जतिन और प्रिया का विवाह हुए अभी केवल 5 महीने ही हुए थे परंतु घर के तो रंग ढंग
ही बदल गए थे । वर्मा जी के साधारण से संयुक्त परिवार में उनके तीन बेटे थे। उनके दो बेटों का विवाह हो चुका था। और उनके बड़े बेटे के दो बेटे और छोटे के एक बेटी थी। अभी लगभग 8 महीने पहले ही जतिन ने भी अपनी सहपाठिनी प्रिया से सबकी सहमति से प्रेम विवाह किया था।
संयुक्त परिवार में घर के खर्चे के लिए दोनों बेटे 20-20 हजार रुपया देते थे। जतिन तो मल्टीनेशनल कंपनी में बहुत अच्छे पैकेज में था। विवाह के बाद उससे भी घर खर्च के ₹20000 मांगे गए। सब देख रहे थे कि इतना कमाने के बाद भी जतिन महीने के आखिर तक अपने दिए हुए 20000 में से लगभग आधे से अधिक पैसे तो मां से वापस ही ले लेता था।
जतिन की अभी शादी हुई थी और प्रिया अपने रिश्तेदारों के घर बुलावे पर जाती रहती थी और आने के बाद में बहुत महंगी महंगी साड़ियां और सूट लाया करती थी। घर में एक फुली ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन थी सब मिलजुल कर उसमें कपड़े धोते रहते थे परंतु पिछले महीने प्रिया के चाचा ने
एक नई फुली ऑटोमेटिक वॉशिंग मशीन गिफ्ट की थी। अब प्रिया ने अपनी अलग वाशिंग मशीन निकाल ली थी हालांकि घर में ऐसा अलग का कोई चलन नहीं था और प्रिया के माता-पिता ने दहेज में कोई सामान भी नहीं दिया था। प्रिया जब भी कहीं जाती , वहां से कुछ भी नया अपने लिए लेकर आती और यही कहती है यह मेरी बुआ ने दिया है चाचा ने दिया है, सहेली ने, ताऊ जी ने, यहां तक तो ठीक था परंतु इतना कमाने के बाद भी जतिन के पास महीना चलाने के पैसे भी नहीं बचते थे और
वह मां के पास पैसे मांगने महीने के अंत तक आ ही जाता था। अभी कुछ दिन पहले ही एक डिस्पेंसर भी उसकी बुआ ने दिया था जो कि प्रिया ने अपने कमरे में ही रख लिया था। हालांकि दोनों बड़ी बहू ने कुछ भी नहीं कहा परंतु यह बात मालती जी को बहुत बुरी लगी। उन्होंने कहा अगर डिस्पेंसर आया भी है तो उसे बाहर रख लो ताकि सभी उसके ठंडा और गर्म पानी का इस्तेमाल कर सकें। प्रिया ऐसी बातें एक कान से सुनती और दूसरे कान से निकाल देती। जतिन भी सबके सामने अपनी विचार को
प्रकट करते हुए बोला ,हो सकता है कि उसकी बूआ का दिया हुआ गिफ्ट वह अपने कमरे में ही रखना चाहती होगी। उसके इस व्यवहार से घर में अनचाहे ही एक अलगाव पैदा हो रहा था। मालती जी और वर्मा जी सब कुछ देख और समझ रहे थे परंतु अपने घर को टूटता हुआ नहीं देखना चाहते थे। मालती जी इशारों में ही जतिन और प्रिया को समझाती थी कि अभी तुम्हारे पास इतने सारे कपड़े
विवाह के ही रखे हैं, क्यों नए कपड़ों में पैसे बर्बाद करते हो? लेकिन तभी प्रिया कहती यह सब तो मुझे उपहार में मिले हैं ना। मालती जी चुप हो जाती थी। यदि इतने ही उपहार देने थे तो विवाह में दहेज में तो प्रिया का भी कोई सामान नहीं आया और विवाह के उपरांत उपहारों की भीड़ और जतिन के पास सारे पैसों का खत्म होना ,कोई चाह कर भी सामने कुछ नहीं बोलता था परंतु घर में सुगबुगाहट तो जोरों पर थी।
अभी इस रविवार को ही प्रिया अपने मायके गई थी तो वहां से एल.इ.डी टीवी लेकर आई थी। उनके कमरे में पहले ही एक टीवी था जो कि जतिन ने ले रखा था। मालती जी ने हैरान होते हुए पूछा इतने बड़े टीवी की क्या आवश्यकता है? तुम्हारे कमरे में तो टीवी है ही, यह तो मेरी मम्मी ने दिया है, ऐसा कह कर प्रिया ने बात खत्म कर दी।
आज दोपहर को जब तीनों बहुएं रसोई में खाने का इंतजाम कर रही थी तो बैल बजने पर बड़ी बहू बाहर निकली और सासू मां की और मुखातिब होते हुए बोली कि प्रिया ने जो टीवी मार्केट के राज इलेक्ट्रिकल से खरीदा है उसको इंस्टॉल करने के लिए आदमी आया है। सब जब प्रिया की ओर देखने लगे तो प्रिया बोली वह तो मेरी मम्मी ने टेलीविजन खरीदने के पैसे दिए थे।
इतने में जतिन भी घर आ गया था। उसे शायद पता चल गया था कि टीवी इंस्टॉल करने के लिए कोई आया है। मालती जी ने जतिन को रोकते हुए कहा बेटा आपके पास बहुत सारे गिफ्ट आते हैं और बहुरानी को इन गिफ्ट से बहुत प्यार है। क्योंकि वह सबके साथ गिफ्ट शेयर भी नहीं कर पाती। इसलिए अब तुम अपना जो भी नया सामान है ऊपर वाले कमरों में रखवा दो और अपना चूल्हा चौका अलग ही कर लो। मेरा घर विश्वास पर बना है और विश्वास खोते देर नहीं लगती। घर में अगर सब मिलजुल कर जितनी चादर हो उतना ही पैर पसारे तो अच्छा अन्यथा तुम्हारी इच्छा। इसलिए इधर अब कुछ भी रखवाने की जरूरत नहीं है आप अपना सारा समान ऊपर के कमरों में ले जाएं।
मालती जी के इस फैसले घर में होती हुई सुगबुगाहट खत्म हो गई और घर वैसे ही प्रेम प्यार से चलने लगा। सबको देख कर प्रिया को जो सबसे अलग और प्रतियोगिता की भावना थी वह भी खत्म हो गई अब उसके कुछ भी सामान आने ,लाने या ना लाने से कोई मतलब ही नहीं रखता था। हालांकि अब प्रिया को मन होता था कि वह भी उस परिवार में वैसे ही सबके साथ मिलजुल कर प्रेम से रह सके। कभी-कभी अधिक खर्च होने के कारण जतिन की आवाज़ भी सुनाई देती रहती थी। हालांकि प्रिया के बेटा होने पर सब ने प्रिया का ख्याल भी रखा था परंतु अब भी उसके मायके से उपहार में कुछ अधिक नहीं आया था। घर में बाकि सब ने भी अपना कर्तव्य पूरा करने के बाद उससे कोई इच्छा भी नहीं रखी थी।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा
विश्वास खोते देर नहीं लगती विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी।