मिसिस एन्ड मि. राहुल गुप्ता का इकलौता बेटा रोहन, पढ़ लिख कर यू एस में जॉब करता था। पिछले 5 साल में 2 बार भारत आया था। पहली बार अपनी शादी करवाने और दूसरी बार अब, पिताजी के गुजरने पर। पिताजी के जाने के बाद, मॉ एकदम अकेली हो गई थी,
इसलिए रोहन चाहता था कि अब मॉ भी उनके साथ यू एस में रहे, पर मॉ को घर से बहुत लगाव था, और छोड़ना नहीं चाहती थी। रोहन बड़ी दुविधा में था, मॉ को अकेले किस के भरोसे छोड़े, ओर नोकरी भी छोड़ नहीं सकता। उसने अपनी छुट्टी बड़वा ली और अपनी पत्नी को यू एस भेज दिया,
क्योंकि वो भी नोकरी करती थीं। जब मॉ को मनाने की सारी कोशिशें नाकाम जो गई तो उसके मन मे एक विचार आया। वो सीधा व्रध आश्रम गया, ओर वहाँ की एथॉरिटी से मिला ओर अपनी सारी परेशानी बताई। साथ मे ऑफर दिया कि आप मेरे घर को व्रघ आश्रय में कन्वर्ट करके,
कुछ लोगो को वहाँ शिफ्ट करदे। मॉ अपने ही घर मे, आपकी देख रेख में बाकी लोगो के साथ रहेगी ओर मैं भी निश्चित होकर यू एस जा सकूगा। एथॉरिटी ने रोहन को थोड़ा समय देने के लिए कहा, ओर आश्वासन दिया कि हमसे जो कुछ बन सकेगा, जरूर करेंगे। रोहन एक उम्मीद लेकर बाहर निकल आया।
व्रद्ध आश्रम से निकलते हुए रोहन को सफेद कुर्ते पायजामा पहने, दाड़ी वाला एक जाना पहचाना सा चेहरा आता हुआ नज़र आया। वो भी रोहन को देख रहा था शायद पहचानने की कोशिश कर रहा था। पास आकर वो रुक गया और बोला, तुम रोहन हो क्या? उसकी आवाज सुनकर रोहन भी उसे पहचान कर बोला, विवेक? दोनो बचपन के दोस्त थे,
आज लगभग 20 सालों बाद मिले थे। रोहन 8वी क्लास के बाद, होस्टल में अपनी नानी के शहर चला गया था। वहीं से कॉलेज, फिर पी जी ओर जॉब ओर फिर यू एस। विवेक उसे फिर अंदर ले गया और यहाँ आने का कारण पूछा। रोहन ने सारी समस्या बताई। फिर विवेक ने बताया कि ये एक प्राइवेट वृद्ध आश्रम है और मैंने इसे अपने पिताजी की याद में बनवाया था।
इस कहानी को भी पढ़ें:
“टूटते रिश्ते जुड़ने लगे” – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi
यहां काफी ज्यादा लोग हो गए हैं, एक भी कमरा खाली नहीं है। मैं कुछ ओर कमरे बनाने की सोच रहा था, अच्छा हुआ तुम मिल गए। मैं गवर्नमेंट कॉन्ट्रेक्टर हूँ, काफी नेताओं और गवर्नमेंट ऑफिसरस को जानता हूँ, समझो तुम्हारा काम हो गया। चाय पीते पीते यहाँ वहाँ की बातें करके थोड़ी देर बाद एक दूसरे का मोबाईल न. लेकर चले गए।
कुछ दिन बाद विवेक ने रोहन को फोन किया और बताया कि लोकेशन आदि देख कर, सारी स्वीकृति ले ली हैं, कुछ फॉर्मेलिटी पूरी करनी है, सोमवार 10 बजे कोर्ट आ जाना। सोमवार को वकील के साथ मकान का एग्रीमेंट वगैरह बनवा लिया। कुछ दिन बाद मकान में जरूरी चेंजेस शुरू कर दिये।
रोहन ने मां से कहा, अब आप यहाँ अकेले नहीं रहेगी, आपके साथ आपके कुछ ओर दोस्त भी रहेगे। आपका खाना पीना, साफ सफाई, डॉ दवा, वगैरह किसी चीज की चिंता करने की जरूरत नहीं है, ये लोग सब देखें लेगे।
जल्दी ही सब काम पूरे करके, रोहन के पिताजी के नाम की तख्ती लगवा कर बंगले को फिर से आबाद कर दिया।
– विवेक खुश था कि कुछ और लोगों के रहने की व्यवस्था बन गई
– रोहन खुश था कि निश्चित होकर यू एस जा सकेगा और
– मॉ खुश थी कि अपने ही घर मे रहूंगी ओर सालो बाद भी रोहन के पिता के नाम की तख्ती इस बंगले पर लगी रहेगी।
अब आप ही फैसला करे कि वृद्ध आश्रम बनाने में किसका स्वार्थ सर्वोपरी था
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
20 Feb 25