रधिया खुश थी कि इसबार…दिवाली पर मुन्निया को वह नए कपड़ो में मेला घुमाने ले जाएगी….
कितनी अच्छी थी बीवी जी कितना खयाल रखा करती थी वह…रधिया को भी बिल्कुल नयी साड़ी दिया था उन्होंने…..
कपड़े देते वक्त सुमन जी कह रही थी…देख लक्ष्मी पर यह फ्रॉक कितनी सुंदर लगेगी…बिल्कुल गुड़िया लगेगी…और यह लाल साड़ी तो तुमपर खूब जचेंगी….
इच्छा के पापा लाए थे पिछली दिवाली मेरे लिए पर मुझे नहीं पसंद तू रख ले…और हाँ घर जाते वक़्त कुछ पैसे भी ले लेना ……मीठाई बिठाईं के लिए…तब तक मैं इन्हें चाय देकर आती हूँ…
मन ही मन वह बीवी जी को लाख दुआए़ देती जा रही थी..बीवी जी ने जो आज़ नए कपड़े दिए थे उसे.. सीने से लगाए बार बार निहारती….कभी आगे कभी पीछे…कितनी सुंदर लगेगी मेरी लाडो…लाल फ्रॉक में…..
लक्ष्मी मां से हमेशा शिकायत करती, ‘मां, मैं क्या जिंदगी भर पुराने कपड़े ही इस्तेमाल करती रहूँगी…क्या कुछ नए कभी नहीं ले दोगी….?
रधिया हमेशा यही कह कर टाल जाती अच्छा अबकी दशहरे या दिवाली में नये कपड़े ले द़ूँगी…
तभी…बगल के कमरे से इच्छा के पापा का ..आता स्वर सुन वह काँप गयी….
बीवी जी कह रहीं थी …अरे इन जैसी इसी लायक होती हैं….इतना दिया क्या कम दिया…..?
पर ‘सुमन” नया कह कर देने की क्या आवश्यकता थी..कह देती कुछ पुराने कपड़े हैं जो बिल्कुल नए से हैं…और ज्यादा उपयोग में नहीं आए हैं..पंकज अपनी पत्नी से कह रहें थे..
कमसे कम इतना तो सोचती…
बेचारी दो दिन से लगातार तुम्हारे घर की सर सफाई में लगी है
काम करती है तो क्या उसके भी कुछ अपने अरमान है..बच्चों
की खुशियाँ हैं…
हाँ तो…..नए ही तो है..पहना भी ज्यादा कहाँ हैं…न मैंने साड़ी ज्यादा पहनी….न इच्छा ने फ्रॉक..इच्छा जल्दी जल्दी बड़ी हो रही और हर एक साल में उसके कपड़े छोटे हो जाते हैं, उसे नए सिलवा देती हूँ और पुराने..कपड़े मैं अच्छे से धो कर रखती हूं, देखो न, बिलकुल नए जैसे दिखते हैं. तो देने में क्या हर्ज है….
और तुम भी जाने कहाँ से उठा लाए थे ऐसे कपड़े..जो हम माँ बेटी के मन को जरा भी नहीं भाए…..इसलिए दे दिए….क्या बुरा किया…
कुछ बुरा नहीं किया…. पर व़ो कपड़े हैं तो तुम्हारे और इच्छा के उतरन ही..और जब पसंद नहीं थे तो नहीं पहनती…क्यूँ…जाया किया..उस वक़्त ही दे देती…
कहकर पंकज घर से बाहर हो लिए…इधर रधिया..आँचल से अपने आँसूँ पोंछ रही थी…कैसे कहती कि ग़म हो या ख़ुशी….पर्व हो या त्योहार दशहरा हो या दिवाली….उसके और उसके बच्ची के नसीब में “उतरन” ही लिखा शायद..
विनोद सिन्हा “सुदामा”