विश्वास की डोर – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

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जब-जब भी माधवी घर आती थी तो सासु मां को अपनी बेटी में सारे गुण ही नजर आते थे और बहुरानी में अवगुण। घर में ही बहुत बार भाभी रीना और ननद माधवी में टकराव की स्थिति पैदा हो जाती थी। सासु मां भी माधवी के घर आने पर बुढ़ापे की बीमारियों का रोना रोने की बजाए उसके लिए अचार, पापड़ मंगोडियां बनाने में ही सबको लगाए रखती थी।

हालांकि रीना कामचोर तो नहीं थी लेकिन जब उसके सम्मान पर चोट पहुंचती थी तो वह भी सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी। रीना को रात को 9:00 बजे सीरियल देखने का बहुत शौक था। इस कारण वे जल्दी ही घर का काम निपटा लेती थी।

लेकिन अनजाने में  या जानबूझकर जैसे ही रीना टीवी देखने बैठती थी घर में किसी भी काम की अनिवार्यता के कारण उसे बुला लिया जाता था। बस ऐसे छोटे-छोटे कई कारण घर में लड़ाई के लिए बनते चले जा रहे थे। पापा का समीप में ही एक किराने का स्टोर था। अक्सर पापा सुबह सवेरे 6:00 बजे ही अपना स्टोर खोल देते थे

और 10:00 बजे तक खाना खाकर पवन भी उसी स्टोर में चला जाता था। रात देर तक पवन स्टोर में बैठा रहता था। क्योंकि पापा बीच-बीच में घर पर आते ही रहते थे और 6:00 बजे तक तो वह अक्सर दुकान से वापस आ ही जाते थे। सास बहू और ननद के द्वारा बनाए गए  घर में लड़ाई के मैदान को शांति स्थल में परिवर्तित करने के लिए वह भरसक प्रयास करते।

अपनी पत्नी गौरी को बहू को भी बेटी जैसा ही प्यार करने के लिए कहते थे। वह अक्सर समझाते थे कि अगर बहू सुबह सवेरे देर से भी उठ रही है तो तुम्हें क्या परेशानी है यूं भी पवन तो 10 बजे तक ही दुकान में आता है।  तुम तो सदा से ही जल्दी उठती रही हो बहू को क्यों इतना जल्दी उठने

को बाध्य करती हो? गौरी यानी कि सासु मां ने जवाब दिया मेरी बेटी से उसका क्या मुकाबला? वह तो साल में एक या दो बार ही आती है। दूर से आती है? उसके लिए मैं क्यों ना काम करूं? इस बहु को तो मुझे हर वक्त ही झेलना होता है।

                         वर्मा जी चुप हो जाते थे। हालांकि हर दिन यह महसूस कर रहे थे कि सास बहू में टकराव की स्थिति दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है शायद दोनों में से कोई भी कमतर नहीं रहना चाहती थी।  उस दिन उन्होंने दुकान में जाने के बाद पवन को कहा कि मैंने तुम्हारे लिए शर्मा जी से बात कर ली है। उनके घर के  ऊपर जो दो कमरे बने हुए हैं

उनमें तुम  परसों अपना सामान लेकर चले जाना? पर क्यों पापा? मैंने तो आपसे कभी कोई शिकायत नहीं करी दुकान में भी——? अरे नहीं पागल! मुझे तुझसे कोई शिकायत नहीं है, तू तो मेरा इकलौता प्यारा बेटा है। मैंने शर्मा जी को तुम्हारे लिए घर का किराया दे दिया है, असल में तुम्हारी मां को और तुम्हारी पत्नी को दोनों को लंबे समय तक साथ रखने के लिए उनका अलग होना जरूरी है ,

तभी दोनों को एक दूसरे की जरूरत का एहसास होगा। हर काम के लिए बहू पर निर्भर रहने वाली तुम्हारी माता जी जब खुद काम करेंगी तो उन्हें अपने आप बहू की कमी का एहसास होगा। रीना को भी बेमतलब में सामान बिगाड़ने की और लापरवाही की जो आदत पड़ी है,

मुझे पूरा विश्वास है कि अकेले रहने के बाद उसे भी सब समझ आएगी। विश्वास की डोर थामे रखना सब कुछ तेरा ही है और तुझे ही संभालना है।अभी मैं तुझे दुकान में से ₹25000 हर महीने दूंगा बहू को भी निश्चित रकम में घर बसाने की आदत डालने दे।

                     पवन को  अपने पापा पर पूर्ण विश्वास था और उस वह उनकी हर बात मानता था। आज जब पापा ने सुबह-सुबह ऊंची आवाज में बोला पवन अपना सामान बाहर निकलवा लो , बाहर ट्रक खड़ा है अपना सामान निकालो। घर के अंदर मां और रीना दोनों ही आंसुओं से रो रही थी ऐसा लग रहा था जैसे रीना नहीं,

माधवी अपने ससुराल जा रही हो। हालांकि मम्मी बार-बार पापा से कह रही थी कि बहू किराए के मकान में क्यों कर जाएगी? लेकिन पापा अनसुना करते हुए पवन को कह रहे थे कि पवन ट्रैक्टर लग चुका है अपना सामान निकलवा लो। घर से जाते हुए पवन देख रहा था कि आंखों के कोर तो पापा के भी भीगे हुए हैं। दोनों के जाने के बाद पापा ने गौरी से कहा अब तो शायद तुम बहू से भी बेटी जैसा ही प्यार कर सको क्योंकि अब  वह भी कभी-कभी ही आएगी।

              बेटा घर को सुधारने के लिए प्यार ही नहीं कई बार सजा भी जरूरी होती है। प्यार बढ़ाने के लिए नज़दीकियां ही नहीं दूरियां भी बहुत जरूरी होती है। तू देखना सब बहुत अच्छा होगा। विश्वास की डोर को मजबूत कर।पापा के कहे यह शब्द पवन के कानों में गूंज रहे थे।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।

विश्वास की डोर प्रतियोगिता के अंतर्गत कहानी।

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