आरती के पति सुदर्शन वन विभाग में कार्यरत थे। उनकी पोस्टिंग ज्यादातर जंगलों के आसपास रहती थी। जहाँ शिक्षा के पर्याप्त साधन नहीं होते थे। इसलिये अपनी ससुराल में (जो कि महानगर था) बच्चों को पढ़ाने के उद्देश्य से रहती थी। सुदर्शन साप्ताहिक छुट्टी में आया करते थे। आरती का जीवन बहुत अच्छे से व्यतीत हो रहा था। आरती का बड़ा बेटा अपने दोस्तों के साथ एक बार पिकनिक मनाने शहर से थोड़ी दूर स्थित दार्शनिक स्थल पर गया। तो वहाँ उसने अपने पापा को किसी महिला
के साथ देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा। और फिर उसने अपने पिता के जीवन को खंगालना शुरू कर दिया। जिसका रिजल्ट सदमा पहुँचाने वाला निकला। बेटे को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे माँ को बताये या चुप रहे। ऐसी ऊहापोह की स्थिति में एक दिन उसके पिता का एक्सीडेंट में निधन हो गया। पिता के जाने के बाद हालात इस कारण उभर कर आ गये। क्यों कि पेंशन उनकी पहली पत्नी को मिलने लगी। और मकान भी उन्हीं के नाम था इसलिए उन्होंने खाली करने का नोटिस भिजवा दिया था।
सुदर्शन की शादी आरती से शादी करने के पूर्व ही हो चुकी थी। प्रेम विवाह होने के कारण सुदर्शन के माता पिता ने जोर जबरदस्ती से दूसरी शादी करवा दी थी। और बात छुपा कर रखी गई थी। सुदर्शन की पहली पत्नी पति के साथ जहाँ पोस्टिंग होती थी वहीं रहतीं थी। कानूनी तौर पर वह जायज उत्तराधिकारी थीं सुदर्शन कीं।
आरती को समर्पण और विश्वास के बदले विश्वासघात मिला था। सोचने की बात यह है कि आरती का क्या कसूर था। जो वह सड़क पर आ गई थी। हर पिता को चाहिए कि वह पूरी छानबीन कर के शादी करे। ताकि उसकी बेटी के साथ विश्वासघात न हो।
#अन्याय
स्वरचित — मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .