अजी बताइए ना, आपके कौन-कौन से कपड़े रखूं? सुधा जी अपने पति सोमेश जी से बोली। उनकी खुशी उनकी आवाज में झलक रही थी। कोई से भी रख लो, क्या फर्क पड़ता है। मैं तो तुम्हारा मन रखने के लिए वहाँ जा रहा हूँ। वर्ना ऐसा नहीं है कि मैंने पीयूष को माफ कर दिया है।
देखिए जी हमारे बच्चे की खुशी में ही तो हमारी खुशी है। सही कहा तुमने लेकिन क्या हमारी खुशी हमारे बच्चे की नहीं होनी चाहिए थी। और उठकर चले गए।
सुधा जी उस दिन के बारे में सोचने लगी। जब पीयूष ने उनसे अपनी सहकर्मी नताशा से शादी करने की इच्छा जाहिर की थी। उन्होंने उसे समझाया था कि तुम्हारे पापा इस रिश्ते को नहीं मानेंगे।
एक तो अंतर्जातीय विवाह, दूसरे वे बहुओं के बाहर जाकर काम करने को पसंद नहीं करते। उनका मानना है कि नौकरी करने वाली बहुएं ना तो घर संभाल सकती हैं, ना ही बड़ों की इज्जत करती हैं। फिर भी मैं तेरे पापा को समझाने की पूरी कोशिश करूँगी।
देखो जी मैं मिली हूँ नताशा से एक बार। बड़ी प्यारी बच्ची है । नहीं सुधा वह बंगालन मेरे घर की बहू बिल्कुल नहीं बनेगी। देखो जी आजकल इन सब बातों को कोई नहीं मानता। नहीं मानता होगा लेकिन मैं मानता हूँ। और मेरे घर में मेरे हिसाब से ही रहना होगा। जिसे नहीं रहना वह अपना अलग इंतजाम कर ले। फिर चाहे जैसे रहना चाहे और जिसके साथ रहना चाहे।
देखिए जी कुछ अपने विचारों को बदलिये। जो समय के साथ नहीं बदलता, उसे फिर समय बदल देता है। जमाने के साथ न चलने वाला भी कहीं पीछे छूट जाता है। लेकिन सोमेश जी समझने को तैयार ही नहीं थे।
वही हुआ जिसका सुधा जी को डर था। पीयूष ने नताशा से शादी कर ली। वह घर आया तो सोमेश जी ने उसे अंदर ही नहीं आने दिया। पीयूष अलग रहने लगा। लेकिन दोनों ही एक-दूसरे के लिए दुखी भी थे। आज पीयूष का फोन आया था मम्मी आपका पोता हुआ है। प्लीज पापा को लेकर आइये ना आप।
सुधा जी के ज्यादा जिद करने पर सोमेशजी वहां जाने को बेमन से तैयार हो गए थे। हालांकि अपने पोते को देखने की जिज्ञासा उनके मन में भी थी।
वे पीयूष के घर पहुंचे तो सुधा जी ने देखा कि घर बहुत अच्छी तरह से व्यवस्थित और साफ था। देखो ना जी नताशा ने कितने सलीके से घर संवारा है। हां हां ठीक है। तभी पीयूष ने बच्चे को लाकर सोमेश जी की गोद में दे दिया। एक पल के लिए सोमेश जी सारी नाराजगी भूल गए। उन्हें लगा जैसे समय कई साल पीछे चला गया है।
और उन्होंने पीयूष को ही गोद में लिया है। उन्होंने बच्चे को छाती से चिपका लिया।पीयूष की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसे लगा उसके मम्मी- पापा उसे वापस मिल गए हैं।
एक-दो दिन पीयूष के यहां रुक कर सोमेश जी सुधा जी से बोले, तुम कुछ दिन यहां रुको तुम्हारी बहू को इस समय तुम्हारी जरूरत है। नताशा जो अंदर लेटी यह बात सुन रही थी। उठकर बाहर आई और बोली नहीं पापा मुझे आप दोनों की जरूरत है। नताशा ने यह बात इतने अधिकार और प्यार से कही कि सोमेशजी भी कुछ दिनों के लिए वहीं रुक गए।
तिरस्कार सह साथ मे रहने से अच्छा अकेले रहना है – संगीता अग्रवाल
सुधा जी महसूस कर रही थी कि सोमेश जी के विचार धीरे-धीरे नताशा के व्यवहार और प्यार से बदल रहे थे। नताशा ऑफिस भी जाने लगी थी। वह घर और बाहर की अपनी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभा रही थी। सोमेश जी का सारा दिन अपने पोते के साथ बीत जाता था।
सुनिए जी अब हमारा कर्तव्य पूरा हो गया है। अब हमें अपने घर वापस चलना चाहिए। हां सुधा हम अपने घर वापस तो जाएंगे लेकिन अकेले नहीं अपने बच्चों को साथ लेकर। मैं ही गलत था जो पता नहीं किस सोच के साथ जी रहा था। आजकल सच में लड़कियां घर और बाहर सब अच्छी तरह संभाल लेती हैं । अगर हम दूसरे घर की बेटी को प्यार और सम्मान के साथ अपनाएंगे तो वह भी हमें सम्मान और अपनापन देगी।
सोमेश जी ने आज अपना पूरा घर सजवाया और सुधाजी से बच्चों की आरती उतारने के लिए कहा। जब नताशा और पीयूष ने उनके पैर छुए तो उन्होंने उन्हें उठाकर अपने गले से लगा लिया। सुधा जी की आंखें भी टूटते रिश्ते को जुडते देखकर खुशी से छलछला आई।
नीलम शर्मा