व्यवहार – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

 ‘माँ,भाभी शिक्षित अवश्य हैं,किंतु रसोई के काम में बिल्कुल भी माहिर नहीं हैं। देखो न,सब्जियों में तेल-घी तो न के बराबर ही डालती हैं। रोज ही उनकी बनाई सब्जियों में नमक और मिर्च मसाला कम होता है। इतनी रूखी-सूखी और  बेस्वाद सब्जियां कोई कैसे खा सकता है ? आप कभी कुछ कहती क्यों नहीं उन्हें ?’ 

    दरअसल अपने भैया के विवाह के पश्चात् अपनी हमउम्र नई- नवेली भाभी को घर में मिलने वाले विशेष स्नेह और सम्मान से उसकी अविवाहित ननद ‘विधि’ अपने आप को तनिक उपेक्षित सी महसूस करने लगी थी और अपनी इसी खीझ को वह भाभी की शिकायत के रूप में खूब नमक-मिर्च लगाकर मां के समक्ष प्रकट कर रही थी।

   ‘हाँ,बेटा ! लेकिन क्या तुमने यह अनुभव नहीं किया कि अपने शांत एवं सौम्य व्यवहार से वह इस घर के अन्य सभी तौर-तरीकों को समझकर धीरे-धीरे उनका अनुसरण करने का प्रयास भी कर रही है ? असल में यही ‘व्यवहार’ उसका वास्तविक कौशल है।’

     ‘ वाह मां ! यह भी खूब है !’ विधि पुनः भुनभुनाते हुए बोली, ‘मुझे तो आप हमेशा सीख देती आई हैं कि स्त्रियों की किचन के काम में पूरी दक्षता होनी चाहिए , जिससे अपने ससुराल में वह सबका मन मोह सके और अब घर‌‌ में भाभी के आते ही आपकी इस संबंधी धारणा ही बदल गई ।’

 ‘नहीं बेटा ! ऐसा नहीं है और जहां तक तुम्हारी भाभी की पाक कला के कौशल की बात है तो जैसे अपने सौम्य व्यवहार से उसने हम सब का मन मोह लिया है वैसे ही अपनी व्यावहारिक कुशलता के बल‌ पर वह हमारे घर की शैली और स्वाद के अनुसार किचन का काम भी धीरे-धीरे अवश्य सीख जाएगी। हमेशा ध्यान रहे बेटा कि व्यक्ति का कुशल व्यवहार उसकी अन्य बहुत सारी न्यूनताओं को ढांपने की क्षमता रखता है।’

   ‘माँ, मुझे क्षमा करें। आपकी व्यावहारिक-कुशलता सचमुच अद्भुत है! आज से समय-समय पर मैं भी भाभी के सहयोग के लिए अवश्य किचन में जाया करुंगी’ कहते ही विधि मां के गले संग झूल‌ गई और दोनों के मुख पर मधुर मुस्कान आ गई।

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब।

#नमक मिर्च लगाना

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