तुम आज भी मेरे मन में जिंदा हो! – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral Stories in Hindi

ट्रेन से उतरकर मैं बस पकड़ने के लिए ऑटो कर लिया था। 

आज मैं अपने पुराने दिन को जीना चाहता था, उसी पुरानी वर्षों, पुरानी दिनों को ,,,जिनकी याद मुझे बहुत ही ज्यादा मीठी लग रही थी!

 सामने बस स्टैंड था।  अनगिनत बसें खड़ी थीं।

दलाल और बस कंडक्टर आकर जगह का नाम लेकर बुला रहे थे। मैंने कहा” प्रीतमपुर बस स्टैंड!”

“भैया उधर से आगे जाकर बाएं मुड़ जाओ। वहां से दो-तीन बस है जो पीतमपुर जाएगी।”

बस को चलने में अभी 15 मिनट बचे हुए थे। 

लगभग 10 साल बाद में अपने गांव वापस जा रहा हूं, कितना कुछ बदल गया होगा।

मेरी आंखों में आंसू थे।

भले ही मैंने उन्हें मैं पोंछ दिया था। देखते देखते 15 मिनट बीत गए और देखते ही देखते बस शहर से निकलकर गांव वाली सड़क की ओर दौड़ने लगी थी।

मैं अपनी ख्यालों में गुम था।कितने हसीन दिन थे ,जब 12वीं में  मैंने अपने स्कूल में टॉप किया था तो मेरा मुहल्ला तो दूर पूरा प्रीतमपुर उठकर आ गया था।

“मोहन तो गांव का बेटा है।”सबके जुबान पर मेरा नाम था।पूरे प्रीतमपुर का मैं हीरो बन गया था।

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अपने आप को अभी से इंजीनियर समझने लगा था।

गांव के सभी लोग मुझे अपने से आंखों में बैठ कर रखे थे।

“मोहन तुम पूरे गांव के लिए आदर्श हो।तुम्हें देखकर बच्चे तुमसे सीखेंगे।”

देखते ही देखते मैंने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा भी निकाल लिया।

जब भी मैं छुट्टियों में घर जाता बच्चों की फौज मेरे आगे पीछे दौड़ने लगते।

“मोहन भैया हमको  गणित पढ़ा दीजिए ना!”

कुछ कहते “मोहन भैया हमको साइंस पढ़ा दीजिए ना!”

और मैं उन्हें पढ़ाता भी था।

कम्मो चाची हों या बिरजू काका सब आकर मेरे हाथ में सौ, पचास पकड़ा भी देते थे। मैं संकोच में गड़ भी जाता था तो भी वो बहुत ही प्यार से कहा करते 

“मना मत करो मोहन,ये तो आशिर्वाद है। हमारे बच्चे भी तुम्हारी तरह बन जाएं तो कितना अच्छा होगा।”

इंजीनियरिंग कॉलेज के हर साल में मैं अच्छे नंबर  लेकर स्कालरशिप पा ही रहा था।

देखते-देखते  सारे सेमेस्टर खत्म हो गए और फर्स्ट राउंड में ही मैंने एक अच्छी सैलरी में कैंपस निकाल लिया था।

नौकरी ज्वाइन करने के बाद  मुझे कंपनी की ओर से 3 साल के लिए  इंग्लैंड भेज दिया गया। 

विदेशी चमक में मुझे अंधा कर दिया। मैंने अपनी मां को दिया हुआ वचन ही भूल गया मेघा मेरे बचपन की दोस्त, मेरे मेरा प्यार मेरा सब कुछ थी।

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यह बात बस मां को पता था कि मैं मेघा को मन ही मन प्यार करता था इसलिए मां ने मेघा के माता-पिता से मेरे लिए रिश्ता भी मांग लिया था।

बिना किसी शर्त के मेघा के माता-पिता भी इस रिश्ते के लिए तैयार थे लेकिन फिर नौकरी के बाद में इंग्लैंड चला गया।

और वहां जाकर मेरी पसंद बदल गई।

कहां गांव की वह गंवारन मेघा जो ज्यादातर लहंगे चोली में ही रहा करती थी, लंबी चोटी में तेल लगाकर ।

