उपहार (भाग-8) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

दूसरे दिन दक्षिणा नहीं आई, उसका फोन आया – ” मेरे पैर में मोच आ गई है। मैं किसी भी तरह आ नहीं पाऊॅगी। आप रिपोर्ट तैयार करके भेज दीजिये।”

” कैसे हो गया? दवा ली?  डॉक्टर को दिखाया ? ” मुकुल बौखला गया ।

” बाद में सब बताऊॅगी।  आप काम शुरू कर दीजिये। आज रिपोर्ट का जाना बहुत जरूरी है।मैंने सोचा था कि 12:00 बजे के पहले भेज दूॅगी । अब आपको अकेले ही करना पड़ेगा।  मैं बहुत शर्मिन्दा हूॅ कि आपको अकेले परेशान होना पड़ेगा‌। हम दोनों होते तो जल्दी से कर लेते लेकिन क्या करूॅ  मेरी मजबूरी समझने का प्रयत्न कीजिये।”

” रिपोर्ट की चिंता मत करना, मैं सब कर लूॅगा। तुम अपना ख्याल रखना।”

फिर वे रिपोर्ट से संबंधित बातें करने लगे और अंत में दक्षिणा ने कहा – ”  अभी अहिल्या को कुछ मत बताइयेगा। वह परेशान हो जाएगी।”

मुकुल रिपोर्ट तैयार करने में लग गया है। तीन बजे के बाद मुकुल ने दक्षिणा को फोन किया – ” रिपोर्ट चली गई है दक्षिणा । अब  बताओ तुम कैसी हो? कैसे चोट लग गई?”

दक्षिणा ने बताया कि सुबह वह बाथरूम में फिसल कर गिर गई थी। दर्द बहुत जाता है। शायद मोच नहीं हड्डी टूटी है।”

”  शायद•••••••।”  चौक पड़ा  मुकुल। ” शायद से क्या मतलब है तुम्हारा?”  डॉक्टर ने क्या कहा है?”

”  डॉक्टर के यहॉ लेकर  कौन जाता मुझे?  सब लोग शादी में जाने की जल्दी में थे। कह गये हैं कि सोमवार तक न ठीक हुआ तो आकर डॉक्टर को दिखा देंगे।” दक्षिणा रोने लगी।

” तुम पीड़ा से तड़प रही हो और उन लोगों को शादी सूझ रही है? तुम्हें ऐसी हालत में छोड़कर चले कैसे गये सब लोग ? ये लोग आदमी हैं या राक्षस? ” क्रोध से उबल उठा मुकुल।

बदले में और सिसकने लगी वह – ”  सास के मायके की शादी तो मेरी जान से भी ज्यादा जरूरी है। मैं मर भी जाती तब भी किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता।”

” मैं आ रहा हूॅ तुम्हें डॉक्टर को दिखा दूॅगा।”

दक्षिणा घबड़ा गई – ” ऐसा मत करना । मेरा जीना और मुश्किल हो जायेगा‌। मैं ठीक हूॅ। कामवाली बाई को बोल गए हैं, वह मेरे पास रहेगी। आप चिंता ना करिये। आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा। जैसे दिल पर पड़ा बोझ और पीड़ा दोनों हल्की हो गई है । कोई विवशता वश कुछ कर नहीं पा रहा है और कोई जानबूझकर कुछ करना नहीं चाहता – इन दोनों बातों में बहुत अन्तर है और यही अन्तर पीड़ा को बढ़ाता और घटाता है‌‌। आपसे बात करके और यह अनुभव करके मेरी पीड़ा आधी  कम हो गई है कि किसी को मेरी परवाह है,  मेरा भी कोई ऐसा आत्मीय है  जो मेरी पीड़ा से तड़पता है।”

” आज से पहले इस बात को नहीं जानती थीं क्या? मेरी ऑखों और हृदय में अपने लिये उमड़ते भावों से अब तक अनजान थीं क्या?”

” जानती क्यों नहीं थी लेकिन कभी कह नहीं पाई। अब मुझे इसी के सहारे दो दिन काटने हैं।”

दक्षिणा के मना करने के बाद भी मुकुल नहीं माना। उसका हृदय यह सोचकर तड़प रहा था कि उसकी दक्षिणा को ऐसे पीड़ा में तड़पते हुये छोड़कर वह व्यक्ति चला गया जिसने सात जन्मों का वचन दिया था। वह मेडिकल स्टोर से कुछ पेन किलर (दर्द नाशक दवाइयाॅ) लगाने के लिये ट्यूब और बॉधने के लिये क्रैप बैंडेज ( गर्म पट्टी )

लेकर दक्षिणा के घर चला गया। यह सोचकर इससे उसे कुछ तो राहत मिलेगी क्योंकि वह जानता था कि वह प्रयत्न करके भी दक्षिणा को डॉक्टर के पास नहीं ले जा पायेगा। दक्षिणा चाहे मर जाए लेकिन मर्यादा संस्कारों की दुहाई देकर उसके साथ डॉक्टर के पास जाएगी ही नहीं। साथ ही उसने यह भी निर्णय कर लिया कि दक्षिणा कुछ भी कहे लेकिन कल छुट्टी लेकर वह घर में बच्चों को सम्हाल लेगा और अहिल्या को भेज कर दक्षिणा को डॉक्टर के पास जरूर भेजेगा।

जाकर देखा तो दरवाजा खुला था। अन्दर जाकर देखा कि दक्षिणा घर में बिल्कुल अकेली है – ” तुमने तो कहा था कि बाई है तुम्हारे पास।”

”  उसे रात में मेरे पास रहना है तो मैंने उसे अपने दो साल के बच्चे को लेने के लिए भेज दिया है।”

अत्यधिक पीड़ा और वेदना से बिल्कुल मुरझा गई थी वह। उसकी ऐसी दशा देखकर दिल फटकर रह गया था मुकुल का। शायद घर वालों के व्यवहार और उपेक्षा से वह बुरी तरह टूट गई थी। उसे लगा कि दक्षिणा की सारी वेदना, सारी पीड़ा को अपने प्यार की वर्षा से धो- पोंछकर  मिटा दे। उसके चेहरे की सारी उदासी मिटाकर मुस्कुराहटों की रोशनी से जगमगा दे पर  वह विवश था। दक्षिणा के लिये कुछ नहीं कर सकता था।

अगला भाग

उपहार (भाग-9) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!