विश्वास को खोते देर नहीं लगती
आज मौसम बड़ा ही सुहाना था । शाम भी ढ़ल आई थी।आसमान में उड़ते परिंदे भी अपने अपने आशियाने को लौट रहे थे , मगर मेरा मन कहीं और उड़ा जा रहा था । आज से तकरीबन अठाईस साल पहले की प्यार भरी गलियों की ओर ।
मुझे आज भी याद है । जब मैं इस घर की बहु बनकर आई थी !मुझे हर वक्त यही डर लगा रहता ! कहीं कोई गलती ना हो जाये ।
प्रवीन हमेशा मुझसे कहते । देखो सुनयना तुम इतना क्यों सोचती हो । हां मैं मानता हूं । शुरुआत में नया परिवार नये पारिवारिक सदस्यों के साथ तालमेल बैठाने में उनके साथ परिचय होने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है। वैसे मैं हूं ना । तुम्हारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाला तुम्हारा लाइफ पार्टनर ।
प्रवीन की यही बातें मेरे दिल को बहुत सुकून दे जाती थी ! मैं
उस वक्त यही सोचने को मजबूर हो जाती थी ! मां ने मेरे लिए
कितना अच्छा लाइफ पार्टनर चुना है । हां ये वही तो है !जिसके साथ मैं अपनी पूरी जिंदगी गुजार सकती हूं ।
मैं गोलगप्पे खाने की हमेशा से ही शौकीन रही! प्रवीन को बिलकुल भी पसंद नहीं थे, मगर जब भी हम बाहर घूमने निकलते तो प्रवीन मुझे गोलगप्पे खिलाना नहीं भूलते ! जब भी मार्केट जाते मुझसे बोल उठते…..
सुनयना तुम्हें जो कलर अच्छा लगे, वही ले लो ! वैसे ये ड्रेस तुम पर बहुत खिलने वाली है । मुझे प्रवीन की ये बातें मेरी नजरों में और भी सम्मान करने को मजबूर कर जाती थी! कहने को अपने मन की बातें कह भी देते थे मगर मजबूर कभी नहीं करते थे । वो अंतिम फैसला मुझ पर छोड़ देते थे ।
मां को तो हमेशा मेरी फिकर लगी रहती थी ! वो अक्सर फोन पर मुझे समझाती रहती । देख लाडो बड़ों का सदा सम्मान करना और हमेशा सच का साथ देना और सच ही कहने की कोशिश करना क्योंकि ये सच और झूठ ही जीवन में हमारी छवि को निर्धारित करते है।
भले ही हमने हर बार सच्चाई और ईमानदारी का साथ दिया है मगर एक बार जो झूठ की चादर ओढ़ ली। तो उसे फटते देर नहीं लगती और फिर उस चादर में सच्चाई और सफाई के टांके लगाना बड़ा मुश्किल हो जाता है।
मैं मां की बातें सुनकर हंस कर बोल उठती थी। मां आप मेरी फिक्र बिल्कुल भी ना करें ।वैसे मां मैं अब आपकी चंचल बिटिया से समझदार बहू बन गई हूं।
अक्सर ये प्रवीन मुझसे कहते हैं। सुनयना तुम्हारे व्यवहार ने मेरा विश्वास जीत लिया है । मां मेरी बात सुनकर बहुत खुश हो जाती और फिर कहने लगती।
यह तो बहुत अच्छी बात है लाडो। मैं अपनी तजुर्बे से तुझे बता रही हूं। तू दामाद जी का यह विश्वास बनाए रखना क्योंकि कभी कभी बरसों पुराने रिश्ते में भी एक छोटी सी बात को लेकर विश्वास को खोते देर नहीं लगती। अच्छा मां मैं आपकी यह बातें जिंदगी में हमेशा याद रखूंगी। मेरी बात सुनते ही मां मुझे खुश होकर ढेरों आशीर्वाद दे बैठती ।
इसी तरह दिन गुजरते गए। अब हमारी जिंदगी में नन्हा राज आ चुका था। उसके आते ही हमारे आंगन में ढेर सारे खुशियों के फूल खिल गए मगर फिर भी मैं अपनी मां की दी हुई सिख के प्रति हमेशा तैयार रहती, क्योंकि अब मैं खुद भी मां जो बन चुकी थी ।
