उसने बात ही ऐसी की मां-बाप की आंखों से आंसू छलक आए – सांची शर्मा : Moral Stories in Hindi

शादी के 8 साल बाद अखिलेश जी और आभा जी के घर एक फूल सी कोमल कन्या का जन्म हुआ। अखिलेश जी तो मानो आसमान में उड़ रहे थे, उनकी खुशी का तो कोई ठिकाना ही ना था। जहां लड़कों के होने पर घर में बधाई गाने किन्नर आया करते थे, अखिलेश जी ने अपनी बेटी के होने पर भी उन्हें अपनी खुशियों में शामिल किया और अपनी बेटी को उनका आशीर्वाद दिलाया। बहुत बड़ा जश्न मनाया था उन्होंने कि भगवान ने उनकी झोली को खुशियों से भर दिया।

पर उनके परिवार वालों को तो जैसे बात बनाने का एक अवसर मिल गया, सब कहने लगे इतने साल बाद हुई वह भी एक लड़की और ये तो ऐसे ख़ुशी मना रहा है जैसे की जुड़वा लड़के हो गए हो। पता चलेगा जब यह जवान होगी, कितनी देखरेख होती है एक लड़की की। 

पर अखिलेश जी और उनकी पत्नी ने किसी की भी बात पर ध्यान न देते हुए अपनी नन्ही सी गुड़िया को बहुत अच्छी परवरिश देने का सोच लिया था, फूलों जैसी कोमल थी उनकी बेटी तो उन्होंने उसका नाम मंजरी रखा। उन दोनों का तो सारा दिन बस मंजरी के आगे पीछे ही निकलता और जब अखिलेश जी घर से बाहर जाते तो आभा जी को बोलकर जाते की घर का काम जरूरी नहीं है, बस मेरी लाडली का ध्यान रखना।

वह दोनों अपनी बेटी के हर पहले पल को कमरे में कैद कर लेते, उसका पहली बार करवट लेना, पहली बार बोलना, बैठना, चलना, वह दोनों अपनी बेटी के साथ हर पल को बहुत खुशी से जीते। पहली बार जब मंजरी अपने पापा का हाथ पकड़ कर मंदिर गई, तो माता रानी से अखिलेश जी ने बस यही मांगा कि, “मां, मेरी बेटी मेरा स्वाभिमान है कभी मेरे स्वाभिमान पर कोई आंच ना आए।” 

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जब पहली बार वह स्कूल गई तो अखिलेश जी तो सारा समय उसके स्कूल के बाहर ही खड़े रहे और देखते रहे कि कहीं उनकी बेटी रो तो नहीं रही है। वक्त पंख लगा कर उड़ता रहा, कोमल सी उनकी बेटी बहुत समझदार और गुणवान भी थी। पढ़ाई में अव्वल आती थी हमेशा। दसवीं में पूरा जिला टॉप करने पर उसको 11वीं और 12वीं के लिए छात्रवृत्ति मिली। उसके माता-पिता तो खुशी से झूम रहे थे। मंजरी शुरू से ही इंटीरियर डिजाइनर बनना चाहती थी तो उसने बीकॉम के बाद पास के ही शहर में एक कॉलेज में एडमिशन ले लिया।

उसके पापा मम्मी ने जब उसको हॉस्टल छोड़ा तो उन्होंने उसको बस एक ही बात कही थी कि, “बेटा तू हमारा गुरूर है बस इस बात का ध्यान रखना”। हालांकि उनके घर वालों ने बहुत विरोध किया था कि लड़की को अकेले पढ़ने भेज दिया पर उन्होंने किसी की भी बात नहीं सुनी और केवल अपनी बेटी के सपने के बारे में सोचा। 

वो कहते हैं ना प्यार हर दिल में अपना घर बना ही लेता है, ऐसा ही मंजरी के साथ भी हुआ। वहां कॉलेज में मंजरी के साथ पढ़ने वाले एक लड़के गौरव से उसकी दोस्ती हो गई और धीरे-धीरे उस दोस्ती ने प्यार का रूप ले लिया। गौरव और मंजरी का प्यार सच्चा और पवित्र था, उन दोनों ने सोचा था कि घर वालों की खुशी से ही वह अपने रिश्ते को शादी का नाम देंगे। इसलिए उन्होंने वापस जाकर अपने प्यार के बारे में अपने-अपने घर वालों को बताने का निर्णय लिया।  

मंजरी जब हॉस्टल से वापस घर आई तो उसके लिए बहुत अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे थे और उन्ही में से एक लड़का साहिल उसके पापा ने उसके लिए पसंद कर लिया। मंजरी के पापा ने जब उसकी मर्जी जानी चाहिए तब उसने अपने पापा को गौरव के बारे में बताया। अखिलेश जी को थोड़ा दुख तो हुआ पर उन्होंने सोचा कि अगर घर बार अच्छा होगा तो वह अपनी लड़की की पसंद को ही अपनी पसंद बना लेंगे। पर जब उन्हें यह पता चला कि गौरव किसी अन्य जाति का है और उन दोनों के परिवारों का कोई मेल नहीं है, तो उन्होंने

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अपनी बेटी को समझाने का प्रयास किया। जिस पर मंजरी ने अपने पापा मम्मी को कहा कि मैंने बस अपनी पसंद बताई है आपको, पर आपका फैसला मेरे लिए हमेशा सर्वोपरि होगा। उसने कहा कि मेरा कुछ महीनों का प्यार आपके 21 साल के प्यार से ज्यादा नहीं हो सकता और आप दोनों मेरे लिए कभी गलत फैसला नहीं लोगे। मेरी खुशी आप दोनों की खुशी में ही है। अपनी बेटी की यह बात सुनकर ” उसके मां-बाप की आंखों में आंसू छलक आए” और उन्होंने उसको गले से लगा लिया और उसके सुखद जीवन की कामना करने लगे। 

आज मंजरी को डोली में बैठा कर विदा करते हुए अखिलेश जी और आभा जी की आंखों में खुशी के आंसू और चेहरे पर एक सुकून था, आखिरकार सच में उनकी लाडली उनका गुरुर थी और आज अखिलेश जी और आभा जी के साथ-साथ उनके परिवार वाले भी उस पर नाज़ कर रहे थे।

मंजरी भी अपने मां पापा के फैसले से अपने सुखद गृहस्थ जीवन का आनंद ले रही है।

सभी पाठकों को मेरा प्रणाम। मंजरी का यह फैसला आपको कैसा लगा? अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरा मार्गदर्शन अवश्य करें।

सांची शर्मा 

स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित

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