मीरा दीदी मैं अपनी किटी पार्टी में जा रही हूं रिम्मी और सिम्मी दोनों स्कूल से आती होंगी आप उनके कपड़े चेंज करवा कर उन्हें खाना भी खिला देना और उसके बाद उनका होमवर्क भी देख लेना मुझे देर हो रही है मेरी सहेलियां इंतजार कर रही होंगी , सीमा अपनी जेठानी मीरा से बोलकर जाने लगती है।
अरे सीमा तुम रोज-रोज मेरे भरोसे सारा काम छोड़ जाती हो और अपनी बेटियों का भी काम नहीं करतीं मुझे अपने बेटे अंश का भी ध्यान रखना पड़ता है वह तुम्हारी बेटियों से थोड़ा बड़ा है लेकिन उसकी भी तो पढ़ाई है उसकी भी तो मुझे देखभाल करनी है। सीमा तुनककर बोली अरे— आप हमारे पास रह रही हो ,तो क्या काम भी नहीं करोगी !
मीरा के बेटे अंश को अपनी मां का अपमान बिल्कुल नहीं अच्छा लगता ,कि चाची हमेशा मेरी मां का अपमान करती हैं इतना काम करवाती हैं और मेरी मां रात दिन काम में लगी रहती है वह मां से बोलता है मां देखना में बड़ा होकर अच्छा सा घर बनाऊंगा और आपको अपने पास अच्छे से रखुंगा मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं, क्या करूं ! मजबूरी है बेटा तेरे पापा नहीं रहे थे तो तेरे चाचा ने ही हमें रखा अब जैसा रखेंगे वैसा ही रहना पड़ेगा।
सीमा तो ऑर्डर देकर मीरा को चली जाती है पर मीरा अपने ख्यालों में खो जाती है कितना अच्छा समय था, मेरे पति गवर्नमेंट जॉब में थे और मेरा बेटा 6 साल का था तभी हार्ट अटैक से मेरे पति हम सब को छोड़कर चले गए, उनकी पेंशन मिलने लगी लेकिन अकेले अपने बच्चे को पालना, पढ़ाना लिखाना और घर का खर्च उठाना, मकान का किराया सभी कुछ एकदम कठिन सा लगने लगा तभी मोहन मीरा के देवर जो बैंक में मैनेजर थे उन्होंने कहा मैं अपने भाई के परिवार की जिम्मेदारी उठाऊंगा।
भाभी आप हमारे साथ रहो, किसी बात की चिंता मत करो, अंश की देखभाल अच्छे से करो, उसकी पढ़ाई पर ध्यान दो देवर का नेचर बहुत अच्छा था लेकिन देवर की पत्नी सीमा इस निर्णय से चिढ़ गई ! अब तो मीरा को रोज ही सीमा देवरानी के ताने सुनने पड़ते ,कभी बिना बात के लड़ाई करने लगती, मीरा भाभी को नौकरानी की तरह काम बता कर कहीं भी घूमने चली जाती यह देखकर कभी-कभी देवर भी सीमा को डांट देता तो उसे और बुरा लग जाता ।
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देखते देखते समय निकलने लगा और मीरा का बेटा अंश भी 10 साल का हो गया सीमा की दोनों बेटियां छोटी थीं पर 8 साल की हो गई थीं थोड़ी समझदार थीं दोनों ही जुड़वां थीं रिम्मी और सिम्मी। मीरा पढ़ी-लिखी थी और गाना बहुत अच्छा गाती थी, वह सोचने लगी कि ऐसे कैसे काम चलेगा मैं अपने बेटे पर ध्यान नहीं दे पाऊंगी और दूसरों के ऊपर कब तक निर्भर रहूंगी एक दिन उसने अखबार में एक नौकरी का एडवर्टाइजमेंट देखा रेडियो स्टेशन पर नौकरी के इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था।
शाम को मीरा अपने देवर से बोलती है मोहन– तुम मुझे यह इंटरव्यू दिलवाने ले चलो मोहन बोला भाभी आप क्यों परेशान हो रही हो आराम से घर पर रहो ! मीरा बोली में— कब तक तुम पर निर्भर रहुंगी ! तुम्हारी पत्नी मेरा बात-बात पर अपमान करती है, मेरे बेटे पर भी चिल्लाती रहती है ,अब मेरा बेटा भी थोड़ा बड़ा हो गया उसे अच्छा नहीं लगता इसलिए मुझे यह इंटरव्यू दिलवाने ले चलो! यह सुनकर देवर मोहन कहता है, अच्छा कल समय पर तैयार हो जाना इंटरव्यू दिलवा दूंगा ।
