आज पूरे 4 साल बाद गुरमीत अमेरिका से वापस आ रहा था। उसकी मां और बाऊजी बेहद खुश थे और उससे मिलने के लिए बहुत सारे रिश्तेदारों को आमंत्रण दे रखा था। घर मेहमानों से भरा हुआ था।
जैसे ही टैक्सी घर के सामने रुकी, गुरमीत की मां दौड़ती हुई और खुशी से रोते हुए गुरमीत को अपने गले से लगा लिया। गुरमीत ने मां और बाऊजी के पैर छुए और उनके गले से लग गया। तभी टैक्सी का दरवाजा फिर से खुला, सभी उस और देखने लगे। टैक्सी से उतरी एक सुंदर, लंबी, गोरी चिट्टी विदेशी मेम। सभी उसे देखकर हैरान थे और सबकी आंखों में यही प्रश्न था” ये कौन है?”
गुरमीत ने यह कहते हुए उसका परिचय करवाया “ये है मेरी पत्नी एली”घर में तो मानो विस्फोट ही हो गया। मां रोने लगी। पिता जी नाराज हो गए और सारे रिश्तेदार कानाफूसी करने लगे”ए मीतो,देख गुरमीते नू, अंग्रेजन कुड़ी ले आया ए ।”
तब एली ने टूटी फूटी हिंदी में कहा-“आप लोग नाराज मत होइए, आप लोग अमको अपना ब्लेसिंग्स दीजिए, अम
धीरे-धीरे सब कुछ सीख लेगी।”
कह कर उसने माता पिता जी के पैर छू लिए और बाकी सब बड़ों के भी चरण स्पर्श करने लगी।
उसकी हिंदी सुनकर माताजी की हंसी छूट गई और सब मिलकर हंसने लगे। धीरे-धीरे माहौल कुछ हल्का हो गया। रिश्तेदार चले गए और अली धीरे-धीरे अपने व्यवहार से सबका मन जीतने की कोशिश करती रही और वह इसमें कामयाब भी हो रही थी।
1 दिन गुरमीत अपने पुराने दोस्तों से मिलने गया तो उन्होंने शिकायत करते हुए कहा-“यार गुरमीते, चुपचाप जाकर भाभी ले आया। ना हम से मिलवाया और ना कोई पार्टी शार्टी।”
गुरमीत-“ऐसी बात है तो कल आ जाओ घर पर, पुराने दिनों की तरह छत पर मिल बैठेंगे सारे यार।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
अधूरी पेंटिंग – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “
अगले दिन गुरमीत और उसके तीन दोस्त छत पर बैठकर पुरानी यादें ताजा कर रहे थे और एली, मां के साथ खाने पीने के इंतजाम में लगी हुई थी।एली पकोड़े, नमकीन, काजू वगैरा लेकर आई तो गुरमीत ने अपने दोस्तों से मिलवाते हुए कहा-“यारों, ये है तुम्हारी भाभी एली और एली ये है मेरे दोस्त, रोहन, सुरमीत और समीर मेरे जिगरी दोस्त।”
एली ने उनको नमस्ते की। उसकी सुंदरता देखकर तीनों का मुंह खुला का खुला रह गया था। तीनों बोले-“नमस्ते भाभी जी”
गुरमीत और एली छत से नीचे उतर कर खाने पीने का और सामान लेने गए। तो दोस्त आपस में बातें करने लगे।
रोहन-“यार सुरमीत, गुरमीत को तो बहुत ही सुंदर वोटी मिल गई।”
सुरमीत-“हां यार, इस गधे की तो किस्मत खुल गई।”
समीर-“विदेशी वोटी, यार मैंने सुना है विदेशी लड़कियां बहुत चालू होती है और मॉडर्न होने की वजह से हर तरह से खुले विचारों की होती है। मुझे तो लगता है एक बार कोशिश करेंगे तो हमारे हाथ आसानी से लग जाएगी। देखा नहीं, आज पहली बार में ही हम से कैसे हंस-हंसकर बोल रही थी।”
रोहन-“अबे पागल है तू, भाभी है अपनी, कुछ जरा सा भी गलत सोचना भी मत। वरना बहुत बुरा होगा।”
तभी एली और गुरमीत आ जाते हैं। उन्हें देखकर सब चुप हो जाते हैं। गुरमीत अपना मोबाइल नीचे ही भूल आया था। वह उसे लेने चला जाता है।
एली सबके लिए पकोड़े परोस कर प्लेट पकड़ाती है। तभी समीर उसका हाथ पकड़ लेता है और दूसरे हाथ से उसकी कमर को छूता हुआ बोलता है-“अब यह सीधे पन का नाटक बंद करो मैडम और बताओ हमसे मिलने अकेले में कब आ रही हो?”
इस कहानी को भी पढ़ें:
किस्सा बचपन का (हास्य ) – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “
एली उसकी हरकत पर भौंचक्की रह जाती है और फिर तुरंत संभल कर उसे जोर से धक्का देते हुए कहती है-“तुम्हारा हिम्मत कैसे हुआ हमको टच करने का, तुमको क्या लगता है कि विदेशी लड़कियों का कोई कैरेक्टर नहीं होता। विदेशी लड़की क्या किसी के साथ भी चली जाती है। हमको तो बहुत हैरानी हुआ यह देखकर कि तुम्हारे जैसा गंदा आदमी गुरमीत जैसे अच्छे आदमी का दोस्त है। गुरमीत बहुत सच्चा और अच्छा आदमी है इसीलिए मैंने उसके साथ शादी बनाया और तुम एकदम नीच लोग। अपने दोस्त की बीवी पर नजर रखता है बेशर्म लोग। चले जाओ यहां से अगर तुम हमको अपनी भाभी या बहन समझेगा तो तुम्हारा इधर वेलकम है नहीं तो तुम्हारे लिए इस घर का दरवाजा हमेशा के लिए बंद रहेगा।”
तब तक गुरमीत और उसकी मां भी ऊपर आ चुके थे और उन्होंने सब कुछ सुन लिया था। उन्होंने कहा-“एली ठीक कह रही है। तुम लोग यहां से जा सकते हो और आइंदा कभी इधर नजर मत आना, वरना तुम्हारी टांगे तोड़ दी जाएंगी।” गुरमीत के मां बाऊजी को एली के विदेशी होने से कोई शिकायत नहीं थी बल्कि उन्हें अपनी बहू पर बहुत गर्व था।
स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली