सीमा ने दरवाजा खटखटाया ।”खोलती हूंँ… कौन…?”आवाज के साथ दरवाजा खुला..। उसकी बड़ी बहन रीमा ने दरवाजा खोला।”अरे..! सीमा आज सुबह-सुबह कैसे…?”” ऐसे ही दी..बस..आपसे और गौरी से मिलने का मन किया तो चली आई.. क्यों बिना बताए नहीं आ सकती क्या.”. “नहीं..ऐसी तो कोई बात नहीं है..।” कहते हुए रीमा कुछ झिझकी।”
” गौरी तो स्कूल गई होगी…कब तक आएगी..?””अरे नहीं..आज मेरी कुछ तबीयत ठीक नहीं थी..रात से ही बुखार था..इसलिए थोड़ा काम की वजह से मैंने गौरी को रोक लिया था..वैसे तुम तो जानती ही हो.. कामवाली मेरे यहांँ लगी हुई है।”
अंदर किचन में बर्तनों की आवाज आ रही थी जैसी कोई बर्तन मांज रहा हो।”अच्छा..बैठ.. तेरे लिए चाय लेकर आती हूंँ..।” कह कर रीमा वहांँ से चली गई। सीमा वहीं सोफे पर बैठ गई.. घर एकदम चकाचक साफ सुथरा। महंगे शोपीस से सजी दीवारें… ऊपर वाले की खूब दया दृष्टि थी उसकी बड़ी बहन के ऊपर ।पति स्वास्थ्य विभाग में अच्छे पद पर आसीन हैं। दो बेटे हैं.. नयन और विनय..शायद कॉलेज गए होंगे..। वह मन ही मन सोच रही थी ।
इतने में गौरी अपने दुपट्टे से हाथ पोंछती हुई वहांँ आई उसकी हालत देखकर सीमा के दिल को धक्का सा लगा। वह समझ गयी कि गौरी ही बर्तन मांज रही थी।लगभग चार महीने बाद वह अपनी बेटी को देख रही थी । देख कर उसे अपनी आंँखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसकी फूल सी बेटी की क्या हालत कर दी उसकी अपनी ही बहन ने ..। माँ को सामने देखकर गौरी की आंँखों में आंँसू आ गए। सीमा ने उठकर प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कस कर अंक में भर लिया। मां के स्नेह भरे
बंधन को पाकर गौरी की रुलाई छूट गई। सीमा भी अपने आंसुओं पर नियंत्रण न पा सकी।एक तो पति को खोने का दुख दूसरे बेटी से दूरी…सोच रही थी क्यों उस दिन अपनी बहन का कहा मान कर उसने अपनी बेटी को उसके साथ भेज दिया..?वह तो यही सोच रही थी कि उसकी बेटी का भविष्य बन जाएगा.. मगर यहांँ तो उल्टा ही हो गया। उसे याद आया वह दिन जब अपने पति विनोद की अचानक हार्ट अटैक से मृत्यु के पश्चात अपने तथा अपने तीन बच्चों के भविष्य को लेकर वह चिंतित हो
उठी थी..तब उसकी बहन रीमा ने उसकी एक बेटी की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी..सीमा ने यही सोच कर अपनी बेटी को सौंप दिया कि रीमा दी की अपनी कोई बेटी नहीं है तो वह उसकी बेटी को पूरा लाड़ प्यार देंगी.. मगर कल रात आए गौरी के फोन ने उसका सारा भ्रम तोड़ दिया । गौरी ने बताया कि वह यहाँ सिर्फ एक नौकरानी बनकर रह गई है.. मौसी ने कामवाली बाई को भी हटा दिया
है और चार महीने बीतने को आए अभी तक उसका कहीं किसी स्कूल में एडमिशन भी नहीं करवाया..वह जब भी पढ़ने के लिए कहती तो उसे बहला फुसलाकर चुप करा देती और घर के काम पर लगा देती..दोनों भाइयों को भी जैसे उससे कोई मतलब नहीं था..वे दोनों अपनी जिंदगी में मस्त थे..।
इतने में रीमा की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी।” और बता…तेरी नौकरी कैसी चल रही है..?
“ठीक ही चल रही है..”। पति के गुजर जाने के बाद सीमा ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली थी।” मुझे जाना है अभी..”।अरे…!अभी तो आई हो… खाना खाकर चली जाना..।
” नहीं.. रिंकी और मनु घर पर अकेले हैं । पड़ोस में कहकर आई हूँ उनका ध्यान रखने के लिए…। गौरी..! तुम भी अपना सामान ले लो…तुम्हें भी चलना है मेरे साथ ..।
“पर गौरी क्यों..? उसे तो अब यहीं रहना है ना मेरे साथ..!” रीमा ने हैरानी से कहा ।”नहीं.. मेरी बेटी मेरे साथ रहेगी.. “तू तीन तीन बच्चों को कैसे पालेगी अकेले..?
च “चल बेटी… घर चल अपने…एक वक्त की रोटी खा लेंगे मगर शिक्षा के मामले में कोई समझौता नहीं करेंगे…। हम पहले ही बहुत कुछ खो चुके हैं अब कुछ और खोने की हिम्मत नहीं है…।” सीमा ने गौरी का हाथ पकड़ा और चेहरे पर एक दृढ़ विश्वास की चमक लिए रीमा के घर से बाहर निकल आई ।
नाम – एकता बिश्नोई