उसमें से तेल की महक आती थी और मेरे साथ काम करने वाली रोजलीन जिस से ऐसी  खुशबू आती कि मैं बिल्कुल रिफ्रेश हो जाता।

उसके स्टाइलिश कंधे तक झूलते हुए भूरे बाल और घुटने से ऊपर तक के स्कर्ट या शॉर्ट मुझे हर समय लुभाते रहते थे। 

उसी ने मुझे प्रपोज भी किया था और फिर हम दोनों लिव इन में रहने लगे।

भले ही मैं इंग्लैंड पहुंच गया था लेकिन दिमाग में संस्कार तो गांव के ही थे इसलिए मैं उसे फोर्स कर रहा था कि हमलोग शादी कर लेते हैं मगर वह थी कि शादी के नाम से भाग रही थी।

6 साल मैं उसके पीछे-पीछे घूमता रहा और फिर अंत में उसने मुझे छोड़कर किसी और के साथ रिश्ते जोड़ लिया।

फिर मैंने अपने आप को शराब में डुबो लिया।

मेरे पास मजबूरी थी मैंने ही अपना कान्ट्रैक्ट पीरियड बढ़वाया था। 

मुझे घर लौटना जरूरी था‌। रोजलीन को किसी और के साथ मैं नहीं देख सकता था। जैसे ही मेरा कॉन्ट्रैक्ट पीरियड खत्म हुआ मैं वापस आने के लिए एप्लीकेशन डाल दिया।

कंपनी ने मुझे वापस मुंबई बुला लिया था।

अभी कुछ हफ्तों की छुट्टी लेकर अपने घर जा रहा हूं। 

मेघा को याद करते हुए ही मेरी आंखों के कोर भीग गए।

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बचपन की यादें जेहन में अब तक जिंदा थीं।

कल्लू चाचा के आम की बगिया में लगने वाले झूले, जिसमें राधा, मीना ,सोना सभी गांव की लड़कियां पारी पारी से झूलती थीं और हार जीत का फैसला करतीं थीं।

मैं और मेरे दोस्त झूलने के लिए पहुंच जाते तो सभी चिल्ला चिल्ला कर हमें भगाया करती थीं मगर मेघा मुझे अपने हिस्से का झूला झूलने के लिए दे दिया करती थी।

 बदले में मैं उसे टॉफी खिलाने का भी प्रॉमिस किया करता था मगर वह भी अपने हिस्से की टॉफी मुझे ही दे दिया करती थी।

अंतिम बार जब उससे भेंट हुई थी तो उसने कहा था “मोहन जब तो इंग्लैंड से आएगा ना तो मेरे लिए गोरे होने की क्रीम ला देना।”

जब मैं इंग्लैंड जा रहा था चुपके से बस स्टॉप पर आकर उसने मेरे हाथ में दो पॉलिथीन के झोले पकड़ा दिए थे।

“ मोहन अकेले रहोगे ना तो इसे खाना और मुझे भूलना मत!”

मेरे मन में नारियल की लड्डू की वह सोंधी महक फिर से घूम गई।

न जाने मेघा कहां होगी,इतने सालों में कुछ पता नहीं? ना मैंने पूछा और नहीं किसी ने कुछ बताया।

मैं रोजलिन के साथ लिव इन में था, यह सब को पता था। मां वहां जाकर माफी मांग कर रिश्ता तोड़ आई थी।

उन्होंने रोते हुए मुझसे कहा था “मोहन तू बहुत बड़ी गलती कर रहा है। इतनी अच्छी लड़की हाथ से नहीं जान देनी चाहिए थी।”

“मगर अब तो सब कुछ चला गया। इस घर वापसी की सजा मुझे क्या मिलेगी?” 

एक लंबे हार्न के साथ बस रुकी और कंडक्टर की तीखी आवाज गूंजने लगी “प्रीतमपुर आ गया भैया प्रीतमपुरा आ गया!”

