वंशिका अपने माता-पिता और भाई के साथ गाड़ी से उतरी ही थी तभी सामने दूसरी गाड़ी से अपने परिवार के साथ वैभव उतरता हुआ दिखाई दिया अचानक दोनों की दृष्टि आपस में जा टकराई दोनों के चेहरों पर अनकही पीड़ा की लकीरें उभर आई। वंशिका ने देखा कि वैभव काफी दुबला हो गया है।
वंशिका ने तुरंत अन्यमनस्क होकर दृष्टि फेर ली और चुपचाप अदालत की सीढ़यों की ओर बढ़ गई। वैभव और उसका परिवार भी आगे बढ़े। अचानक वंशिका के पैर में हल्की सी ठेस लगी
और वह लड़खड़ा गई। पीछे चल रहे वैभव हमने तुरंत हाथ बढ़ाकर उसकी बांह पकड़ ली, उसके स्पर्श मात्र से वंशिका को ऐसा लगा जैसे उसके अंदर कुछ पिघलने लगा है। उसने हड़बड़ा कर अपनी बाँह छुड़ाई और झटके से ऊपर चढ़ गई।
आज उन दोनों के तलाक के मुकद्दमे की पहली तारीख थी। कार्रवाई के बाद मुकदमे की अगली तारीख दे दी गई थी। अदालत से घर लौट के बाद भी वंशिका अंनमनी सी रही। उसकी आंखों के सामने वैभव का वही उतरा हुआ चेहरा घूमता रहा। वही वैभव जिससे कभी उसने अपने प्राणों से भी ज्यादा प्रेम किया था। और आज उसी से अपरिचितों की तरह व्यवहार करने में उसका हृदय विदीर्ण हो गया।
रात में हुआ सोने गई तो नींद जैसे उसकी आंखों से कोसो दूर थीं। वह बिस्तर पर करवटें बदलती रही। उसकी आंखों के समक्ष पुरानी सभी बातें चलचित्र की तरह घूमने लगी।
उसके भैया का मित्र था वैभव। कई बार भैया के साथ घर आता था। मगर कुछ ही दिनों में उसे अनुभव होने लगा कि वैभव उसका कुछ विशेष ध्यान रखना है और जाने अनजाने में वह भी वैभव की तरफ खिंचाव का अनुभव करने लगी और मुस्कुराहटों के आदान-प्रदान से प्रारंभ होकर कब बात प्रेम तक पहुंच गई, दोनों ही समझ नहीं पाए।
दोनों परिवारों में यह बात पता चलते ही हलचल मच गई। वंशिका के माता-पिता और भाई को भी यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। वंशिका के भाई ने उसे समझाते हुए कहा कि “-अरे इतनी भी क्या जल्दी है शादी की..
. अभी कुछ दिन और नौकरी कर ले तेरे पास भी अच्छे खासे पैसे जमा हो जाएंगे.. हमारी भी थोड़ी मदद हो जाएगी… विवाह का क्या है वह तो हो ही जाएगा कभी न कभी!” मगर वंशिका अंतिम निर्णय ले चुकी थी।
उधर वैभव के पिता को भी जब यह बात पता चली तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होंने तो सोच रखा था कि उन्हें अपने मोटा कमाने वाले बेटे पर अच्छा खासा दहेज और तिलक मिलेगा।
वह भी हाथ से निकलता देख तिलमिला गए और बिल्कुल भड़क गए, “-अरे तेरे लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते आएंगे… तू क्यों एक सामान्य सी लड़की के साथ संबंध जोड़ना चाहता है। ऐसी लड़कियां बस तुम जैसे लड़कों को फँसाना जानती हैं, ताकि जीवन भर तुम्हारे पैसों पर ऐश करती रहे।”
वैभव यह सुनते ही भड़क उठा, “-कैसी बातें आप करते हैं पापा.. वंशिका ऐसी बिल्कुल भी नहीं है.. और सुन लीजिए आप लोग,यदि मेरा विवाह वंशिका से नहीं हुआ तो मैं फिर कभी विवाह नहीं करूंगा..”
