राघव की दो बहने और एक भाई और भी था लेकिन राघव के माता पिता ने सब बच्चों को बराबर मात्रा में अधिक गहने गढ़वाए थे। जब राघव की सिलेक्शन हैदराबाद के लिए हुई तो नीता ने अपने सारे गहने सासु मां के पास रखवा दिए थे ।अपना बहुत सारा सामान भी जो कि वह हैदराबाद में नहीं ले जा सकती थी उसने आगरा में ही छोड़ दिया था। उनकी सारी रिश्तेदारी आगरा में ही थी इसलिए गहनों की जरूरत विवाह शादी में आगरा में ही होती थी।
अपनी दोनों बेटियों के होने के समय या किसी भी विवाह समारोह में जब वह आगरा आई थी तो मन भर कर गहने पहनती थी। अपनी दोनों बेटियों के होने के समय भी उसने दोनों ननदों को सासु मां के कहने पर अपने घर से आए गहनों में से काफी सामान दोनों बार खुशी-खुशी उपहार दिए क्योंकि सासु मां का कहना था जब तुम लड़की और लड़के में फर्क नहीं करती तो बहनों को उपहार देते हुए क्यों सोच करती हो?
सासू मां जब भी हैदराबाद आती कुछ गहने नीता के पहनने के लिए भी लाती थी जाते हुए नीता अपने गहने उन्हीं को ही संभाल कर रखने के लिए दे देती थी। अब नीता भी हैदराबाद में ही नौकरी करने लगी थी इसलिए वह बिल्कुल नहीं चाहती थी कि अपने सारे गहने हैदराबाद में किराए के मकान में लाकर रखे जाएं।
उसे हैदराबाद में नए सिरे से घर बसाना था क्योंकि उसकी शादी का लगभग काफी सामान आगरा में उसके ससुराल के कमरे में ही रखा था। ऊपर से दोनों बेटियों की पढ़ाई लिखाई का खर्च भी बढ़ता ही जा रहा था इसलिए नीता अक्सर कोई भी नया गहना खरीदती ही नहीं थी उसके ख्याल से सासु मां के पास रखे उसके गहने ही काफी थे। अंततः और जरूरतों पर ही खर्च होता था। उन्होंने हैदराबाद में लोन लेकर एक फ्लैट भी खरीद लिया था ।
अब उसकी दोनों बेटियां भी बड़ी हो रही थी। देवर के विवाह के अवसर पर आगरा में जब वह गए तो उन्हीं गहनों में से उसकी बेटियों ने भी पहन लिए थे। वापस आते हुए भी हमेशा के जैसे उसने अपने सारे गहने सासु मां को ही लौटा कर रखने के लिए दे दिए थे।
अब बेटियों के बड़े होने के साथ घर खर्च भी इतना बढ़ गया था कि अब वह चाह कर भी नए गहने नहीं बनवा सकती थी लेकिन अब के आते हुए वह अपने मायके से मिले हुए हल्के गहनों में से पतली चेन और अंगूठी और छोटे छोटे कान के टॉप्स अपनी बेटियों के लिए ले ही आई थी।
राघव जिस कंपनी में काम करता था वह घाटे के कारण बंद होने की कगार पर थी इसलिए राघव ने अपना खुद का काम शुरू कर दिया था। मकान की किस्ते भी जा रही थी और राघव को अपना काम बढ़ाने के लिए पैसों की भी आवश्यकता थी तो नीता ने सोचा क्यों क्यों ना वह अपने गहने लाकर हैदराबाद की गोल्ड पर लोन देने वाली कंपनी से लोन ले ले।
लोन तो वह चुका ही देंगे जब राघव की पेमेंट आएगी। घर खर्च तो उसके हैदराबाद में लगी सरकारी टीचर की नौकरी से चल ही जाना था।
अब बच्चियां भी बड़ी हो रही थी और अब उनका अपना घर भी था। हैदराबाद जैसी जगह में अभी भी गोल्ड का ही चलन था। नीता ने सोचा अब के जब वह आगरा जाएगी तो अपने सारे गहने लेकर आ जाएगी। अबकी छुट्टियों में जब वे लोग आगरा गए तो नीता ने सासू मां से अपने सारे गहने देने का आग्रह किया,
सासु मां ने जवाब दिया तुम्हारे गहने बचे ही कहां है , चूड़ियां और अपने काफी गहने तो तुमने लड़कियों के होने पर राघव की बहनों को दे दिया था। बाकि बचे कई छोटे-मोटे टॉप्स या अंगूठियां तुम अपनी बहनों या ससुराल में भी किसी को भी शादी पर उपहार स्वरूप देती ही आई हो। पिछली बार राघव की बुआ की बेटी के कन्यादान में तुम्हारे कहने पर ही मैंने तुम्हारे मायके से मिली हुई झुमकी तुम्हारी तरफ से उन्हें उपहार स्वरूप दी थी।
हां मुझे पता है, लेकिन वह तो मेरे घर से आए हुए गहने ही थे ।आपने ही तो कहा था कि हमारे द्वारा तुमको दिया हुआ सामान भारी और अच्छा है इसलिए बहनों को अपने मायके के गहने ही दो। मैं तो वही गहने मांग रही हूं जो कि आपने मेरी शादी पर दिए थे और वापिस रखते हुए कहा था कि मैं तेरे गहने अलग ही संभाल कर रख रही हूं।
अचानक से सुर बदलते हुए सासू मां ने कहा यह मेरा सामान है और मेरी मर्जी मैं किसी को भी दूं। राघव के छोटे भाई की पत्नी(तुम्हारी देवरानी) मेरे साथ रहती है इसलिए मैं तो सारा सामान उसी को ही दूंगी। नीता ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा यह बात आप पहले ही बता देती तो हम बहनों को या किसी को भी उपहार देते हुए इस बात का ख्याल रखते।
आपने हमेशा यही कहा कि तुम्हारे गहने तो तुम्हारे ही हैं , तुम्हारी लड़कियों का काम भी इन्हीं गहनों से चल जाएगा। यही कारण था ,कि हम देवर जी और बहनों की शादियों में उपहार देते हुए अपनी ओर से निश्चिंत थे। हैदराबाद में भी मैंने कभी भी कोई भी गहना अपने जन्मदिन या एनिवर्सरी पर यह सोचकर नहीं लिया था कि गहने तो मेरे पास बहुत सारे हैं।
अब तो मेरी लड़कियां भी बड़ी हो रही है, मैं तो गहनों से पूर्णतया खाली ही हो गई। अब तो बढ़ते खर्चों के साथ गहने गढ़वाना बहुत मुश्किल है, सारा सामान भी हमने नया ही खरीदा है। आपके बेटे को भी आज पैसों की जरूरत है।
उधर से सासु मां का गुस्से में भरा हुआ जवाब आया, क्या इस घर के प्रति तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं थी? कोई एहसान किया है क्या? अगर तुमने चार गहने अपनी ननदों को दे भी दिए तो क्या फर्क पड़ता है। वहां तुम दो जन कमा रहे हो।
माता से बहस करना उनके संस्कारों में नहीं था। वो सब वापस हैदराबाद ही आ गए और अब आगे के खर्चे और अपने जीवन के विषय में सोचने लगे।
मधु वशिष्ठ