राज ने भी अब स्कूल जाना शुरू कर दिया । ऐसे तो जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा था मगर आज शाम से मेरी नज़रें राज के अंदर के बदलाव को देखकर उसे समझने की कोशिश कर रही थी ।
और आज सुबह जैसे ही मैंने लंच बॉक्स राज के स्कूल बैग में रखना चाहा तो उसकी बैग में इतनी सारी पेंसिल देख कर मैं अवाक रह गई क्योंकि मैं तो हमेशा उसे दो ही पेंसिल ही देकर भेजा करती थी, तो फिर यह इतनी सारी पेंसिल और कहां से आई।
अचानक मेरे हाथों में सारी पेंसिल देखकर राज डर गया और घबराकर रोते हुए मुझ से कहने लगा। मां आप हमारे स्कूल टीचर को मत बताना। यह सारी पेंसिल मैंने कल कृष की स्कूल बैग से निकाल ली थी, क्योंकि कल उसने मुझसे बहुत झगड़ा किया, तो मुझे उस पर गुस्सा आ गया और गुस्से में उसकी सारी पेंसिल निकाल कर ले आया।
मैं राज को अपनी गोद में बैठा कर समझाते हुए कहने लगी। राज बेटे दोस्तों में अक्सर झगड़ा होते रहता है, मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम उसके लिए कुछ चोरी करने लगो, क्योंकि बगैर कहे निकाल लाने में और चोरी करने में कोई अंतर नहीं है। कहने को वह भी चोरी ही कहलाएगी।
आज तुमने पेंसिल चुराई है,कल फिर तुम्हें किसी बात पर गुस्सा आ गया,तो तुम और कुछ चुरा लाओगे। जरा सोचो आज अगर कृष स्कूल बैग बिना चेक किए स्कूल आ जाए, तो उसे कितनी तकलीफ होगी।
जब कृष को पता चलेगा। ये चोरी तुमने की है,तो क्लास में तुम्हारी कितनी बदनामी होगी और सबसे अहम बात तुम अपनी क्लास में टीचर और बाकि सभी दोस्तों का विश्वास हमेशा के लिए खो बैठोगे।
भले ही आज पेंसिल चुराना एक छोटी सी बात है, मगर कल को यह बहुत बड़ी साबित हो सकती है। इसीलिए बेटा आज के बाद कभी भी ऐसा नहीं करना और अभी स्कूल जाते ही सबसे पहले कृष से सॉरी बोलकर उसे सारी पेंसिल दे देना और उससे दोस्ती भी कर लेना।
मेरी बात सुनकर राज थोड़ा शांत हुआ और मासूमियत से कहने लगा। ठीक है मां मैं स्कूल जाकर कृष को उसकी सारी पेंसिल दे दूंगा और उसे सॉरी भी बोल दूंगा । आज के बाद कभी भी किसी की कोई चीज बगैर कहे नहीं लाऊंगा।
शाबाश मेरे बच्चे कहते हुए मैंने स्कूल बैग राज के हाथों में थमाई और जल्दी-जल्दी दोनों मां बेटे चल पड़े क्योंकि स्कूल बस आ चुकी थी।
आज इस बात को अठाईस साल हो गए । मगर उस दिन के बाद से राज ने मुझे कभी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया । यह सच है जो मेरी मां ने मेरे अंदर विश्वास की जड़े हरी भरी रखने के लिए मुझे सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलना सिखाया ।
वही मैंने भी अपने बेटे राज के दिल में विश्वास की एक लौ जला दी। जिसकी बदौलत आज मेरा बेटा सच्चाई और अच्छाई का चम चमाता बेदाग डॉक्टर वाला सफेद एप्रन पहनकर मेरे सामने खड़ा था ।
मैं उसे देखकर ये सोचती रही अगर उस दिन मैंने अपने बेटे को गलत रास्ते पर जाने से नहीं रोका होता, तो उसके प्रति उसके दोस्तों और टीचर का विश्वास खो चुका होता, सो अलग और ना ही वह आज मेरे सामने डॉक्टर बनकर खड़ा होता।
अचानक प्रवीन की आवाज सुनकर मैं अतित से लौट आई ! वो मुझसे बोले जा रहे थे ! सुनयना कहां खो गयी हो ! मैं कब से तुम्हें पुकार रहा हूँ ! राज को कुछ मीठा तो खिलाओ और हमें भी। तुमने कुछ मीठा बनाया कि नहीं??