अंतत: दोनों परिवारों को उनके प्रेम के समक्ष झुकना ही पड़ा और दोनों का विवाह हो गया। और वंशिका वैभव की दुल्हन बनकर उसके घर आ गई। वंशिका अपने प्रेम और व्यवहार से सबका हृदय जीतने का प्रयास करती रहती थी परंतु ससुराल में सास ससुर का व्यवहार सदैव उसके प्रति रुखा ही रहा बल्कि वे उसे जली कटी सुनाने का कोई भी
अवसर नहीं चूकते थे। हां वैभव जब सामने होता था तब वह लोग वंशिका से कुछ भी नहीं कहते थे। वंशिका सब कुछ देख और समझ रही थी परंतु उसने वैभव से कभी कुछ नहीं कहा वह यही मानती रही कि धीरे-धीरे समय के साथ सब कुछ सही हो जाएगा मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और सास ससुर का व्यवहार उसके प्रति बद से बदतर होता गया।
बाद में जब वंशिका से सहन नहीं हो पाया तो उसने अपनी पीड़ा वैभव से साझा करनी चाही परंतु वैभव ने उसे ही समझाते हुए कहा, “-यह सब तुम्हारा वहम है वंशु..मां पापा तो तुम्हारे साथ ऐसा कुछ बुरा व्यवहार नहीं करते .. तुम भी उन्हें समझने का प्रयत्न करो ना..धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा..”.. वंशिका अपना सा मुंह लेकर रह जाती।
कुछ समय के बाद कार्यालय में वैभव के ऊपर कार्यों का बोझ बढ़ने लगा तो वह बहुधा देर से घर लौटने लगा। और घर आकर जब उसे वंशिका का रुंआसा चेहरा देखने को मिलता तो वह चिढ़ जाता था और वंशिका अगर उससे कभी भी अपनी पीड़ा साझा करने का प्रयत्न करती तो वह बुरी तरह खीझ जाता था। और दोनों के बीच अक्सर झड़पें होनी प्रारंभ हो गईं।
उस दिन भी यही हुआ था। दोनों के बीच कहा सुनी हुई और आवेश में वंशिका भी जब जोर से बोलने लगी तो वैभव ने उसे अपने सामने से हटाने का प्रयत्न किया लेकिन आवेश में उसका हाथ जोर से लग गया और वंशिका का सिर अलमारी के कोने से जा टकराया। उसके माथे पर खून की बूंदे उभर आईं।
वंशिका भी आवेश में चीख पड़ी, “-हां अब बस यही बाकी रह गया था वैभव! यह शौक भी तुम पूरा कर लो… मार ही डालो मुझे!…”
उसके सिर पर खून की बूंदे देखकर वैभव को तुरंत अपने व्यवहार पर पछतावा हुआ और उसने आगे बढ़कर कहा, “-सॉरी वंशिका..मैं ऐसा नहीं चाहता था। यह गलती से लग गया। चलो मैं इसे साफ करके कुछ ऑइंटमेंट लगा देता हूं…!”
