उपहार – संध्या त्रिपाठी  : Moral Stories in Hindi

 तृषा इसी उधेडबुन में लगी थी कि इस वर्ष राखी में वो अपनी ननद को उपहार में क्या दें ? तभी दरवाजे से आवाज आई , आंटी जी ,आंटी जी… हां आई ये त्यौहार के दिन सुबह-सुबह कौन आवाज दे रहा है… क्या है…?  एक पुराने कपड़े में करीब नौ दस वर्ष का बालक खड़ा था । आंटीजी बीस रुपये दीजिए ना , 

क्यों , क्या काम है बीस रुपये का ? और नाम क्या है तुम्हारा ? समोसा खरीदना है , मैं मुन्ना हूं झोपड़ी में मुझे सब मुनवा कहते हैं । एक ही सांस में बच्चें ने सब कुछ बता दिया …।

             समोसा ? अब तृषा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई थी, अरे आज राखी का त्यौहार है मिठाई खाओ , समोसा कौन खाता है …रुको मैं मिठाई लेकर आती हूं ,नहीं आंटीजी मिठाई नहीं आप बीस रुपये दे दीजिए बदले में मैं बगान में झाड़ू लगा देता हूं ।

            तभी तृषा के मन में वो कल वाली बात याद आई मिसेज शर्मा कह रही थीं, आजकल के छोटे बच्चे भी नशा के गिरफ्त में आ रहे हैं….. पर न जाने क्यों त्यौहार का दिन ,बच्चें की मासूमियत और सबसे बड़ी बात समोसे खाने जैसी सच्ची बात कहना … तृषा ने बीस रुपये निकालकर दे दिए पर अपनी सहायिका को पीछे लगा दिया कि देखो बच्चा कहां जाता है और क्या करता है ?

          बीस रुपये लेकर ऐसा खुश हुआ मुनवा …मानो सारा जहां मिल गया हो , दौड़ा दौड़ा पास के एक होटल में गया वहां दो समोसे की मांग की पर पंद्रह रुपये का एक समोसा बताया फिर एक पत्ते के दोने में एक समोसा लेकर बदहवास झोपड़ी (बस्ती) की ओर भागा ।

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         हांफते-हांफते , मुनिया …मुनिया आवाज लगाई और हाथ बढ़ाकर बोला ले अब बांध राखी और दोना आगे बढ़ाया  समोसा देख मुनिया …मुनवा के गले से लिपट गई  भैया …बस इतना ही कह पांई  मुनिया ।

              समोसा के लिए ही तो कल कमली ने दो थप्पड़ लगाया था मुनिया को और मुनिया रोते-रोते सो गई थी मालकिन के घर प्लेट में झूठे फेंके समोसे को देखकर खाने की जिद कर बैठी थी मुनिया , लाख समझाया था कमली ने.. कल त्यौहार है मालकिन से पैसे लेकर मंगवा दूंगी समोसा , पर नहीं मुनिया का कहना था मन अभी हो रहा है खाने का तो कल क्यों खाऊं ?

         भैया ले ना तू भी खा , बहुत स्वादिष्ट है, नहीं मुनिया तू खा ले, अरे एक बार चख ना भैया । इतनी खुश थी मुनिया उसे राखी का सबसे बड़ा अनमोल उपहार जो मिल गया था ।

       समोसे का ठोंगा पकड़कर दूर से आते हुए कमली ने मुनवा , मुनिया को समोसा खाते देखा और मुनवा के हाथ में राखी । संतोष की सांस ली और कहा , जब भी मैं असमर्थ रहूं  या ना रहूं तो इसी तरह अपनी बहन की भावनाओं का ख्याल रखना बेटा ।

     तृषा को भी पूरा वाक्या सुनने के बाद उपहार देने में कीमत के अलावा भावनाओं की कद्र का भी पता चल चुका था ।

शायद अब तृषा को भी उपहार देने में उतनी माथा पच्ची ना करना पड़े..!

साथियों , रक्षाबंधन में भाइयों द्वारा दिए जाने वाले  उपहार अमूल्य होते हैं.. उसकी कीमत पैसों से नहीं आंकी जा सकती..! हर बहन अपने भाई की भावनाओं और प्यार को बखूबी जानती है…!

    ( स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित, अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय : # बहन

    संध्या त्रिपाठी

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