*उदासीन ब्रह्मचारी का फैसला* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

        देखो ऋषि मैं जानती हूं तुम्हे अपने जॉब के कारण अधिकतर समय बाहर ही रहना होता है, पर मैं भी क्या करूँ,कैसे रहूं तुम बिन?

        सरिता,तुम एक भरे पूरे परिवार में रहती हो,माँ हैं, बाबूजी हैं और छोटा भाई राजेश है।इतने लोगो के बीच क्यूँ अकेलापन महसूस करती हो?आदत डालो सरिता आदत डालो।

        सरिता फोन पर और क्या कहती,चुप रह गयी।सब कुछ कहना चाह कर भी कुछ भी ना कह सकी,सरिता।

           सेठ कुंदन लाल और सुलोचना के दो ही पुत्र थे,ऋषि और राजेश।कुन्दनलाल जी एक बड़े प्रतिष्ठान के स्वामी थे,उन्हें किसी चीज की कोई कमी नही थी।बड़ी कोठी का निर्माण भी इस प्रकार कराया गया था कि यदि भविष्य में दोनो भाई एक साथ न रहना चाहे तो अलग अलग पोर्शन में रह सकते थे।कुन्दनलाल जी बड़ी धार्मिक तथा संतोषी वृत्ति  के व्यक्ति थे।अपनी अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करके ऋषि ने जॉब करना चुना और वह नेवी में चला गया।छोटे बेटे राजेश की रुचि व्यापार में थी,सो वह पिता के साथ कारोबार में लग गया।

अब कुन्दनलाल जी पूरी तरह संतुष्ट थे।उन्होंने अपना कारोबार धीरे धीरे राजेश को सौप दिया।पर ध्यान रखा कि ऋषि भले ही नौकरी करता हो,पर उनकी संपत्ति और कारोबार में उसका हित सुरक्षित रहे।कुन्दनलाल जी अब एक प्रकार से उदासीन ब्रह्मचारी का जीवन घर गृहस्थी में रहते हुए व्यतीत कर रहे थे।

        ऋषि की शादी की बात चलती तो कुन्दनलाल जी  लड़की वालो से स्पष्ट रूप से कह देते,कि बेटा चूंकि नेवी में है,इसलिये वह वर्ष भर में तीन चार माह ही घर आ पाता है,बहू को यह सामंजस्य बैठाना पड़ेगा।उनका मानना था कि लड़की वालों को किसी भी प्रकार से अन्धेरे में नही रखा जाना चाहिये।दूसरे वह यह भी सोचते थे,

पहले ही पता होने पर उसी प्रकार रहने की सहन शक्ति आती है।इसी बीच ऋषि ने अपनी माँ सुलोचना को सरिता के बारे में संकेत दे दिया,कि वे एक दूसरे को पसंद करते हैं। माँ ने सेठ जी से बताया तो उन्होंने सहर्ष अनुमति दे दी।ऋषि और सरिता की धूमधाम से शादी कर दी गयी।

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      सब कुछ ठीक चल रहा था कि घर मे या यूं कहें सरिता के जीवन मे एक भूचाल आ गया।देवर राजेश की नीयत अपनी भाभी के प्रति बदल गयी।कामुक दृष्टि को सरिता पहली ही नजर में भांप गयी।अब सरिता राजेश के सामने कम ही पड़ती।एक ही घर मे एक ही छत के नीचे आखिर ऐसे कब तक घुट घुट कर रहा जा सकता था, और घर मे कोई वितंडावाद खड़ा न हो इसलिये वह ऋषि की घर आने तक प्रतिक्षा करना चाहती थी। यही कारण था कि उस दिन वह सारी बात ऋषि को बताना चाहती थी पर फोन पर कह नही सकी थी।      

  उस दिन हद हो गयी जब राजेश ने उसका हाथ ही पकड़ लिया।एक झन्नाटेदार थप्पड़ सरिता ने राजेश के गाल पर जड़ दिया,और फुफकारते हुए बोली मेरा पति यहां नही है तो इसका मतलब यह तो नही मैं तुम जैसों नीच कामियो के लिये सहज हूँ।खबरदार जो मेरी ओर देखने की भी कोशिश की।वहां से भाग कर अपने कमरे में आकर अपने बेड पर ओंधे मुँह लेट गयी,उसकी रुलाई फूट पड़ी।

            सरिता के रोने की आवाज सुनकर सुलोचना और कुन्दनलाल जी सरिता के कमरे में दौड़े आये,सुलोचना जी बोली बेटा क्या बात हो गयी है?क्या ऋषि की याद आ रही है,तू चिंता न कर अबकी बार आयेगा ना,तो उसकी नौकरी ही छुड़वा दूंगी।बता ना बेटा क्या बात है? सहानुभूति के दो बोल सुन सरिता ने राजेश की नीयत के बारे में सब बता दिया।सुलोचना बोली,सुन बेटा राजेश के कान मैं आज ही ऐंठ दूंगी।फिर वह ऐसा नही करेगा।ये बात ऋषि को मत बताना, बेटा ऐसी ही छोटी छोटी बातों से घर टूट जाते हैं।दरवाजे

के पास खड़े कुन्दनलाल जी एकदम फट पड़े बोले सुलोचना क्या कह रही हो?ये क्या छोटी बात है?माँ समान भाभी पर कुदृष्टि डालना क्या छोटी बात है, सुलोचना ये बहुत बड़ी बात है।राजेश ने मर्यादा का उल्लघन किया है, हमारा विश्वास तोड़ा है उसने।मैं उसे कभी माफ नही कर सकता।

           सुलोचना सहम गयी, अपने पति का यह रूप उसने पहले कभी नही देखा था।सुलोचना का आगे कुछ भी बोलने का साहस नही हुआ।कुन्दनलाल जी बोले बेटा तुम हमारी जिम्मेदारी हो।तुम्हारा ये पापा अभी जिंदा है, तुम बिल्कुल स्वच्छंद रूप से रहो, मेरी बच्ची।

       अगले ही दिन कुन्दनलाल जी ने राजेश को कोठी के ऊपर वाले पोर्शन में चले जाने को बोल दिया,और नीचे न आने की हिदायत भी दे दी।हिकारत भरी निगाहों से कुन्दनलाल जी ने राजेश को देखते हुए कहा कि कही डूब भी मरते तो मुझे इतना दुख नही होता,जो दुख तूने हमे इस बुढ़ापे में दिया है।धिक्कार है तूझे।राजेश अपने पिता और मां से क्षमा मांगता रह गया, सरिता के पैरों में गिर बोला राजेश भाभी अपने इस नराधम को एक बार माफ कर दो।

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          सरिता सुबकती सी एक ओर खड़ी रही,सुलोचना को लग रहा था,सच मायने में तो घर बिखरने से उसके पति ने बचाया है।अगर सरिता को दबा दिया जाता तो वह या तो ऐसी झील बन जाती जो सीमित स्थान में सिमट कर रह जाती,शांत निश्छल या फिर सरिता अपने तट को तोड़ विकराल रूप धारण कर लेती जिसमे सब कुछ बह जाता।कुंदनलाल जी ने सरिता को दोनो ही अतिरेक स्थिति से बचा लिया था।उन्होंने राजेश को कारोबार से तो नही हटाया पर घर मे साथ रहने की अनुमति भी नही दी।उसे अब ऊपर के हिस्से में ही जाना पड़ा।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

*#मैं नही चाहती ये छोटी सी बात कोई बड़ा रूप ले ले और सब रिश्ते बिखर जाये* साप्ताहिक वाक्य पर आधारित कहानी:

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