वृंदा – पूजा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : ऑफिस से आते ही अमित ने कहा , वृंदा  आज मैने  एक हफ्ते की छुट्टी  ले ली है मां  का पेल्विक बोन में फ्रेक्चर हो गया है मुझे कल कानपुर जाना है नमित का फोन आया था वह बाथरूम में गिर गई थी ।

  आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया मैं भी आपके साथ चलती ।

  तुम कैसे दोनो बच्चों को छोड़ कर चल सकती हो ?

दोनो के स्कूल हैं फिर मां कौन सा तुम्हारी सेवा से खुश हो जाएंगी वह तो हमेशा की तरह तुम्हारे काम में कमी निकलेंगी ही अच्छा है मुझे ही जाने दो ।

   डाक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा है  ,देखते है क्या होता है तुम मेरे कुछ कपड़े और सेविंग किट जरूर रख देना ,हो सकता है मुझे हॉस्पिटल में रुकना पड़े ।

      अमित को चाय पकड़ा कर मैं उनकी जाने की तैयारी के लिए सूटकेश लगा रही थी परंतु मेरे मानस पटल में वही शादी के बाद सासू जी के साथ गुजारे सात साल याद आ रहे थे ।

      घर में बड़ी बहू बनकर आई थी ,बिदाई से पहले मम्मी  ने समझाया था देवर ननद को अपने भाई बहिन की तरह समझना ।अब तुम्हारा वही घर है सबके दिल में जगह बनाना  ,प्रेम विश्वास सम्मान जितना दोगी उतना पाओगी ।

मम्मी की बातों को गांठ बांधकर मैने सबसे प्रेम किया सबको सम्मान दिया आज भी देती हूं परंतु पापा जी ने तो बदले में प्यार और सम्मान दिया परन्तु मम्मीजी मेरी हर तारीफ में कमियां निकाल ही लेती थी ।

      हम दो बहनें ही थे  भाई की कमी नमित ने पूरी कर थी नमित को मैं भाई मानती थी मुझे छोटा भाई मिल गया था उसकी हर फरमाइश पूरी करने की कोशिश करती थी  

 नेहा को भी दिल से चाहा था कभी कोई कमी नही रखी

तब इनकी नौकरी इतनी अच्छी नहीं थी अमित बैंक की परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे ।

     पापा जी कभी हम लोगों से कुछ मांगते नही थे परंतु हमे लगता था कि खर्चों में उनका हांथ बटाना हमारी डयूटी है । एक दिन मैने कहा एम ए बी एड हूं क्यों नही मैं किसी स्कूल में पढ़ाने लग जाऊं घर में कुछ पैसा आएगा एक दो साल में नेहा की शादी होनी है तो हम भी कुछ हांथ बटा पाएंगे ।

    अगले दिन संडे था पापा भी थे सभी नाश्ता कर रहे थे 

अमित ने पापा से कहा पापा वृंदा सोच रही है की वह भी स्कूल में पढ़ाने लगे । घर में समय बरबाद करके क्या फायदा ।

  मम्मी तुरत भड़क गई घर में इतने काम हैं अब बहू आने के बाद मैं घर में जुटी रहूं और वृंदा बाहर मौज करें।

   मम्मी जी मैं खाना बनाकर जाउगी बर्तन और सफाई तो कांति आकर कर जाती है ।

     नमित ने भी कहा भाभी का मन है स्कूल में पढ़ाने का तो क्या बुरा है ।

  और तुम भाभी की कमाई खाओ खतम करो अपना सी ए  का कोर्स जल्दी कुछ कमाओ धमाओ।

    बात उस दिन वहीं खतम हो गई 

पापा जी को मेरी प्रत्येक इच्छा का ध्यान रहता था वह जानते थे की रात के खाने के बाद मुझे मीठा खाना पसंद है तो अक्सर कुछ मिठाई ले आते  ।

  मम्मी जी इस पर भी ताना मारती अब जब से बहू आ गई तब से मिठाई लाने का बड़ा ध्यान रहता ।

  पापा चुपचाप सुन लेते पर मेरे अंदर उनके लिए बहुत प्रेम आ जाता मै उनके स्नेह मैं अपने पापा का रूप देखती थी ।

  पापा ने अपने दोस्त के कॉलेज में  मेरी नौकरी लगवा दी 

और घर में सासू जी से कहा “आज अग्रवाल मिला था उसके कॉलेज में  मनोविज्ञान की शिक्षिका की जरूरत है 

पूछ रहा था  _बहू कितना पढ़ी है 

मैने कहा  “एम ए बी एड फर्स्ट डिवीजन “

कहने लगा उस हीरा को घर में क्यों बिठाए हो अरे उसे हमारे कॉलेज में भेजो अच्छी तनखाह मिलेगी और उसकी शिक्षा का सदुपयोग होगा।

        मैं मना नही कर पाया सोचेगा कितने दकियानूसी हैं वृंदा बेटा अपने डाकूमेंट्स लेकर कल चलो मिलवा देता हूं 

कह कर पापाजी मेरी तरफ मुस्कराते हुए चले गए थे

और मम्मी बुरी तरह नाराज हो गई थी 

   अगले दिन जाते हुए मैने मम्मी जी के चरण स्पर्श किए और आशीर्वाद मांगा तो खुश रहो बोल दिया था ।

उनका आशीर्वाद मिला मुझे नौकरी मिल गई ,सुबह जल्दी उठकर नाश्ता खाने के प्रबंध में लग जाती मम्मी जी जान बूझकर हांथ नही बटा रही थीं मुझे बुरा नही लगता था मैं जानती थी की मैं उनके मन से नही कर रही हूं इसलिए ऐसा करती हैं ।

