उपहार (भाग-13) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

स्थानान्तरण के आदेश आने के बाद अहिल्या ने बहुत बार  कहा मुकुल से –

” तुम भी चलते तो दक्षिणा कितना खुश होती। चलने के पहले एक बार तो मिल लो, फिर पता नहीं कब मिलना हो? किस बात से उससे इतना नाराज हो कि एक बार फोन तक नहीं किया?”

लेकिन मुकुल नहीं माना – ” तुम लोग सुबह चले जाना और दूसरे दिन रात तक आ जाना। मेरे पास छुट्टी नहीं है।”

अहिल्या दक्षिणा और बच्चे के लिये बहुत सारा सामान लाई थी। वह सुबह से बच्चों को लेकर आ गई थी और दूसरे दिन शाम को दक्षिणा के पापा टैक्सी से उन्हें लखनऊ छोड़ आये। हालांकि अहिल्या ने उन्हें बहुत मना किया कि वह चली जायेगी लेकिन वह नहीं माने।

दक्षिणा की मम्मी ने खाने पीने की बहुत सामान, मेवे और बेसन के लड्डू, दालमोट, मठरी, बेसन के सेव, गुझिया बनाकर दे दी। दक्षिणा भी अहिल्या, मुकुल और बच्चों के लिये बहुत कुछ लाई थी। चलते समय दोनों के ऑसू रुक नहीं रहे थे।

एयरपोर्ट पर टैक्सी से उतरते ही दोनों बच्चे कुंदन और मणि चिल्लाते हुये दौड़े – ” मौसी।”

बच्चे सहित दक्षिणा को देखकर जहॉ अहिल्या सुखद आश्चर्य में डूब गईं, वहीं मुकुल इस सुखद आश्चर्य से अवाक रह गया। अहिल्या ने दक्षिणा से लिपटते हुये ऊपरी तौर पर डॉटा –

” क्या जरूरत थी यहॉ आने की? अभी प्रसूति का एक महीना भी नहीं हुआ है। अभी भी इतनी कमजोर हो तुम।”

दक्षिणा मुकुल की ओर देखकर मुस्कुरा दी – ” आप क्या समझते हैं कि आप इसे आशीर्वाद दिये बिना और मिले बिना चले जायेंगे और मैं जिन्दगी भर इसके ताने और उलाहने सुनती रहूॅगी? लीजिये पकड़िये इसे तब तक मैं अपनी सहेली और बच्चों से मिल लूॅ‌”

अठ्ठाइस दिन के उस सुकोमल शिशु जो उसका ही अंश था को पहली बार सीने से लगाकर मुकुल की आत्मा एक सुखद अहसास में डूब गई। नम हो गईं उसकी ऑखें जिन्हें उसने सबकी नजर बचाकर पोंछ लिया। दक्षिणा की प्यार में डूबी एक मुस्कुराहट भरी नजर ने बिना कुछ कहे सब कुछ कह दिया। एक बहुत बड़ा रहस्य दोनों के दिलों में हमेशा के लिये समाहित होकर धमनियों में दौड़ने लगा। अब दुनिया की कोई भी ताकत उन दोनों को अलग नहीं कर सकती थी।

उड़ान का समय हो गया। अहिल्या और दोनों बच्चे एक बार फिर दक्षिणा के गले लगने के बाद अन्दर जाने के लिये आगे बढने लगे। दक्षिणा का बेटा अभी भी मुकुल की  गोद में सो रहा था।

बच्चे को एक बार चूमकर दक्षिणा की गोद में देते हुये कहा उसने – ” कभी कमजोर मत पड़ना। सदैव अपना ख्याल रखना और मकरन्द का भी।”

दक्षिणा के सिर पर हाथ रखकर आगे बढ़ गया वह। इस एक स्पर्श में दक्षिणा को मानों सब कुछ मिल गया। दक्षिणा के होंठ धीरे से बुदबुदा उठे – ” मकरन्द •••••।”

वह जाते हुये उन चारों को देख रही थी जो पीछे मुड़कर मुस्कुराते हुये हाथ हिला रहे थे। वह तब तक मुस्कराते हुये उन्हें देखती रही, जब तक वे ऑखों से ओझल नहीं हो गये। उसने जोर से बच्चे को भींच कर चूम लिया –

” मकरन्द ••••• मकरन्द ••••••। तू देवत्व का उपहार है मेरे बच्चे।”

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उपहार (भाग-14) एवं अन्तिम – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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