मगर वंशिका तो जैसे पागल हो गई थी। वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। उसने क्रोध से कांपते हुए कहा, “-इसकी कोई आवश्यकता नहीं है वैभव.. मैं अब यहां एक पल भी नहीं रह सकती… मेरे साथ घर में चाहे जो भी व्यवहार होता था मैं तुम्हारे प्यार के कारण सब कुछ सहन कर रही थी… परंतु जब तुम्हें ही मुझसे कोई मतलब नहीं रहा तो फिर मेरे यहां रुकने का भी कोई अर्थ नहीं है… मैं अभी और इसी समय अपने मायके वापस जा रही हूं…”
दोनों के जोर-जोर से बोलने की आवाज़ सुनकर वैभव के माता-पिता भी वहां आ पहुंचे… वैभव के पिता ने कड़कते हुए स्वर में वंशिका से कहा, “- अरे तुम्हें जाना है तो चली जाओ ना मेरे बेटे पर धौंस क्या दिखाती हो… तुम क्या चाहती हो मेरा बेटा जोरू का गुलाम बन कर रहे.. तुम्हारे तलवे चाटता रहे.. ऐसा कभी नहीं हो सकता…”
पिता की बात सुनकर वैभव को भी लगा कि शायद उसके पिता ठीक ही कह रहे हैं… वंशिका अपने आप को समझती क्या है.. उसे जाना है तो चली जाए…।
आवेश में वंशिका ने भी तुरंत कैब मंगवाया और मायके जा पहुंची। घर पहुंच कर जब उसने सारी बातें बताई तो उन लोगों ने भी यही कहा कि उसने घर छोड़कर बिल्कुल सही निर्णय लिया है।
वंशिका के भाई ने दांत पीसते हुए कहा,”- इस वैभव के बच्चे को तो मैं छोड़ूंगा नहीं.. मैं तो तुझसे पहले ही कह रहा था वंशिका कि यह वैभव तुम्हारे योग्य नहीं है पर तुम नहीं मानी… चलो फिलहाल तो तुम खाना-वाना खा कर सो फिर मैं देखता हूं इसका क्या करना है…”
दो दिन के बाद जब वंशिका का मन थोड़ा शांत हुआ, तो उसे अनुभव हुआ कि उसकी प्रतिक्रिया कुछ अधिक ही तीखी रही। शायद उसे भी इतना क्रोध नहीं करना चाहिए था। वैभव भी थक हार कर कार्यालय से आया था। दिन भर का हाल पूछने के बजाय उसने अपना रोना रोना प्रारंभ कर दिया था….
उसने सोचा कि वह वैभव को फोन लगाकर बात कर लेगी और अपने वापस आने की सूचना भी दे देगी उसने फोन लगाया ही था कि तभी चाय का कप लेकर मन वहां आ गई और डिस्प्ले पर वैभव का नाम देखते ही उन्होंने उसके हाथ से फोन छीन लिया.. “-यह क्या कर रही है… उसने तेरा इतना अपमान किया और फिर भी तो उसको फोन लगा रही है… कोई आवश्यकता नहीं है.. उसने तो तेरी एक बार भी खबर नहीं ली..”
मां का स्वर सुनकर भैया भी कमरे से निकल आया, “-अरे ऐसे लड़के से तो संबंध विच्छेद हो जाए वही बेहतर है… आइंदा से उसे कभी फोन मत लगाना वंशिका…”
उधर वैभव को भी यह अनुभव हो रहा था कि उसे शायद वंशिका की बात सुननी चाहिए थी। वह भी तो अपना घर परिवार छोड़कर उसके साथ उसके घर आ गई.. पर उसने कभी उसकी किसी बात पर भरोसा नहीं किया आखिर वह यहां अपना दुख दर्द उसे नहीं कहती तो और किसे कहती… उसे भी इतना क्रोध नहीं करना चाहिए था… अब अगर वंशिका का फोन आया तो वह उससे क्षमा मांग लेगा और वह तुरंत जाकर उसे वापस ले आएगा।
पर जब दो-तीन दिनों तक वंशिका का फोन नहीं आया तो उसके अहम को भी ठेस पहुंची। उसने भी सोचा कि जब वंशिका ही उस संबंध नहीं रखना चाहती तो फिर अपनी तरफ से पहल करने का क्या लाभ….
वंशिका भी मन ही मन प्रतीक्षा कर रही थी कि कभी तो शायद वैभव उससे संपर्क करने का प्रयास करेगा परंतु जब महीना बीतने को आया तो उसने भी मन मसोस कर भैया की बात मान ली। तलाक की अर्जी दाख़िल कर दी गई….