मैं प्रवीन की बात सुनकर चहक कर बोल उठी। प्रवीन मीठा भी तैयार है और आरती की थाली भी और हां आज इसे राज नहीं हमारा बेटा डॉक्टर राज कहिए।
मेरी बात सुनते ही प्रवीन भी हंसकर कहने लगे। सुनयना यह तुमने बिलकुल सही कहा डॉक्टर राज। सच कहूं तो राज के आगे डॉक्टर नाम बहुत ही जच रहा है।
मैं भी हंस कर बोल उठी। प्रवीन दरअसल हमारा ही लहू इसकी रगों में दौड़ रहा है, इसलिए हमें अपने बेटे के नाम के आगे डॉक्टर बहुत अच्छा लग रहा है।
तुम बिल्कुल सही कह रही हो सुनयना । अच्छा छोड़ो अब यह बातें !! अब कुछ मीठा हो जाए कहकर प्रवीण मेरी और देखने लगे ।
प्रवीन की बात सुनकर मैं बोल उठी। प्रवीन डॉ राज ने आपको मीठा खाने मना किया है क्योंकि आप डायबिटीज के मरीज हो यह बात आपको भूलनी नहीं चाहिए।
मैं कुछ कहती उसके पहले ही राज जो इतनी देर से हमारी बातें सुन रहा था , मुस्कुरा कर बोल पड़ा। पापा आपके और मां के आशीर्वाद से आज आपका ये बेटा डॉक्टर बन गया है, तो उसकी सजा तो अब आपको मिलनी ही चाहिए और वह सजा यह होगी की आपको अब मीठा बहुत कम खाना है कहते हुए वह प्रवीन की कदमों में झुक गया।
राज को इस तरह प्रवीन के कदमों में झुक कर आशीर्वाद लेते हुए देखकर न जाने क्यों मेरी आंखें मेरे लाख रोकने के बावजूद भी भाव विभोर होकर बरस पड़ी।
मुझे इस तरह भाव विभोर होते देख राज मुझे कहने लगा। मां आपको तो आज बहुत खुश होना चाहिए क्योंकि अगर आप उस दिन मुझे पेंसिल चुराने से नहीं रोकती, तो आज आपका ये बेटा डॉक्टर बनकर आपके सामने नहीं खड़ा होता।
सच कहता हूं मां आपने मेरे नन्हें मन को उस दिन इस कदर समझाया कि जहां तक मैं समझता हूं मैंने अब तक किसी का भी विश्वास नहीं खोया है कहते हुए वो मेरे गले लग पड़ा।
हां बेटा कहते हुए मैंने मन ही मन उसे ढेरों आशीर्वाद दे डाले मगर मुंह से कुछ बोल नहीं पाई । शायद शब्दों ने मुझसे किनारा कर लिया था ।
हां कभी-कभी कुछ ना कह कर भी हम बहुत कुछ कह जाते हैं बस इसे महसूस करने वाला होना चाहिए जो कि प्रवीन और राज दोनों ही बहुत अच्छी तरह महसूस कर रहे थे।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम