विश्वास की डोरी टूट गई – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” सुनीता आज विमला जीजी का फोन आया था वो कल अपनी मानसी है अपने घर ले जाने आ रही है कुछ दिन को !” सुरेश ऑफिस से आ पत्नी से बोला।

” पर ऐसे अचानक …अभी तो उसने परीक्षा खत्म कर सिलाई सीखनी शुरु की है यूँ बीच मे कैसे छोड़ दे ?” सुनीता बोली।

” अरे सिलाई का क्या आकर सीख लेगी अभी तुम उसे अपने कपड़े लगाने को बोलो !” सुरेश बोला।

” मुझे समझ नही आ रहा ऐसे अचानक से जीजी को क्या सूझी आज तक तो उन्होंने कभी कहा नही बच्चो को अपने घर भेजने की !” सुनीता शंकित निगाहों से सुरेश को देखते हुए बोली।

” वो क्या है ना सुनीता जीजी ने मानसी के लिए एक लड़का देखा है उनकी रिश्तेदारी मे है अच्छा घर परिवार पर अपना घर दुकान सब है। तो वो चाहती है मानसी को देखना दिखाना वो अपने घर् पर कर ले !” सुरेश धीरे से बोला।

” पर अभी से शादी अभी तो उसने बारहवीं की परीक्षा दी है !” सुनीता बोली।

” मैने जीजी को कहा था पर जीजी बोली तेरे तीन और लड़कियां है इसका बोझ जितनी जल्दी उतरता है उतार !” सुरेश बोला। सुनीता ने बहुत मना किया पर सुरेश नही माना सुनीता ने हार कर ये भी कहा कम से कम घर परिवार तो देख लो पर सुरेश को अपनी बहन पर पुरा विश्वास था। उसने सुनीता से मानसी को रिश्ते के बारे मे  कुछ भी बताने को मना कर दिया अभी। उसे सिर्फ इतना कहा गया कि उसकी बुआ उसे अपने घर ले जाने आई है।

अगले दिन सुरेश की जीजी अपने बेटे के साथ आई और मानसी को लेकर चली गई । वहाँ जाकर मानसी को पता लगा उसे यहाँ क्यों लाया गया है मानसी दुखी तो बहुत हुई पर कुछ कर नही सकती थी। उन दिनों मोबाइल फोन की सुविधा भी नही थी जो मानसी अपने घर बात करती लैंडलाइन बुआ के कमरे मे ही था।

उस पर बुआ ने उसे ऐसी घुट्टी पिलाना शुरु कर दिया मानो बेटिया पिता पर बोझ होती जिसे जल्द से जल्द उतार देना चाहिए और बेटियों को ऐसे मामलो मे कुछ नही कहना चाहिए आखिर उनकी जिम्मेदारी है पिता का बोझ हलका करना। अंतर्मुखी मानसी चुपचाप बुआ की बात सुनती रही । तय समय पर लड़के वाले आये मानसी को उसकी बुआ की बहुओ यानी उसकी भाभियों ने तैयार कर दिया।

मानसी को लड़के वालों के सामने लाया गया उससे कुछ सवाल जवाब हुए अल्हड़ मानसी जो अभी शादी का मतलब भी ठीक से नही जानती थी जिसे पढ़ाई का बहुत शौक था उसने पिता का बोझ उतारने को शादी के लिए बेमन से हां कर दी पर साथ ही अपनी भाभी से कह ये शर्त् रखी की वो शादी के बाद पढ़ना चाहती है जिसे उस समय लड़के वालों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और अंगूठी की रस्म अदा कर दी।

शादी का मुहरत एक महीने बाद का बैठा …ये एक महीना मानसी के लिए बहुत भारी सा गुजरा क्योकि उसे कुछ समझ ही नही आ रहा था उसके साथ हो क्या रहा है …वो तो पिता का बोझ बाँटने को पढ़ना चाहती थी पर बुआ ने कहा शादी कर लो जिससे पिता का बोझ उतरे …क्या बेटियों की शादी करना ही सब कुछ होता है

