“क्या मम्मी, आजकल घर कितना फैला रहता, आप ध्यान नहीं रखतीं “बेटे जलज ने सुनीति से शिकायत की।सुनते ही पति कमल भी चालू हो गये,”तुम्हारी माँ को सहेलियों, किट्टी से फुर्सत मिले तब न ध्यान देंगी..”।
उधर सासू माँ भी कहाँ पीछे रहने वाली,”आजकल की बहुओं के नखरे भी ज्यादा हैं, सारा दिन घर में आराम से रहती हैं फिर भी कोई काम सलीके से नहीं होता…, कभी दूध बह जाता तो कभी सब्जी जल जाती, न जाने ध्यान किधर रहता है, जब देखो मोबाइल में गिटिर -पिटीर करती रहती हैं…”।
“उफ़्फ़, बस करो सब लोग…, नहीं बनना है मुझे सुघड़ बहू…, माँ या पत्नी,…. मैं जैसी हूँ वैसी ही रहूंगी, अपने को सबके अनुरूप बदलते कई साल हो गये, आज तक मैं बदलने की प्रक्रिया से ही गुजर रही हूँ… कभी तो खत्म हो ये….”सुनीति जोर से चिल्ला पड़ी…।
हमेशा की शांत और चुपचाप कड़वे बोल को निगलने वाली आज अचानक विस्फोटक मुद्रा में क्यों आ गई, सब हैरान थे..।
“पतिदेव, सबसे पहले मैं आपसे ही पूछती हूँ, मैं सहेलियों से गप्पे मारती हूँ या किट्टी पार्टी जाती हूँ तो क्या आप अपने दोस्तों से मिलने या पार्टी में नहीं जाते… आपका ऑफिस का ग्रुप तो हमेशा किसी हिल स्टेशन पिकनिक मनाने जाता, आप मुझे तो कभी नहीं ले गये… क्या आपने कभी सोचा, जब आप लौट कर बताते हैं तब क्या मेरा मन नहीं करता एन्जॉय करने को,…आपके पीछे मुझे क्या परेशानी हुई, आपने जानने की कभी कोशिश की,….”
सुनीति की बात सुन कमल चुप हो गये। ये सच है वो सुनीति को कभी नहीं ले जाते थे, पहले बच्चे छोटे थे ये बहाना था, अब माँ की उम्र हो गई वो अकेली कैसे रहेंगी, पर उन्होंने ये कभी नहीं सोचा, सुनीति भी इंसान है, मशीन नहीं, उसके अंदर भी कुछ चाहते हो सकती है…।
“सासू माँ, आप भजन के लिये रोज मंदिर जाती है, वहाँ भजन ही नहीं, चार लोगों से बतिया कर आती है, आपकी मानसिक खुराक पूरी हो जाती है, मैं तो आराम से रहती हूँ न, तभी तो आते ही आपको पानी, चाय और खाना मिल जाता है, मैं तो कभी भी कहीं से थक कर आऊं तो कोई एक गिलास पानी भी नहीं देता “
सासू माँ सुमन जी भी चुप थी, सुनीति गलत नहीं थी..।
“और जलज तुम तो मेरा ही अंश हो फिर भी माँ की पीर नहीं दिखी,पत्नी मेघा का काम,काम है और मेरा काम जिसमें एक भी दिन छुट्टी नहीं वो तुम्हे नहीं दिखा…..तुम और तुम्हारी पत्नी मेघा, सुबह आराम से उठते हो, ऑफिस जाते समय टिफिन ले जाते हो, आराम से नहीं बनता है,रोज सब्जी लानी पड़ती है, रसोई की जरूरतों पर चौकस नजर रखनी पड़ती,
कहीं अचानक कोई चीज खत्म न हो जाये…..,रोज तुम्हारे कपड़े प्रेस किये हुये ऐसे ही नहीं मिलते…,जब तुमलोग सोते रहते तब कामवाली के लिये दरवाजा मै ही खोलती हूँ…, मेरा मन भी करता, किसी दिन मै भी आराम से नींद पूरी करू….”सुनीति की शिकायत सुन सासू माँ बोल पड़ी,
“अच्छा तो तुम अब मेघा बहू की बराबरी कर रही हो “
“बोलने दो माँ,ये वो शिकायतें हैं, जो कभी कही नहीं गईं, आज निकल रहीं तो कहने दो “कमल जी ने अपनी माँ को टोका।
“नहीं माँ, मैं मेघा से कैसे बराबरी कर सकती हूँ, वो बच्ची है,… मैं काम की बराबरी की बात कर रही हूँ, क्या जो बाहर जा कर काम करके पैसे लाते हैं, सिर्फ वही काम करते हैं, घर में रह, बिना पैसों के, असंख्य काम करने वाली गृहिणी के काम की कोई कीमत नहीं,,बस यही जानना और बताना चाह रही थी “कह सुनीति उठने लगी।
“माँ, सबसे ज्यादा काम तो गृहिणी ही करती है, आपकी वजह से हम निश्चिंत होकर काम पर जा पाते हैं, और आपके कामों की कीमत कोई कैसे लगा सकता… वो तो बेशकीमती होता है, सॉरी माँ मैं स्त्री होकर आपकी तकलीफ नहीं समझी “मेघा ने सुनीति का हाथ पकड़ते कहा…।
“मेघा सही कह रही माँ,अपने इस नालायक बेटे को भी माफ कर दो “जलज ने कान पकड़ते हुये कहा।
“अच्छा, बीवी का समझाना इतनी जल्दी समझ में आ गया…”जलज के कान खींचती हुई सुनीति बोली..।
“अरे माँ क्या करती हो, मेरी बीवी के सामने मेरा कान खींचती हो, कल बच्चों के सामने खींचोगी… “नाटकीय अंदाज में जलज बोला, सब खिलखिला कर हँस पड़े… और घर की दरो दीवार प्यार की खुश्बू से महक उठी…..।
दोस्तों आपकी क्या राय है, क्या जो बाहर जा कर काम करते है वही काम करते है, एक गृहिणी के काम को क्यों कमतर आँका जाता, क्यों उसको अपने मन की बात या अपनी ख्वाहिशें दबानी पड़ती हैं, क्या उसको शिकायत का अधिकार नहीं है…., आखिर क्यों….??
संगीता त्रिपाठी