पुरुषोत्तम बाबू सरकारी नौकरी से रिटायर होकर आराम की जिंदगी बिता रहें थें।बेटी काजल का विवाह अपने ही शहर के एक अध्यापक के पुत्र से दो साल पहले ही कर चुके थें, बेटा आकाश एक प्राइवेट बैंक में काम करता था और पत्नी मंगला सुघड़ गृहिणी थी।पत्नी के सहयोग से ही उन्होंने अपनी सीमित आय में ही बच्चों को सेटल किया और अपना मकान भी बना लिया था।अब वे आकाश का विवाह करके अपनी आखिरी ज़िम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थें।
बहू के संबंध में मंगला जी की एक विशेष इच्छा थी।अपने साथ उठने-बैठने वालों के मुख से जब नौकरी वाली बहू की बातें सुनती थीं तो सोचती कि काश! मुझे भी नौकरी वाली बहू मिल जाये।शादी-ब्याह को सेटल कराने में उनका छोटा भाई निरंजन बहुत माहिर था,सो अपनी पसंद बताकर आकाश के लिए पत्नी ढ़ँढने की ज़िम्मेदारी उन्होंने निरंजन बाबू को दे दी।
निरंजन बाबू ने भी इस काम में तनिक भी देरी नहीं की और अपने ही गाँव के एक परिचित की बेटी नीलिमा, जो सुंदर-सुशील होने के साथ-साथ मंगला जी के ही शहर के एक अस्पताल में बच्चों की डाॅक्टर भी थी, से आकाश के विवाह की बात चला दी।मंगला जी के लिए तो ‘लड़की नौकरी करती है’ यही बहुत था और पुरुषोत्तम बाबू ठहरे पत्नी के अनुचर।बस एक दिन मंगला जी सपरिवार अपने होने वाली बहू को देखने चल दीं।आकाश और नीलिमा ने भी एक-दूसरे को पसंद कर लिया और उसी दिन अँगूठी पहनाकर सगाई की रस्म पूरी कर दी गई।
शुभ मुहूर्त में मंगला जी ने बेटे का विवाह कर दिया और नीलिमा को बहू बनाकर ले आईं।भरा-पूरा परिवार और सहेली जैसी ननद काजल का स्नेह पाकर नीलिमा बहुत खुश थी।विवाह से पूर्व ही उसने अस्पताल से एक महीने की छुट्टी ले ली थी, इसलिए अपने पति और परिवार वालों के समय बिताने का उसे पूरा मौका मिल गया था।कुछ दिनों बाद काजल अपने ससुराल चली गई और आकाश भी अपने काम पर जाने लगा।नीलिमा सास के पास बैठती, उनके काम में हाथ बँटाती और उन्हें अस्पताल के किस्से सुनाकर उनका मन बहलाती।उसने भी तो ऐसे ही ससुराल की कल्पना की थी जो उसे मिल गया था।मंगला जी तो इतनी खुश थी कि अपने पति और रिश्तेदारों को कहती रहतीं कि मेरी तो अब सारी उम्मीदें पूरी हो गई हैं।
एक महीने की छुट्टी खत्म होते ही नीलिमा अस्पताल जाने लगी।जाने से पहले वह सास-ससुर का नाश्ता, दवाइयाँ, फल-दूध आदि सब तैयार कर जाती, कुछ रह जाता तो अस्पताल से घर के नौकर को फोन करके पूरा करने का याद दिला देती थी।अस्पताल से आने पर भी सारे काम पर उसकी बराबर नज़र रहती थी लेकिन पहले जैसा सास के पास अब वह बैठ नहीं पाती थी।कभी-कभी तो उसे शनिवार को भी अस्पताल जाना पड़ जाता था और यही बात मंगला जी को खलने लगी।
मंगला जी को उम्मीद थी कि अस्पताल के काम के साथ-साथ नीलिमा घरेलू बहू की ज़िम्मेदारी भी निभाएगी।लेकिन ऐसा करना नीलिमा के लिए तो कतई संभव न था।उसके मरीज छोटे-छोटे बच्चे थें जिन्हें देखना उसकी प्राथमिकता थी।बस इसी बात पर मंगला जी ने अपनी बहू से दूरी बना ली।उसके कुछ पूछने पर हाँ-हूँ कह देती।यहाँ तक कि बेटी को फ़ोन करके कहती कि मेरी उम्मीदों पर तो पानी फिर गया।एक दिन निरंजन बाबू बहन से मिलने आये तो उस पर बरस पड़ी कि तूने तो मुझे ठग दिया।दूसरों की बहुओं को देखो और एक हमारी हैं….।निरंजन बाबू ने अपनी बहन को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन मंगला जी तो बस…।