माँ बाप ले लिए ? क्या बेटियों को अपनी इच्छा पूरी करने का हक नही क्या बेटियों को पढ़ने का अपने पैरो पर खड़ा होने का भी हक नही ? अनगिनत सवाल थे उसके पास पर जवाब एक नही क्योकि माँ ने भी तो अच्छा घर देख खुशी खुशी रिश्ते को स्वीकृति दे दी थी।

खैर शादी का दिन आया और मानसी दुल्हन बन पति नितीश के साथ चल दी। ससुराल मे अल्हड़ मानसी को सारे घर की जिम्मेदारी सौंप दी गई । सास ससुर , ननद देवर , एक ब्याही ननद और उसका परिवार , पति सबके नखरे उठाती मानसी फिर भी चूँ ना करती।

” सुनो मुझे आगे पढ़ाई करनी है आप बता दीजिये किस कॉलेज मे एडमिशन लूँ मैं?” एक रात मानसी पति से बोली।

” देखो मानसी तुम पढ़ाई करोगी तो इस घर के काम कौन करेगा इसलिए पढ़ाई का ख्याल मन से निकाल दो !” नितीश दो टुक बोला।

” पर शादी से पहले तो आप सब तैयार थे मेरी आगे की पढ़ाई के लिए !” मानसी हैरानी से बोली।

” अरे तब हमें ये तुम्हारा बचपना लगा हमने सोचा जिम्मेदारी पड़ते ही ये पढ़ाई का भूत उतर जायेगा सिर से !” ठहाके लगाता हुआ नितीश बोला।

एक धक्का सा लगा मानसी को इतना बड़ा धोखा …क्या इन्हे एक नौकरानी की जरूरत थी बस …उसके मन मे विचार आया पर प्रत्यक्ष मे कुछ बोली नही बोलती भी कैसे जिसके माँ बाप ने ही उसे बोझ समझ उतारना चाहा वो क्या किसी को दोष दे ।

अपनी नियति समझ उसने इस धोखे को बर्दाश्त कर लिया पर वो नही जानती थी अभी तो इससे बड़े धोखे उसका इंतज़ार कर रहे है।

” माँ ये मेरी तनख्वाह आप मकान मालिक को किराया दे देना वो आज सुबह भी मुझे टोक रहा था !” एक शाम पति के आने पर चाय लेकर आती मानसी ने पति को सास से कहते सुना।

” क्या आपकी तनख्वाह …पर आपकी तो अपनी दुकान है ना …और ये किराये की क्या बात कर रहे आप ये घर तो हमारा ही है ?” मानसी हैरानी से बोली।

” तुम …तुम्हे किसने कहा घर दुकान हमारे है मैं तो वहाँ नौकरी करता हूँ ..और ये घर भी उनका है जिन्होंने हमारा रिश्ता कराया था !” नितीश बोला।

धक से रह गया मानसी का कलेजा तीन महीने हो गये उसकी शादी को पर किसी ने बताया तक नही ये सब। अचानक चक्कर खाकर गिर गई वो और जब होश आया तो ज्ञात हुआ कि उसके अंदर एक नन्ही सी जान पल रही है। मानसी की समझ मे नही आया वो रोये , चिल्लाये या खुश होये। इतना धोखा एक शादी के लिए । उसने फैसला किया कि जब अपने घर जाएगी तो इस धोखे के बारे मे अपने पिता को बताएगी जरूर। 

लेकिन सास ने शुरु के 3-4 महीने सफर करने को मना कर दिया दूसरे शहर जो था उसका मायका। और जब वो मायके जाने लायक हुई तो उसका रिश्ता करवाने वाली बुआ की रिश्तेदार अचानक से स्वर्ग सिधार गई ….अब किसने किसे धोखा दिया ये पता लगना मुश्किल था । पिता को मानसी ने सारी बात बताई..!