      समय निकला जब पहली पगार मिली थी मैने मम्मी जी के हांथ में लाकर दी थी जो अमित भी नही करते थे 

मेरी पहली पगार आपके लिए  मम्मीजी ,

मुझे आशीर्वाद दीजिए की मैं  आपके सहयोग से कुछ कर सकूं।

       उन्होंने लिफाफा लेने से मना किया परंतु मैने हठ करके कहा ये आपके चरणों में मेरा प्रसाद है आप स्वीकार कर लो मम्मीजी ।

      अगले दिन उनके स्वभाव में मेरे प्रति कुछ दयाभाव आ गया था ,अब वह सुबह मेरे कामों में थोड़ी मदद करने लगी मुझे भी अच्छा लगा ।

   अमित को कभी भी मैं उनकी कोई बात नही कहती थी पर अमित सब देख कर समझ रहे थे , हर महीने मैं कभी पापा जी के लिए कभी नेहा कभी नामित के लिए कुछ कर देती थी मुझे अच्छा लगता था ।छुट्टी के दिनों में मायके जा रही थी तो पापा मम्मी और जूही के लिए कपड़े और गिफ्ट लिए तो मम्मीजी को अच्छा नहीं लगा ।

     ताना देते बोली लड़की वाले हमारे यहां तो लड़की से कुछ लेते नही क्या वह लोग तुम्हारी गिफ्ट ले लेंगे ।

  मम्मीजी उनकी लड़की हूं या लड़का हम तो उनके बच्चे हैं ,हमारी खुशी में ही वह खुश रहते है ।

     जब भी मायके जाती उनकी नजर रहती की मैं कुछ उनको देकर तो नही आती  हूं ।मेरे मम्मी पापा वह तो हम से क्या लेते वह तो हमे ही देते रहते थे परंतु सासू मां को संतोष नही रहता था ।

     नेहा की शादी में बीस ग्राम का सेट लाई लहंगा मैने बनवाया परंतु कभी तारीफ के शब्द नही सुनने को मिले ।

नेहा की शादी में मैने इतना सहयोग किया परंतु सासूजी ने मेरे किए की कोई कद्र नहीं की ।

          शादी के लगभग तीन साल हो रहे थे मैं मां बनने वाली थी सुबह मॉर्निंग सिकनेस में पापाजी को मेरा ध्यान रहता था वह डोएब पनीर लेकर आते थे मम्मी को कहते वृंदा का खयाल रखो वह दो जीव से है ।

   रखती तो हूं ,मेरे बच्चे भी हुए थे तब आपको मेरा ध्यान नहीं था ,अब बड़ी समझदारी आ गईं है ।

    हां भाई अब हम लोग बाबा दादी की तरह समझदार तो होंगे ही ,दादी तो नही है समझदार पर बाबा तो समझदार हो गया है ।

    मुदित का आना घर में खुशियां ला रहा था दूसरे महीने में नेहा की शादी हो गई ,तीसरे महीने में अमित का बैंक में चयन प्रोवइशनेरी ऑफिसर के पद पर हो गई ।

    मुदित के पैदा होने के बाद मेरी नौकरी जरूर बंद हो गई जिम्मेदारियों बढ़ गई थी परंतु मैं खुशी से निभा रही थी।नमित का भी सी ए का कोर्स पूरा हो गया था ।

       मुदित दो साल का था की माही हो गई  ।नामित की शादी हो गई घर में देवरानी आ गई थी मेरा पद बड़ा हो गया था ,अमित की पोस्टिंग जब बॉम्बे हो गई तो शादी के सात साल बाद मुझे इनके साथ आना पड़ा ।सासूजी को तब मेरी अहमियत समझ में आई अब उनको वह सम्मान भी नही मिल रहा था पापा जी रिटायर हो गए थे ।

         फोन पर बात करती थी तो अब उनके स्नेह भरे शब्दों में एक पश्चाताप समझ आ रहा था ।कुछ भी हो मुझे भी इस समय उनके पास होना चाहिए एक हफ्ते बच्चे स्कूल नही जायेंगे तो क्या हमको भी उनकी सेवा का हक है । 

    सेवा , प्रेम आदर जितना दोगी उतना पाओगी मां के कहे शब्दों को याद कर मैने अपने बच्चों के कपड़े भी रख लिए और अमित से साथ चलने के टिकिट करवाने को बोला ।

    घर पहुंच कर देखा देवरानी सेफाली अपने कमरे में मोबाइल पर कुछ काम कर रही थी मम्मी जी के कमरे में हम लोग गए तो जैसे मैं उनके गले मिलने बिस्तर पर झुकी उन्होंने मुझे गले से लगा लिया वह लगातार रो रहीं थी मेरी वृंदा मैने तेरी कदर न जानी मेरी बेटी मुझे माफ करना ।

   मैं सोचती थी की सासू जी ने मेरी कदर न जानी ,आज लगा उनके आंसू नहीं ये मेरी कदर के कद्रदान आशीर्वाद है 

सेवा कभी व्यर्थ नहीं होती । 

         एक हफ्ते पूरी तन्मयता से हम दोनो ने उनकी सेवा की समय का अभाव था इसलिए जाना पड़ा परंतु एक वादे के साथ की वह अगले महीने पापा जी के साथ हम लोगो के पास रहेंगी, बच्चों को बाबा दादी के प्यार से वंचित नहीं करेंगी । 

     स्वरचित 

पूजा मिश्रा   

कानपुर 

#सासु  जी तूने मेरी कदर न जानी

 

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