आज सुबह से ही घर में चिल्ला चिल्ली मची हुई हैं। बेटे अनुराग ने वर्षों पुराने बेल के दोनों पेड़ों को कटवाने के लिए मजदूर बुला लिए थे। अमर बाबू बहुत आहत होकर विरोध में चिल्ला ही पड़े थे,”मेरी जिंदगी में ये अनर्थ नहीं हो सकता। तुमलोग अपनी मनमानी करते जा रहे हो। मैं चुप रहता हूँ पर आज तो हद ही हो गई हैं। इतने पुराने बापदादा के समय के इन पेड़ों को कैसे कटवा सकते हो?”
अनुराग अपनी माँ की ओर देखने लगा था। माधवी जी ने मोर्चा सम्भालते हुए उनको समझाना चाहा था,”देखिए, अनुराग ठीक तो कर रहा है। इन पेड़ों के कारण गंदगी भी बहुत होती है। दूसरी बात ये कि दिन भर मुहल्ले के शैतान बच्चों का मेला लगा रहता है।”
वो चिढ़ कर बोले,”तो क्या हुआ? बरसों से प्रथा चली आ रही है। ये गरीब बच्चे इन मीठे रसीले बेलों को खाकर कितने तृप्त होते होंगे। हमारे पूर्वज भी तृप्त हो जाते होंगे।”
माधवी जी इस बात से सहमत होकर चुप सी हो गई पर अनुराग चुप नहीं रह पाया। वो ज़रा जोर देकर बोला,”पापा, इन बेलों को तुड़वाने में और फिर सब जगह बँटवाने में कितना खर्चा लगता है और कितनी मेहनत भी लगती है। आप बहुत कर चुके पर अब ये चकल्लस छोड़िए।”
“अरे बेटा, हमारे ये बेल स्वाद और मिठास में बेजोड़ हैं।कभी कभी थोड़ा खर्चा और मेहनत करके अपने बगीचे के फल मित्रों को भेजने में बहुत सुखानुभूति होती है।”
उसी समय वर्मा अंकल का फोन आया,”यार अमर, बेल कब भेजेगा? अम्माजी तेरे बगीचे के बेलों के स्वाद को दिनरात याद कर रही हैं।”
वो गर्व से भर गए और पत्नी और बेटे की तरफ़ भीगी आँखों से देखने लगे थे।
मौलिक
नीरजा कृष्णा
पटना