” बेटा जो हुआ जैसे हुआ यही तेरी तकदीर है अब तो तू माँ भी बनने वाली है अब अपनी ग्रहस्थी पर ध्यान दे इस धोखे को भूल जा जिसने झूठ बोला उसे सजा मिल गई अब वो इस दुनिया मे ही नही !” सुनीता मानसी से बोली।

” हां बेटा भगवान के घर देर है अंधेर नही तेरा झूठ बोल रिश्ता कराया था शांति जीजी ( मानसी की बुआ की रिश्तेदार ) ने उन्हे उसकी सजा मिल गई अब तू ये सब चिंता छोड़ और अपना घर संभाल !” सुरेश बोला।

मानसी कहना तो चाहती थी सज़ा तो उसे मिली है किसी के झूठ की और इस सजा को जिंदगी भर ढोना पड़ेगा अब मुझे पर अब उसका रिश्तो से विश्वास सा उठने लगा था क्योकि रिश्तो के बीच जो नाजुक डोरी होती है वो टूट गई थी आज।  अठारह साल की मासूम ने रिश्तो के नाम पर जो धोखे खाये वो सारी उम्र नही भरने वाले थे।

कैसी विडंबना है ना बेटी की माँ बाप ही उसके साथ हुए धोखे के खिलाफ नही बोलते पता नही उनकी मजबूरी होती है या हमारे देश मे चली आ रही एक सोच की ससुराल बेटी की डोली जाती है अर्थी बाहर आती है। इसी सोच के कारण कितनी लड़कियों के अरमानो की बलि चढ़ जाती है । 

” नही मैं ऐसे नही जियूँगी धोखा जरूर हुआ मेरे साथ पर सारी जिंदगी तिल तिल नही मरूंगी !” इस सोच के साथ मानसी ने बच्चा होने के बाद आगे पढ़ने की ठान ली फिर चाहे उसे बगावत ही क्यो ना करनी पड़े। समय पूरा होने पर उसने एक बेटी को जन्म दिया ।

वक़्त के साथ् मानसी अपने पैरो पर खड़ी हो गई असल मे घर वालों के विरोध के बावजूद उसने संध्या क्लास मे दाखिला ले लिया और पढ़ाई पूरी की बेटी को वो सुला कर जाती उसकी सारी जरूरत का सामान जुटा कर जाती । पढ़ाई पूरी करते ही उसने अध्यापिका की जॉब पकड़ ली इन सबमे उसका किसी ने साथ तो नही दिया बस इतना सुकून था बेटी अगर जाग जाती थी तो उसे दूध पिला देती थी सास। जब मानसी ने जॉब पकड़ी तो बेटी भी स्कूल जाने लायक हो गई थी तो उसने उसका दाखिला भी वही करवा दिया जिससे बेटी को साथ लाना ले जाना कर सके। 

आज मानसी बहुत सी महिलाओं के लिए प्रेरणा है पर अपने साथ हुए धोखे को वो अभी तक नही भूली और उसने ये संकल्प लिया है अपनी बेटी के साथ वो कोई धोखा नही होने देगी । अगर हो भी गया तो वो हमेशा उसका साथ देगी । क्योकि कल को वो बेटी को विदा तो करेगी पर पराया नही करेगी।

दोस्तों ये कोई काल्पनिक नही सच्ची कहानी है । ऐसा क्यो होता है लड़के की शादी करने को कुछ लोग बढ़ा चढ़ा कर बोल देते है और धोखा सामने आने पर भी लड़की के माँ बाप उसे सब सहने और चुप रहने को मजबूर कर देते है क्या बेटी सच मे बोझ है यदि ऐसा है तो फिर बेटी को ईश्वर ने जननी क्यो बनाया। मैं मानती हू अब लोगो की सोच बदल रही है पर हमारे भारत मे आज भी जाने कितनी महिलाये धोखे की शादी ढो रही है और तिल तिल मर रही है ।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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