वंशिका बिस्तर से उठकर खिड़की के पास चली गई। उसके मन में जैसे बवंडर उठ रहा था। उसे अभी तक अपनी बाहों पर वैभव का वह स्पर्श याद आ रहा था जिसमें कितनी परवाह और कितनी आत्मीयता भरी हुई थी। कितना उतर गया था वैभव का चेहरा इन कुछ ही दिनों में…
उसे नींद नहीं आ रही थी तो समय बिताने के लिए उसने मोबाइल में सोशल मीडिया का पेज खोल लिया। उसे दिखा कि वैभव ऑनलाइन है ..उसके मन ने कहा कहीं ऐसा तो नहीं कि वैभव भी उसी के बारे में सोच रहा हो.. अपनी इस सोच पर एक क्षण के लिए उसे रोमांच हो आया… पता नहीं किस भावना के वशीभूत होकर उसने वैभव को संदेश प्रेषित कर दिया ‘-कैसे हो वैभव??’
‘- ठीक हूं… तुम कैसी हो.. चोट ज्यादा तो नहीं लगी…?’ तुरंत ही वैभव का उत्तर आ गया जैसे वह उसी के संदेश की प्रतीक्षा कर रहा था।
‘- नहीं मैं ठीक हूं लेकिन लगता है तुम अपना ध्यान नहीं रखते.. बहुत दुबले हो गए हो और चेहरा भी बहुत उतर गया..’
‘ क्या करूं कुछ बहुत प्यारा मुझसे छूट गया है न.. चलो शुभ रात्रि! अपना ध्यान रखना तुम भी..’
वंशिका का गला भर आया, उसने भी शुभ रात्रि लिखा और ऑफलाइन हो गई।
रात भर उसे नींद नहीं आई वह सुबह होने के प्रतीक्षा करती रही। वैभव के साथ व्यतीत किए हुए प्यार भरे पल उसके आंखों के समक्ष तैरते रहे। उसका अपना निर्णय जैसे उसे ही काट खाने को तैयार हो गया था।
दूसरे दिन भी वह अनमनी सी रही। सब उससे पूछते रहे क्या हुआ है.. परंतु वह कुछ उत्तर नहीं दे पाई। शाम के बाद जी कड़ा करके उसने सामान्य होने का प्रयत्न किया। और भाभी के साथ मिलकर रात का खाना भी बनवाया। भैया लैपटॉप पर शायद कुछ काम कर रहा था तो भाभी उसका खाना देने उसके कमरे में ही चली गई।
वंशिका और परांठे सेंकने लगी। तभी उसकी दृष्टि दही के कटोरे पर पड़ी जो भाभी ने गलती से वहीं पर छोड़ दिया था। उसने चूल्हा बंद किया और दही का कटोरा लेकर भैया के कमरे की ओर बढ़ चली। वह उसके कमरे तक पहुंची ही थी कि अपना नाम सुनकर उसके पैर ठिठक गए..भैया और भाभी आपस में बातें कर रहे थे ..भाभी कह रही थी, “-अब तो लग रहा है जल्दी ही वंशिका का तलाक हो जाएगा..”
भैया ने भी उत्साहपूर्वक कहा, “-बिल्कुल.. मैं जितनी जल्दी हो सके यह तलाक करवाने का प्रयत्न करता हूं। मेरे बॉस को वंशिका बहुत पसंद है और हमने वंशिका का विवाह अगर मेरे बाॅस से करवा दिया तब तो मेरा प्रमोशन पक्का और विदेश का ट्रिप भी।”
फिर दबे स्वर में दोनों के सम्मिलित ठहाके का स्वर गूंजा। भाभी ने कहा, “-लेकिन तुम्हारे बाॅस की उम्र तो ज़्यादा है.. तुम्हें क्या लगता है वंशिका मान जाएगी ..?”
भाई के स्वर में कुटिलता घुल गई,उसने कहा, “-नहीं मानने के अलावा वंशिका के पास कोई चारा भी नहीं बचेगा तलाक होने के बाद…चलो अच्छा है वह भी सुखी रहेगी और हमारे सुख के भी द्वार खुल जाएंगे..”
वहां खड़े-खड़े वंशिका को लगने लगा कि उसका सिर घूम रहा है वह आगे कुछ और नहीं सुन पाई। उसके अपने घर वाले जिनके भरोसे वह अपना बात बताया घर छोड़कर आई वह उसे अपने स्वार्थ सिद्धि का साधन मात्र मानते हैं … उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था …वह दही का कटोरा किसी प्रकार से रसोई में जाकर रख कर आई
और अपने कमरे में जाकर कटे वृक्ष की भांति बिस्तर पर गिर गई। सिसकियों से उसका कंठ अवरुद्ध हो गया। उसने अपना घर छोड़कर अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। किस मुंह से अब वह लौटेगी वैभव के पास… फिर भरे मन से उसने अपने आंसू पहुंचे और यह तय कर लिया कि वह किसी से कुछ नहीं रहेगी अब अपने जीवन में आगे का रास्ता वह खुद ही बनाएगी।
मां उसे खाना खाने के लिए बुलाने आई तो उसने कह दिया कि उसे भूख नहीं है। वह बिस्तर पर लेट गई और मन ही मन सोचने लगी कि कल वह किसी भी हालत में यह घर छोड़कर जहां भी भाग्य ले जाएगा वहां चली जाएगी। पर यहां नहीं रहेगी।
अचानक फोन में नोटिफिकेशन आया तो उसने खोल कर देखा… वैभव का संदेश था… “-वंशिका क्या मैं तुम्हें कॉल कर सकता हूं… क्या एक बार के लिए तुम मेरी बात सुन सकती हो…”
वंशिका का मन मयूर नाच उठा। वह खुशी से जैसे बावरी हो गई । उसने “हां” टाइप किया और अगले ही पल उसके फोन की घंटी बज उठी।
” वंशु..कैसी हो?”
वैभव का वही आत्मीयता भरा स्वर उभरा।”
वंशिका को लगा जैसे कानों में शहद घुल गया हो।
“- ठीक हूं.. तुम कैसे हो? इतने दिनों बाद मेरी याद आई..? वंशिका ने भरे गले से उलाहना दिया।
“- वह बात नहीं है वंशिका.. मैं कई दिनों से तुमसे बात करना चाह रहा था पर साहस नहीं कर पा रहा था। पर कल जब तुम्हारा संदेश मिला तो मुझे ऐसा लगा कि शायद मेरा कुछ तो स्थान अभी भी तुम्हारा ह्रदय में शेष है।…. मैं तुमसे मात्र यह कहना चाहता हूं कि अगर तुम मुझसे संबंध विच्छेद करना चाहती हो तो ठीक है मैं तुम्हारे निर्णय का
सम्मान करुंगा परंतु अगर मेरी बात पूछो तो मैं यह संबंध विच्छेद नहीं करना चाहता… उन दिनों में भी काम के दबाव में तुमसे अच्छा व्यवहार नहीं कर पा रहा था शायद गलती तो मेरी भी थी और साथ ही इस बीच बहुत कुछ पता चला है मुझे..”
“- क्या सच कह रहे हो वैभव…. मुझे तो सब कुछ एक सपने जैसा लग रहा है। मैं तो कभी तुमसे अलग होना ही नहीं चाहती थी। पर उस दिन क्रोध के आवेग में मैं घर से निकल गई थी लेकिन बाद में मुझे अनुभव हुआ कि आवेश में मैंने गलत निर्णय ले लिया परंतु परिस्थितियों कुछ ऐसी बनी कि मैं लौट नहीं पाई।.. लेकिन अब क्या हो सकता है..”
