गोरा रंग ,मझोला कद ,चाॅंद सी सूरत 21 वर्षीय हीरामणि का विवाह हीरा से हुआ। संस्कारों से सुसज्जित हीरामणि पूरे परिवार के प्रति समर्पित और अपने पति को परमेश्वर मानने वाली थी। हीरा भी उसे बहुत प्यार करता परंतु एक उन्मुक्त पक्षी की तरह आकाश में भी उड़ना चाहता था । वह किसी भी तरह के बंधन में नहीं बंधना चाहता था। हमेशा दोस्तों के साथ घूमना, फिरना, मस्ती करना यह उसकी दिनचर्या थी। हीरा अपने खर्चों के लिए अपने माता पिता पर आश्रित था। और हीरामणि अपने माता-पिता पर। अपने दैनिक जरूरत की चीजें वह अपने मायके से लाती। एक वर्ष तक ऐसे ही चलता रहा।
एक दिन हीरामणि की माॅं ने कहा, ‘बेटी कब तक अपनी जरूरतों का सामान यहां से ले जाओगी ,अब तो तुम्हारे भाई और भाभी भी बातें बनाने लगे हैं, तुम अपनी जरूरतों के सामान के लिए हीरा से क्यों नहीं कहती?
हीरामणि निरुत्तर अपनी माॅं की ओर देखती रही।
हीरा की बदनामी ना हो इसलिए उसने मन की बात मन में ही दबाए रखी । अब वह अपनी जरूरतों के लिए माॅं से भी नहीं कह सकती थी। उधर हीरा ऐसे दोस्तों के चंगुल में फंस गया था जो आए दिन मारधाड़ करते रहते थे। वह हमेशा उम्मीद का एक दिया जलाएं इसी आशा में रहती कि एक दिन हीरा बदल जाएगा। परंतु हीरा में कोई बदलाव नहीं आया।
वह कई कई दिनों में घर आता।
शादी को 7 वर्ष हो चुके थे परंतु अभी भी हीरा की वहीं दिनचर्या थी। सास-ससुर ही उसका और उसके दो बच्चों का पेट पाल रहे थे।
हीरामणि- ‘हीरा तुम्हारी बच्चों के लिए भी कुछ जिम्मेदारी है, बूढ़े मां बाप कब तक हमारा भार ढोएंगे, अब ये सारी चीजें छोड़ दो।’
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हीरा- हीरामणि तुम अपनी उम्मीद का दिया बुझा दो, मेरा मन गृहस्थी में रमता ही नहीं है ,मुझे बाहर रहना ही अच्छा लगता है।’
यह कहते हुए हीरा वहां से निकल गया। उसका दोस्त पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था। पुलिस मुठभेड़ में वह और उसका दोस्त मारे गए। वह पीछे छोड़ गया हीरामणि की गोद में अपने दो बच्चे और माता-पिता की जिम्मेदारी। इतनी सी उम्र में वह सारी चीजें झेल रही थी। परंतु उसने कभी हिम्मत नहीं हारी। उसने पूरा जीवन अपने सास-ससुर की सेवा की। धीरे-धीरे बच्चे बड़े होने लगे। अपने संस्कारों से उसने दोनों बच्चों को अच्छी तरह शिक्षित किया । बेटा, बेटी दोनों ही बड़े अफसर बने। कितने वर्षों बाद उसकी उम्मीद का दिया जला ।अब उसके आंगन में पोते ,पोती और नातिन सभी थे, और बुझे हुए दिये की कुछ यादें।
अनीता चेची, मौलिक रचना