नन्ही अनु ने रो रोकर सारा घर सर पर उठा लिया है। सुबह जब उसने दादी से सुना कि आज गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा तो उसने पूछा कि ये विसर्जन क्या होता है।
दादी ने उसे समझाया कि गणेश जी इतने दिन वो मेहमान बन हमारे यहां रहे अब उन्हें अपने घर वापस जाना है। उनकी मम्मी उन्हें याद कर रही हैं ना। ये सुनकर जो रोना शुरू किया अनु ने तो चुप होने का नाम नहीं ले रही है।
चार साल की अनु के लिए गणेश जी का घर में स्थापित होना बड़ी खुशी की बात थी। बाजार जाकर अपनी पसंद की मूर्ति लेकर आई तभी से वो सारा दिन बस गणेश जी की होकर रह गयी थी। दोनों समय पूजा में टूटी फूटी आरती गाती। सभी को अपने हाथों से प्रसाद देती। उसे लगता था कि गणेश जी के घर आने से कितना कुछ बदल गया है घर में।
पापा मम्मी रोज समय पर ऑफिस से घर आ जाते हैं। मिलकर पूजा करते हैं, रात में सभी एक साथ खाना खाते हैं। कितना अच्छा लगता है। वरना तो किसी का कोई टाइम टेबल नहीं। कभी पापा देर से तो कभी मम्मी आते। कभी दादाजी जल्दी सो जाते। दादी टीवी पर सीरियल देखते बैठी रहतीं। किसी के पास समय नहीं रहता।
उसे भय सता रहा था कि गणेश जी चले जायेंगे तो फिर सब वैसा ही हो जाएगा, पहले सा।
वो रोते हुए गणेश जी से प्रार्थना कर रही थी कि आप न जाओ, यहीं रह जाओ हमेशा के लिए।
दादी ने सोचा कि इसे मनाना तो पड़ेगा, किसी भी तरह। समझा कर विसर्जन के लिए तैयार करना ही पड़ेगा। दादी ने अनु को गोद में लिया और पुचकारने लगीं।
जब अनु का रोना थोड़ा कम हुआ तो उन्होंने समझाया। देखो बच्चा! भगवान को जाना तो पड़ेगा अपने घर। आखिर उनकी मम्मी भी चिंता करती होंगी। हम ऐसा करते हैं इन्हें छत के गमले में विसर्जित कर देते हैं। तुम उस गमले में फूल का पौधा लगा देना। फिर गणेश जी यहीं रह जाएंगे फूल बनकर। और हम एक दूसरी मूर्ति ला देंगे गणेश जी की। तुम रोज फूल तोड़कर गणेश जी को अर्पित करना। गणेश जी फिर कभी नहीं जाएंगे छोड़कर तुम्हें।
अनु को ज्यादा तो समझ नहीं आया पर गमले में गणेश जी को रख कर फूल लगाने वाली बात उसकी नन्ही सी बुद्धि में समाई।
अनु के रोते हुए चेहरे पर मुस्कान की लकीर खींची और गणेश जी की मूर्ति में भी।
संजय मृदुल