“-हो क्यों नहीं सकता वंशु… हम तलाक के अर्जी खारिज करा लेंगे… हम फिर से मिल जाएंगे और दोनों कहीं दूर चले जाएंगे इस स्वार्थी दुनिया से..”
“- अगर सचमुच ऐसा हो सकता है वैभव तो तुम जितनी जल्दी हो आकर मुझे यहां से ले जाओ….” वंशिका ने सिसकते हुए कहा.. फिर अचानक जैसे उसे कुछ याद आया.. उसने पूछा, “-अरे हां..तुम किस बात के बारे में बता रहे थे जो तुम्हें पता चली है..”
“- क्या बताऊं वंशु.. मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरे अपने पिता ऐसा करेंगे। वे अपने एक बड़े उद्योगपति मित्र की एकमात्र पुत्री से मेरा विवाह करवाने की सोच रहे हैं ताकि उन्हें मोटा दहेज मिल सके और उनके बाद उनकी संपत्ति भी। इसीलिए वह हमारा तलाक करवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं
। मुझे तो पता भी नहीं चलता कि उनके दिमाग में यह सब पक रहा है। अभी दो तीन दिन पहले हमारी बड़बोली गृह सहायिका रमिय काम कर रही थी तो काम करते-करते उसके एक कान का बुंदा गिर गया तो मुझे जमीन पर पड़ा दिखा। मैंने उसे इंगित किया तो इस पर वह मुस्कुराते हुए बोली,”- जाने दो ना बाबूजी..
अब तो आपकी शादी में नई झुमके लूंगी।” मैं बिल्कुल चौंक गया। इस बाबत उससे आगे बात की तो वह बचने का प्रयास करने लगी, “-नहीं-नहीं बाबूजी गलती से मुंह से निकल गया.. बस मैंने यूं ही कह दिया। ” लेकिन जब मैं उससे कड़ाई से पूछा तब उसने बताया कि उसने मेरे पिता को अपने उद्योगपति मित्र से फोन पर बात करते हुए
सुना था जिसमें वह कह रहे थे कि मेरा तलाक होते ही वह उनकी पुत्री से मेरा विवाह करा देंगे। और उनके मित्र भी इस विवाह को तैयार हैं क्योंकि उनकी पुत्री थोड़ा तुतलाती है इसके कारण उसका विवाह कहीं भी नहीं हो पा रहा। और हम उसकी आयु भी बहुत ज्यादा हो गई है। उसकी सम्पत्ति के लोभ में मेरे पिता ये विवाह करवाना चाहते हैं। क्या कहूँ इस स्वार्थ को..”
यह सब सुनकर वंशिका भी सकते में आ गई फिर उसने स्वयं को संयत करते हुए कहा, “-मेरी भी कहानी कुछ कुछ ऐसी ही है वैभव.. चलो अच्छा हुआ समय रहते हमें सब कुछ पता चल गया.. अब हम इन सब की स्वार्थ सिद्धि का साधन नहीं बनेंगे। और साथ ही जो गलती हम दोनों ने अतीत में कि वह भी अब नहीं दोहराएंगे। हर परिस्थिति में एक दूसरे को समझने का प्रयास करेंगे..”
“- चलो ठीक है वंशु.. जो हुआ सो हुआ.. अब तो तुम तैयारी कर लो.. दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे।”
“-धत्त..!!!” वंशिका के चेहरे पर जैसे ढेर सारा गुलाबी गुलाल बिखर गया। उसने शरमा कर तकिए में अपना मुंह छुपा लिया। फोन में वैभव के संदेश में धड़कते हुए दिल का इमोजी दिखाई दे रहा था… जो इस बात का साक्षी था कि टूटते रिश्ते फिर से जुड़ने लगे।
निभा राजीव निर्वी
सिंदरी धनबाद झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना