर गुलज़ार होने से खुश थी। जब तक अमन घर में होता तीनों अपने अपने काम में लगे रहते,पर अमन के जाते ही घर हँसी ठहाकों से गूँज उठता।

एक दिन बातों बातों में विमला जी तरन्नुम से उसके तलाक की वजह पूछ बैठी।

तरन्नुम ने हँसते हँसते कहा–वो आँटी.. मैं माँ नहीं बन सकती न, इसीलिए उन्होंने मुझे तलाक दे दिया। पर कोई बात नहीं आँटी..अरमान तो मेरे बेटे जैसा ही है न।

हां हां.. क्यों नहीं 

अरमान के प्रति तरन्नुम का लगाव देख विमला जी के मन में ख्याल आने लगा कि क्यों न अमन का ब्याह तरन्नुम के साथ करा दिया जाय, पर अमन से पूछते हुए भी डर रही थी, कहीं उखड़  न जाय। उसके व्यवहार का पता भी तो नहीं चलता। जब से नीरजा नहीं रही, वह गुमसुम और चिड़चिड़ा हो गया है।

एक दिन दोपहर में खाना खा कर विमला जी कमरे में आराम करने चली गई और अरमान और तरन्नुम कैरम खेलने लगे। खेल खेल में दोनों एक दूसरे को छेड़ भी रहे थे और चुहल भी कर रहे थे कि तभी अमन वहाँ आ पहुँचा और चिल्लाने लगा…यही संभाल रही हो तुम अरमान को, तुम्हारे साथ रहकर तो यह पूरी तरह से बिगड़ जाएगा। चलो निकलो यहाँ से..कोई जरूरत नही इसकी देखभाल करने की। वैसे भी तुम्हारा अपना बच्चा होता तो तुम समझती , पर तुम तो बाँझ हो , तुम्हें कैसे पता चलेगा कि बच्चे को अनुशासन में कैसे रखा जाता है।

अंतिम वाक्य पूरा होते होते विमला जी हल्ला गुल्ला सुन बाहर आई और बोली –छी:, शर्मिंदा हूँ मैं तुम पर और अपने आप पर। पहले तो मैं तुम्हारे व्यवहार को तुम्हारा दुख समझती थी, पर यह तो तुम्हारी कुंठा है। संवेदना तो तुम्हारे अंदर खत्म हो चुकी है।

उधर तरन्नुम ने रोते रोते अपना सूटकेस उठाया और घर से बाहर चली गई। किसी ने उसे जाने से नहीं रोका। विमला जी एक औरत थीं…समझ सकती थी कि एक औरत की भावनाएं कितनी आहत हुई होगी।

उस शाम घर में किसी ने खाना नही खाया। अरमान की सारी चंचलता काफूर हो गई थी, बस एक ही रट लगाए जा रहा था…मुझे तरन्नुम आँटी चाहिए, मुझे तरन्नुम आँटी के पास जाना है।

और विमला जी..व्हील चेयर पर बैठी ऐसी दिख रही थी जैसे बरसों से बीमार हो। घर में खुशी की   जो किरण उन्हें दिख रही थी,अब उसका कहीं अता पता नहीं था।

अमन सबकी हालत देख सन्न रह गया था। अरमान..जो उसे देखते ही उसकी गोद मे आने को मचल उठता था, वह उसकी ओर देख भी नहीं रहा था। विमला जी निढाल पड़ी हुई थी।

अब उसे समझ में आ रहा था कि तरन्नुम की उसके घर में क्या अहमियत थी। वह खुद भी उसकी उपस्थिति को कितना मिस कर रहा था।

उसके आँखों की चमक, अरमान और विमला जी के साथ उससे छुपकर किया गया उसका चुहल सब उसे याद आ रहा था।

वह समझ नहीं पा रहा था कि जिससे उसने ढंग से कभी बात भी नहीं की, वह उसके मन के अंदर कितनी पैंठ कर गई है।

उसने गाड़ी निकाला और तरन्नुम को ढूँढने निकल पड़ा। पहले तो वह उसके शेल्टर होम में गया लेकिन वो वहां पहुँची ही नहीं थी।

मन ही मन भगवान का नाम लेते हुए वह सड़कों की खाक छानते रहा, पर तरन्नुम उसे कहीं भी दिखाई नहीं दी।

लास्ट में थक हारकर वह घर लौट ही रहा था कि दूर  सड़क किनारे एक पेड़  के नीचे वह बैठी दिखाई दी।

वह तुरंत गाड़ी से उतर कर बाहर आया और उसके सामने हाथ जोड़ खड़ा हो गया। फिर बोला– तरन्नुम ,मुझे माफ कर दो। मेरी माँ और बेटे के दिल में तुमने जो जगह बना ली है,उसे कोई खाली नहीं कर सकता.. मैं भी नहीं।

और अपने दिल की मैं क्या कहूं..इन चंद घंटों में तुम्हारी अनुपस्थिति ने मेरे दिल को भी हिला कर रख दिया। शायद तुम्हारे बिना मेरा घर और मैं दोनों अधूरे हैं।

बस एक बार वापस लौट आओ तुम….

वीणा

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