मैं अपने बैग के साथ उतर गया। बड़ी ठंडी आंखों से दबे पांव से मैं अपने घर की ओर चला।

जहां गांव के बच्चे मोहन भैया मोहन भैया रहते ना थकते थे आज पगडंडी सूनी पड़ी थी। किसी को मेरा इंतजार नहीं था।

अपने घर पहुंच कर मैंने अम्मा बावजी को प्रणाम किया।

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“जीते रहो!” उन्होंने ठंडी आंखों से ऐसे देखा जैसे मैंने कुछ पाप कर दिया था ।

सब कुछ सही था, पाप तो मैंने किया ही था। कितने लोगों का भरोसा तोड़ा था।

अपने प्यार तक का गला भी घोंट दिया था।

“खाना खा लो तुम्हारे लिए खाना बनवा दिया है लेकिन पहले नहा लो।”

नहा कर निकाला तो थोड़ी थकान उतर गई थी।

मां ने कहा” मंदिर जाकर अर्जी लगा आओ। इतने सालों बाद घर आए हो। पहले मंदिर से प्रणाम कर लो।”

मंदिर  पहुंचकर मैंने अपने आंखों में आंसू भरकर भगवान विघ्नहर्ता के चरणों को धोया।

फिर वहां से निकलकर मैं आम की बगिया की तरफ बढ़ गया।बचपन की यादें ताजा करने।

अभी भी कानों में वही आवाज सुनाई पड़ रही थी।जब हम झूला झूला खेलते थे।

“मोहन,, मोहन! तुम कैसे हो?”

मुझे लगा मेरे कानों में मिश्री से घुल गई है। मैं पीछे पलटा।

सूनी आंखों से मेघा वही खड़ी थी।

वही लंबी चोटी, लहंगा चोली दुपट्टा गले में डाले हुए वह सूनी आंखों से मुस्कुरा रही थी।

 “कब आए मोहन ?”

“बस आज ही मेघा तुम कैसी हो?”

“ ठीक हूं ।”

मेरी आंखों को यकीन नहीं हुआ कि वह अभी तक वैसी होगी। उसकी शादी नहीं हुई।

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“ तुम्हारी शादी नहीं हुई?”

“ नहीं बाबा ने ठीक तो किया बहुत जगह, मगर मेरा दिल गवारा नहीं किया।

मैंने उनके चरणों में सर रखकर उनसे माफी मांग लिया और प्यार की सौगंध खाई। मैंने उन्हें सच बता दिया था। मोहन, प्यार एक ही बार होता है ना ,,बार-बार थोड़े ही होता।मेरी पसंद नहीं बदली बस तुम्हारी पसंद बदल गई। तुम बदल गए तुम्हारा प्यार  बदल गया ।”

उसके दोनों आंखों से आंसू झरझर बह रहे थे।

मैंने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए।

उसे गले लगा लिया “मेघा मुझे माफ कर दो!” 

“कैसी माफी मोहन, मेरा क्या हक है तुम्हें माफ करने का! तुम इतने बड़े इंजीनियर हो और मैं क्या हूं? एक गंवार!”

“ऐसा मत बोलो  मेघा,दुनिया घूम कर पता चला कि तुम क्या हो? अब मैं वापस आ गया हूं, तुम्हारे लिए मेघा प्लीज हां बोल दो, मुझसे शादी कर लो और मेरा घर बसा दो नहीं तो मैं बर्बाद हो जाऊंगा।”

 उसने अपना सिर नीचे झुका लिया।

मैं फिर बोला” मैं तुम्हारे घर जाकर तुम्हारे माता-पिता से माफी मांगूंगा!”

घर आकर मैंने सारी बातें मां को बताया और मेघा के घर जाकर उसके माता-पिता से माफी मांगा।

उनकी आंखों में भी उदासी थी।

जवान बेटी घर बैठी हुई थी, उससे बुरी बात और क्या हो सकती थी ।

पूरे गांव चौपाल हर जगह उनकी बदनामी हो चुकी थी।

मगर अब सब कुछ ठीक करने के लिए मैं आ गया था।

अंत भला सब भला मेरे घर वापसी सबके लिए अच्छा हो मैं यही चाहता था।

सीमा प्रियदर्शिनी सहाय 

®©

#घर वापसी 

पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना

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