काजल अपनी भाभी को बहुत अच्छी तरह से समझती थी, इसीलिए एक दिन उसके अस्पताल जा पहुँची।बरसात के मौसम में तो छोटे बच्चे जल्दी बीमार पड़ जाते हैं, यही वजह थी कि मंगला के केबिन के बाहर बच्चों की अच्छी-खासी भीड़ थी।बड़ी मुश्किल से नीलिमा ने काजल से मिलने के लिए पाँच मिनट का समय निकाला।
हाल-चाल पूछने के बाद नीलिमा ने आने का कारण पूछा तो काजल टाल गई।बोली, ” यूँ ही आपसे मिलने को दिल किया।” कहकर वहाँ से लौट आई।उसने अपने पिता को फोन करके कहा कि भाभी दिनभर बच्चों की सेवा में लगी रहतीं हैं और माँ है कि उनकी तुलना दूसरों से करके बेवजह कुढ़ती रहती हैं जो उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं है।
और यही हुआ, मंगला जी का ब्लड प्रेशर लो(low)हो गया।घबराहट- बेचैनी के काले सायों ने उन्हें घेर लिया।आकाश ने तुरन्त डाॅक्टर को फोन किया। चेकअप करने के बाद डाॅक्टर ने उन्हें फुल रेस्ट करने और तनावमुक्त रहने की सलाह दी।नीलिमा ने अस्पताल से तीन दिनों की छुट्टी ले ली और सास की देखभाल में जुट गई।
बहू की सेवा से मंगला जी के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार होने लगा।उसी समय निरंजन बाबू बहन से मिलने आये।मंगला जी ने कुछ कहना चाहा तो निरंजन बाबू ने उनके मुँह पर अपना हाथ रख दिया और बोले, ” दीदी, दूसरों की बहुएँ कैसी भी हों, आपकी बहू जैसी कभी नहीं हो सकती।आपके बदले व्यवहार को देखते हुए भी नीलिमा के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई।काजल अपने ससुराल है, बेटा अपने काम पर, तो इन सब कमी नीलिमा ही तो पूरी कर रही है ना।आपने तो उससे बहुत सारी उम्मीदें लगा ली थी जिसे पूरा करने की वह हरसंभव कोशिश वह कर रही है लेकिन क्या आप उसकी उम्मीद पर खरी उतरीं?”
निरंजन की बात सुनकर मंगला जी सोचने लगी, तभी नीलिमा सूप लेकर आ गई। ‘जीजाजी से मिल आता हूँ ‘ कहकर निरंजन बाबू चले गये और नीलिमा सूप रखकर जाने लगी तो मंगला जी ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया।बोली, ” बहू, तुम्हें पाकर मेरी तो सारी उम्मीदें पूरी हो गईं लेकिन मैं कुछ नहीं …।” कहते हुए उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।नीलिमा उनके आँसुओं को पोंछते हुए बोली, ” मम्मी जी,मुझे तो आपने उम्मीद से ज़्यादा दिया है।आकाश जैसा केयरिंग पति और काजल जैसी प्यारी ननद मिलने के बाद तो मेरी सारी तमन्नाएँ ही पूरी हो गईं हैं।”
” अच्छा, अगर ये बात है तो मेरी एक इच्छा और पूरी कर दो।” मंगला जी ने हँसते हुए कहा।
” आज्ञा दीजिए मम्मी जी।”
” हमारे बीच में आये ‘ जी ‘ शब्द को हटा दो।मम्मी जी नहीं, सिर्फ़ मम्मी कहो।” सुनकर नीलिमा ‘ मम्मी ‘ कहकर अपनी सास के गले लग गई।दोनों की आँखों से भावनाओं का समंदर बहने लगा।दरवाज़े के बाहर खड़े पुरुषोत्तम बाबू अपनी पत्नी का नया रूप देखकर चकित थें।सास-बहू के नये रिश्ते देखकर वे भी भावुक हो उठे और अपनी आँखों के भीगे कोरों को पोंछते हुए मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बोले, ” हमारी बहू पूरे परिवार के उम्मीद पर खरी उतरी है।”
सच है, हम सभी एक-दूसरे से तो उम्मीद लगा लेते हैं लेकिन बात तब बनती है जब हम भी दूसरों की उम्मीद पर खरे उतरें,अपनों के चेहरे पर मुस्कान लाएँ।
— विभा गुप्ता
# उम्मीद