उसमें जरा भी संस्कार नहीं है…(भाग 1)-रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : ‘‘पृथा मुझे दो दिनों के लिए कलकता जाना है….ऑफिस की एक मीटिंग अटेंड करने….सोच रहा था तुम लोगों को भी लेता चलूँ…..तुम्हारे बड़े भाई साहब भी बार बार बुलाते रहते हैं तुम लोगों को ….तो चलो इस बार घूम ही लो।” कार्तिक ने कहा

‘‘ सच्ची!! वाह मैं कभी कलकत्ता गई भी नहीं हूँ….आपकी मीटिंग के बहाने हमारा घूमना भी हो जाएगा।”पृथा ने खुशी जताते हुए कहा 

‘‘ अच्छा मम्मी जी से भी पूछ लो अगर वो भी चलेगी तो उनकी भी टिकट बनवा लेता हूँ ।” कार्तिक ने कहा

पृथा की मम्मी कुछ दिनों के लिए अपने पाँच और दो साल के नाती नातिन से मिलने उसके पास आई हुई थी।

पृथा ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने मना कर दिया और बोली,‘‘ तेरे मामा भी इसी शहर में रहते है ….मैं इतने दिन उन लोगों से मिल आऊँगी ….तुम लोग आराम से जाओ।‘‘

चार दिन बाद जब जाना था ऐन जाने से एक दिन पहले पृथा की जेठानी के मायके से उनके पिता और भाई पिता का इलाज करवाने उसके शहर आ गए और रहने के लिए कार्तिक के घर ।

‘‘ये क्या बिना फोन किए चले आए….कल जाना भी है अब क्या करें?‘‘ पृथा दुखी होकर कार्तिक से बोली

‘‘ क्या करें मतलब….अरे मुझे फोन किए थे पिताजी को दिखाने आ रहे हैं….तो क्या मना कर देता…..तुम यही रहो … मुझे तो जाना ही है तो मैं जाऊँगा।” कार्तिक ने अपना फरमान सुना दिया

ये देख कर पृथा की मम्मी ने कहा,‘‘कार्तिक ऐसा कीजिए आप लोग जाइए मैं यही रह जाऊँगी….उन लोगों के लिए खाना ही तो बनाना है वो मैं देख लूँगी….पहली बार बेटी  कलकता जाने को लेकर उत्साहित हैं फिर पूरी तैयारी कर रखी है तो ले जाइए वैसे भी बहुत वक्त से ये कही गई भी नहीं है ।”

कार्तिक बेमन से राजी हुए। 

फिर जब जेठानी के भाई को पता चला कलकत्ता जाने का प्रोग्राम बना हुआ है तो बोले,”अरे कार्तिक जी बता देते तो दो दिन बाद आते कोई जल्दी नहीं था …फिर आप हमारी वजह से प्रोग्राम कैंसिल मत कीजिए।‘‘

अगला भाग 

उसमें जरा भी संस्कार नहीं है…(भाग 2)-रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#संस्कारहीन

story P M 

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