*उड़ी चेहरे की रौनक* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 सुन रामदीन,देख तू अपना दोस्त है,इसलिये तुझे आगाह करूँ हूँ, तू अपनी छोरी को संभाल।

     क्यूँ क्या हुआ रौनक?मेरी कमली ने ऐसा क्या कर दिया है?

      अरे, वो अपने मुंशी जी हैं ना,उसके बेटे से वह नैन मटक्का कर रही है।

     गलत,मेरी कमली ऐसा कर ही नही सकती,अरे उसे तो अपनी पढ़ाई से ही फुरसत नही।

       तो तू क्या समझे है,मैं झूठ बोलूं हूँ। मैंने खुद उसे मुन्शी के छोरे के साथ हँसते हुए बतियाते देखा है,मेरी बेटी साथ थी तब मेरी बेटी पुष्पा ने बताया कि बापू कमली का सुशील से चक्कर है।पुष्पा ने मुझे बताया।

         रामदीन और रौनक दोनो ही ईंट भट्ठे पर बेलदार थे।भट्टे के पास ही उनके छोटे छोटे मकान थे।रामदीन का बेटा शहर में कही सेठ जी के यहां नौकरी कर रहा था,वह कार चलाना भी जानता था,सो सेठ जी ने उसे अपनी कोठी के पिछवाड़े एक छोटा सा कमरा रहने को दे दिया था।बेटी कमली पढ़ने लिखने में मेधावी थी,

सो वह अपने कस्बे में ही रहकर पढ़ाई कर रही थी।बैंक के अधिकारी की प्रतियोगिता की तैयारी कर रही थी।इतना ही नही कमली पढ़ाई लिखाई के साथ अपनी माँ के साथ घरेलू कार्य मे भी भरसक साथ देती थी।बिल्कुल सादगी की प्रतीक थी कमली।उस कमली के बारे में सुनकर रामदीन अचंभित रह गया।वह सपने में भी उसके बारे में इस प्रकार की बात की कल्पना भी नही कर सकता था।

      बोझिल कदमों से वह घर की ओर चल दिया।वह कैसे कमली से इस बात को कहेगा।विश्वास का पात्र क्या आज ही टूट जायेगा?घर पहुँचकर रामदीन अपने बिस्तर पर पसर गया।कमली ने अपने बापू को ऐसे पस्त पड़े देखा तो वह चिंतित हो अपने पिता की कुशल क्षेम लेने लगी।कमली का स्नेह, उसकी मासूमियत रामदीन को कह रही थी कि नहीं कमली ऐसी नही है, वो अपने बापू को धोखा नही देगी।कमली से रामदीन कुछ भी न कह सका।

      तीसरे दिन ही मुहल्ले में चर्चा फैली थी,कि रौनक की बेटी पुष्पा मुंशी के बेटे सुशील के साथ भाग गयी है।यह खबर सुन रामदीन चौंक गया।रौनक तो सुशील का चक्कर कमली से बता रहा था,जबकि चक्कर था उसकी ही बेटी पुष्पा से।पता नही  रौनक जो कमली के बारे में कह रहा था वह अपने आप अपनी बेटी की करनी को कमली से जोड़ने का प्रयास था या यह कहानी खुद पुष्पा ने ही गढ़ी थी।

     पर पुष्पा के सुशील के भाग जाने और कमली को सुशील के साथ जोड़ने के कारण रौनक के चेहरे की रौनक जरूर उड़ गयी थी और वह मुँह छुपाता फिर रहा था।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित।

*#अपना सा मुँह लेकर रह जाना* मुहावरे पर आधारित लघुकथा:

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