दूसरे दिन मीरा सुबह बेटे के स्कूल जाने के बाद ,10 बजे उसका इंटरव्यू था, अपने देवर के साथ इंटरव्यू देने जाती है , मीरा को जाते हुए देखकर सीमा बोलती है, ऐसे थोड़ी कोई सिलेक्ट होता है! पर मीरा अपनी देवरानी की बात पर कोई ध्यान नहीं देती ,
और भगवान के हाथ जोड़कर देवर के साथ इंटरव्यू देने चली जाती है। उस दिन शनिवार था और बैंक की छुट्टी भी थी इसलिए देवर को भी कोई परेशानी नहीं होती आधे घंटे बाद मीरा का नंबर आता है, मोहन भाभी से बोलता है भाभी चिंता मत करना, बेझिझक होकर इंटरव्यू देना और वह भाभी को शुभकामनाएं भी देता है।
शायद उस दिन मीरा के साथ भगवान ही खड़े थे, जब मीरा का इंटरव्यू होता है तो मीरा के बोलने का ढंग ,और उसकी आवाज से वहां के मैनेजर प्रसन्न हो जाते हैं और बोलते हैं हमें ऐसे ही कैंडिडेट की जरूरत थी जो अच्छे से रेडियो स्टेशन पर गाना भी गा सके और रिकॉर्डिंग के लिए उसकी आवाज भी अच्छी हो इतनी सुरीली आवाज! बस फिर क्या था
मीरा के लिए शाम तक अपॉइंटमेंट लेटर भी बन जाता है ,अब मीरा खुश होकर अपने देवर जी के संग मिठाई लेकर आती है, घर पर भगवान को भोग लगती है, यह देखकर सीमा को कोई खुशी नहीं होती बस बेमन से कहती है अच्छा है।
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2 दिन बाद ही मीरा को अपनी नौकरी ज्वाइन करनी थी जब वह अपनी नौकरी पर जाती है उसे अपने आप में बहुत अच्छा लगता है ,ऐसा लगता है ,जैसे वो आज अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने बेटे पर ध्यान दे पाएगी। रेडियो स्टेशन के ऑफिस में मैनेजर बहुत दयालु थे ,और वह मीरा से बोलते हैं —अगर तुम चाहो तो इस कैंम्पस में इतने परिवार रहते हैं तो तुम्हें भी सरकारी क्वार्टर मिल सकता है ! यह सुनकर मीरा और प्रसन्न हो जाती है सोचती है, “भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है” आज अगर देवरानी सीमा उसका इतना “अपमान” नहीं करती तो उसके मन में कभी नौकरी करने की बात नहीं आती मीरा सोचती है यह “अपमान तो मेरे लिए एक वरदान” बन गया।
दो दिन बाद ही मीरा अपने देवर और देवरानी को फैसला सुना देती है कि मैं अपने पैरों पर तो खड़ी हूं, अपने सरकारी क्वार्टर में भी जा रही हूं मेरे ऑफिस के कैंम्पस में ही सरकारी क्वार्टर हैं मुझे कोई दिक्कत भी नहीं होगी और मैं आराम से अपनी नौकरी भी कर पाऊंगी और अपने बेटे को भी देख पाऊंगी ,यह सुनकर मोहन बोलता है, ठीक है भाभी, आप अपने हिसाब से जियो और खुश रहो! लेकिन सीमा को आराम करने की,
घूमने की ,आदत पड़ गई थी वह सोचती है, मीरा दीदी चली जायेंगी तो घर का काम कौन करेगा! कौन मेरी बेटियों को देखेगा! यह सोचकर उसे बुरा लगता है ,लेकिन अब पछताने से क्या होता है , दोनों बेटियां भी अपनी ताई जी को बहुत चाहती थीं उन्हें भी बुरा लगता है। मीरा की जिंदगी में यह नौकरी “नई सुबह” की तरह रोशनी बनकर आई। और सीमा का मीरा के प्रति किया हुआ “अपमान एक वरदान” बन जाता है।
इस कहानी से यही प्रेरणा मिलती है कभी किसी परेशानी से नहीं घबराना चाहिए अगर कोई कितना भी अपमान करे उसमें भी एक नया रास्ता ढूंढ कर उसे “वरदान सिद्ध कर देना चाहिए”आशा है आप सबको मेरी यह कहानी पसंद आई होगी मेरी कहानी पढ़कर प्रतिक्रिया अवश्य दें।
सुनीता माथुर
मौलिक,अप्रकाशित रचना
पुणे महाराष्ट्र
# अपमान बना वरदान